इन दिनों देश में सब कुछ ”गड़बड़ झाला“ है, एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी सरकार की लोकप्रियता का ’ग्रॉफ‘ नीचे गिरता जा रहा है, दूसरी ओर बिखरे हुए प्रतिपक्ष के पास मोदी का कोई विकल्प नहीं है और आज यही देश के आम मतदाताओं की मजबूरी भी है। एक ओर देश अपनी आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगंथी मनाने जा रहा है, वहीं आजाद देश में एकाधिकारिता या तानाशाही के दर्शन भी होने लगे है, राजनीति के इसी कोहरे में देश के आम आदमी की खुशहाली की महत्वाकांक्षा खोकर रह गई है।
ऐसा कतई नहीं है कि इस विषम स्थिति का सत्तारूढ़ नेताओं उनके दल और प्रतिपक्षी नेताओं व उनके दलों को ज्ञान नहीं है, वे सब जानते है, किंतु दु:खद यह है कि उनके भी दिल-दिमाग में सिर्फ और सिर्फ ”कुर्सी“ ही है, जनकल्याण या जनहित की भावना नहीं और इसी कोहरे के अंधेरे में आज देश डुबा हुआ है।
आज देश की राजनीति के रथ में सूर्यदेव के रथ की तरह अनेक ’अश्व‘ वाहक बने हुए है, जो न सिर्फ रथ को सही रास्ते पर जाने नहीं देते, बल्कि हर अश्व रथ को अपनी दिशा में खींचकर ले जाने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में यदि यह कहा जाए कि यह देश दिशाहिनता की ओर अग्रसर हो रहा है। तो कतई गलत नहीं होगा।
इस देश पर पिछले सात सालों से भारतीय जनता पार्टी भाई श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सत्तासीन है, 2014 से 2019 के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने रातों-रात बैंक नोट बदल कर जहां कथित रूप से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने जैसे फैसले लिये वहीं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने और बंगलादेश तथा अन्य पड़ौसी देशों से भारत में घुसपैठ रोकने जैसे कदम उठाए, साथ ही बकौल भाजपा देश की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साख सुधारने के भी प्रयास किए गए और सरकार के इन्हीं प्रयासों को देशहित में मानकर 2019 में देश की जनता ने एक बार फिर मोदी जी को पांच सालों के लिए सत्ता सौंपी, जिसके करीब ढाई साल गुजर चुके है और अभी ढाई साल शेष है, इन ढाई सालों में मोदी जी व उनकी सरकार जनता की अपेक्षाओं की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है, यही 2024 में देश की जनता तय करेगी और तभी मोदी जी व सत्तारूढ़ भाजपा का भी भविष्य तय होगा।
इन सब वास्तविकताओं के साथ यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि 2014 में चुनाव के समय मोदी जी ने एक संकल्प लिया था कि वे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों का अस्तित्व खत्म कर देंगे, उन्होंने अपने संकल्प की पूर्ति के प्रयास भी किए, कुछ अंशों तक उन्हें सफलता भी मिली, किंतु इसी बीच उनकी लोकप्रियता के नीचे आते ’ग्रॉफ‘ ने उनकी इस संकल्प पूर्ति के सामने प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया, कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाने का प्रयास किया, उसीका परिणाम है कि अपने प्रदेश में मोदी को शिकस्त दे, जीत का डंका बजाने वाली ममता बैनर्जी जहां मोदी का विकल्प बनने का सपना संजो बैठी है, वहीं कांग्रेस ने भी सुखद सपने देखना शुरू कर दिया है। आज ममता दीदी का प्रयास जहां प्रतिपक्ष का प्रमुख चेहरा बनने के प्रयास में कोलकता छोड़ दिल्ली में डेरा डालने को आतुर है, तो कांग्रेस किसानों के बारे में सरकार द्वारा बनाए गए कथित पेगासस जासूसी काण्ड व ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के सवालों पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है और इसी कारण संसद का मानसून सत्र एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी अब तक कायदे से शुरू नहीं हो पाया है।
कुल मिलाकर आज के परिदृष्य को देखकर यहि यह कहा जाए कि देश दिशाहिन हो गया है और देश के आम आदमी की समस्याओं की किसी को भी कोई चिंता नहीं है तो कतई गलत नहीं होगा। आज सत्तारूढ़ दल व उनके नेताओं की चिंता उत्तरप्रदेश सहित अन्य चार राज्यों के भावी विधानसभा चुनावों में सिमट कर रह गई है और अभी से जातिगत समीकरणों की तैयारी शुरू कर दी गई है, वहीं प्रतिपक्ष अपनी सियासी तैयारियों में व्यस्त हो गया है, अब ऐसे में देश और उसके निवासियों की चिंता करें तो कौन? आज देश कृत्रिम महंगाई के दौर से गुजरने को विवश है, वहीं देश का आम आदमी अपने और अपने परिवार के लिए ’रोटी‘ की जुगाड़ में व्यस्त है, इसी के साथ देश से कोरोना महामारी का कहर अभी भी खत्म नहीं हुआ है, दुनिया के कई देशों में फिर इसने कहर ढहाना शुरू कर दिया है, जिसकी चिंता सरकार को सिर्फ अपने होंठ हिलाने तक तथा जनता के लिए सब चिंता छोड़ ’रोटी‘ की जुगाड़ तक सीमित हो गई है।
अब इन्हीं सब दुरावस्थाओं के दौर से देश को गुजरने को आज की राजनीति मजबूर कर रही है, अब ऐसे में देश का भविष्य क्या होगा? कुद नही कहा जा सकता।
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता)
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