केंद्र सरकार ने किसानों को फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा क्लेम सेटलमेंट में गति प्रदान करने की योजना बनाई हैं। इस कार्य के लिए सरकार कुछ ऐसी विशेष एजेंसियों को शामिल करने की योजना बना रही है, जो पंचायत स्तर पर फसल की उपज का अनुमान लगाने के लिए सैटेलाइट, रिमोट सेंसिंग डेटा, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर सकें। सरकार ने दो महीने में इंश्योरेंस क्लेम को सेटल करने का आदेश दिया है। ऐसे में क्लेम सेटलमेंट प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए टेक्नॉलजी के इस्तेमाल का फैसला और भी अहम हो जाता है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने पहचान छिपाने की शर्त पर बताया, 'पिछले साल सितंबर में दो महीने की तय समय सीमा में भुगतान नहीं कर पाने वाली इंश्योरेंस कंपनियों पर 12 फीसदी की पेनल्टी लगाई गई थी। उसके बाद से कई राज्यों में इस मामले में काफी सुधार हुआ है और किसानों को समय पर भुगतान मिल रहा है।' सरकार आगामी खरीफ सीजन में आठ फसलों की उपज का आकलन करेगी, जिसमें धान, मक्का, ज्वार, सोयाबीन, बाजरा, कपास, मूंगफली और ग्वार शामिल हैं। जिले के कम से कम 10 पंचायतों को कवर करने वाली तीन फसलों पर विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के तीन राज्यों में कम से कम पांच जिलों में अध्ययन किया जाएगा। इस रिपोर्ट को फरवरी 2020 तक पेश किया जाएगा।
इस कार्यक्रम के नोडल ऑफिस, महलनोबिस नेशनल फॉरकास्ट सेंटर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा अनुमान के लिए फसल के उपज की जानकारी अनिवार्य है। अभी इसके लिए क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट (सीसीई) के तरीके को अपनाया जाता है, जिसमें काफी समय लगता है। इससे इंश्योरेंस क्लेम के निपटारे में भी देरी होती है। सरकार किसानों को तुरंत राहत देना चाहती है। इसलिए फसल के नुकसान का आकलन करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और दूसरी तकनीकों के इस्तेमाल का फैसला लिया गया है।' उन्होंने कहा कि अभी पिछले साल के फसल की जानकारी के आधार पर सीसीई के लिए किसी खेत का आवंटन और चयन किया जाता है, क्योंकि सर्वे के समय हमारे पास मौजूदा साल के आंकड़े नहीं होते। ऐसे में आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'रिमोट सेंसिंग और ड्रोन के जरिए उपज के बारे सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।'
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किसानों के बीमा क्लेम सेटलमेंट को गति देने विशेष एजेंसियों का उपयोग करेगी सरकार