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क्षेत्रीय विकास में स्थानीय भाषाओ की उपयोगिता

क्षेत्रीय विकास में स्थानीय भाषाओ की उपयोगिता

भारत जैसे कृषि प्रधान देश है भारत को 1947 के बाद से ही अपने आप को शोषण और यातनाओ के दौर से निकाल कर एकता के सूत्र में बंधाने की चुनौती थी। 
पंचवर्षीय योजनाओं के तहत भारत ने कृषि क्षेत्र मे काफी उन्नति की है। साथ ही साथ तकनीकी क्षेत्रों में भी बहुमुल्य प्रगति की है। कंप्यूटर ने तो जैसे भारत की उन्नति में क्रांति ला दी। शिक्षा से लेकर के कृषि तक हर जगह कंप्यूटर से काम होने लगा। पहले सिर्फ इसमें अंग्रेजी की बाध्यता थी पर अब भारत की लगभग हर भाषा में आप किसी भी विषय को अनुवाद करके उसका अर्थ समझ सकते है उसे पढ़ सकते हैं। नई शिक्षा नीति जिसकी की उद्घोषणा एम.एच.आर.डी.विभाग ने की है उसके तहत नई शिक्षा नीति को 2022 से लागू करने की संभावना है। इसमें 5+3+3+4 प्रोग्राम को जगह दी गई है जिसमें बच्चे को उसके शुरुआती चरण में स्थानीय भाषाओं में पढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। 
भारत का इतिहास अगर हम देखें तो यह हमको एक बहुत गहरी सीख देता है। यहां की मिली-जुली संस्कृति के बारे में। यहां कई देशों से विभिन्न सभ्यताओं के लोग आए और भारत की द्रविड़ संस्कृति में मिलकर नई-नई अन्य संस्कृतियों को यहां पर स्थापित किया। सबकी अपने अलग व्यवस्था अपनी अलग बोली भाषा थी। इस तरह भारत में जितनी भाषाएं आज के वर्तमान समय में बोली जाती हैं उतनी शायद ही किसी देश में बोली जाती होगी। भारतीय भाषाओं का इतिहास अगर हम देखें तो इन सबके निर्माण में कहीं ना कहीं संस्कृत का महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए संस्कृत को हम वेदों की भाषा या आदि युग की भाषा कह सकते हैं। 
अब सवाल यह उठता है की मानव के विकास में या सभ्यता के विकास में भाषा का क्या योगदान है?? तो अगर बात नई शिक्षा नीति के की जा रही है तो उन्होंने बालकों की सीखने की क्षमता का तेजी से विकास करने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को ही शिक्षा का माध्यम बनाने की बात की है। यकीनन इससे अंग्रेजी का अधिपत्य थोड़ा कम होगा और स्थानीय भाषाओं का प्रभुत्व बढ़ेगा पर इससे एक बात यह भी सामने आएगी कि फिर जो व्यक्ति और जो बच्चा स्थानीय भाषा में ही शिक्षा ग्रहण करता है वह केवल एक स्थान विशेष तक ही सीमित हो जाएगा क्योंकि अगर उसे दूसरे स्थान में जाकर कुछ काम ढूंढना है तो उसे फिर वहां की भाषा अलग से सीखनी पड़ेगी। तो इसे चाहे आप एक विडंबना के रूप में देखिए या चाहे इसे आप भारत की पुरातन संस्कृति को जीवित करने के रूप में देखिए अब जब हम कोरोनावायरस के दुष्प्रभाव से गुजर चुके हैं इस महामारी ने हमें यह सिखा दिया है कि यदि हम अपने क्षेत्र तक सीमित रहे, अपने ही क्षेत्र से शिक्षा ग्रहण करें, अपने ही क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों का विकास करें, तत्पश्चात अपने ही क्षेत्र में व्यापार या रोजगार के साधन प्राप्त करे और अन्य को भी उपलब्ध करवाएं। इससे उस क्षेत्र विशेष का जरूर ही विकास होगा फिर व्यक्ति अपने क्षेत्र को छोड़कर अन्य क्षेत्र में नहीं जाएगा। 
तो कुल मिलाकर क्षेत्रीय विकास की जो संकल्पना है या ग्रामीण विकास की जो संकल्पना है उसमें क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान अपने आप मैं महत्वपूर्ण होता है क्योंकि व्यक्ति को उसकी क्षेत्रीय भाषा में समझाना बहुत ही आसान होता है अन्य किसी भी भाषा की अपेक्षा तो अगर यह चक्र ऐसे ही चला तो परिणाम बहुत जल्दी ही सामने आयेंगे।  क्योंकि भारत कई प्रदेशों से मिलकर बना है और यहां प्रत्येक प्रदेश की अपनी एक अलग भाषा है,अलग संस्कृति है, तो भारत के लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि यदि एक प्रदेश का आदमी अपने ही प्रदेश से शिक्षा ग्रहण कर वहीं रोजगार प्राप्त करता है या वहां व्यापार विकसित करता है तो इससे सीधे उस प्रदेश को ही विकास की प्राप्ति होगी। वह प्रदेश ही विकसित होगा। दूसरी बात उसे अन्य प्रदेश में जाकर रहने, वहां व्याप्त जटिलताओं को सहने नई भाषा को सीखने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। तो अगर इस लिहाज् से अगर देखा जाए तो यह एक बहुत अच्छी बात है कि हम अपनी स्थानीय भाषा को महत्व दें और जिस स्थान विशेष में हम ने जन्म लिया है उसके विकास में अपना योगदान दें। अपने परिवार, बूढ़े माता-पिता को काम की तलाश में बाहर जाकर अकेला ना छोड़े।
भारत के इतिहास को देखिए यहां उर्दू भी आई अरबी भी आई पुर्तगाली भी आई जापानी भी आई यहां पर  फ्रेंच भी आई और अंग्रेजी भी। यह सब विदेशी भाषाएँ यहां आई इनकी संस्कृति को हमने सहजता से अपना भी लिया पर हमारी भाषाएं कितने देशों में गई और वहां के लोगों ने कितना उन्हें अपनाया?? दोनों बातों में बहुत अंतर है। अगर बात चीन की करें तो उसने सिर्फ अपनी मातृभाषा मेंदारी को ही महत्व दिया और शिक्षा से लेकर के व्यवसाय तक में उसने सिर्फ मेंदारी का ही उपयोग किया। जिससे दूसरे विश्व के लोग अनभिज्ञ थे। इससे सिर्फ उसने अपना विकास किया अपने क्षेत्रों का विकास किया और अन्य देशों से या वहां के संस्कृति वहां के रहन-सहन से उसका ज्यादा कुछ लेना-देना नहीं रहा। इसलिए हम यह स्पष्ट रूप से अब कह सकते हैं की किसी भी क्षेत्र के विकास में स्थानीय भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। 
एक शिक्षक जो किसी भाषा विशेष वाले स्कूल में अगर अंग्रेजी में पढ़ाता है जबकि उस पूरे क्षेत्र के लोग सिर्फ पंजाबी समझते हैं, और वह बच्चे जो सिर्फ पंजाबी समझते हैं इंग्लिश में पढ़ाने वाले शिक्षक की बात को कम से कम ही समझेंगे परंतु अगर उन्हें पंजाबी में ही समझाया जाएगा तो वह अपने सिलेबस को अपने विषयों को गंभीरता से लेंगे। हां यह बात जरूर है कि लगातार एक भाषा के द्वारा संचार किए जाने पर कभी ना कभी तो व्यक्ति उसमें सफल हो ही जाता है। परंतु उस कभी ना कभी तक का समय जो वह जीता है वह बहुत संघर्ष पूर्ण होता है और उस कभी ना कभी के संघर्ष में वह अपनी जीवन के महत्वपूर्ण साल भी खो देता है जहां वह अच्छा परफॉर्मेंस दे सकता था वहां वह सिर्फ एक एवरेज छात्र बनकर रह जाता है तो अपनी बोली अपनी मातृभाषा अपने क्षेत्र की भाषा में अगर आप की पकड़ है और उसमें ही अगर आप आगे तक की शिक्षा लेते हैं तो यकीनन ही आप किसी अन्य क्षेत्र के लायक नहीं रहेंगे लेकिन अपने ही क्षेत्र में आप एक विशेष कार्य करने के लायक जरूर बन जाएंगे। 
 (लेखक- डॉ अंशुल उपाध्याय )

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