उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की अल्पकालिक राजनीतिक स्वार्थ की दोस्ती अंतत: टूट गई। बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेस वार्ता बुलाकर इसका बाकायदा ऐलान कर दिया। दोनों पार्टियां अपनी ढाई दशक पुरानी दुश्मनी भुलाकर इस लोकसभा चुनाव में साथ उतरे थे। इस साल जनवरी में दोनों दलों के प्रमुखों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया। तब राजनीतिक पंडितों का यही आकलन था कि यह दोस्ती यूपी में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर देगी। हालांकि पांच महीने बाद यह दोस्ती खुद मुश्किल में है। मायावती ने महागठबंधन पर अस्थायी ब्रेक लगा दिया है। कारण बताया है कि सपा के वोटर्स ने बसपा का साथ नहीं दिया, लेकिन जानकार इसके पीछे एक और अनुमान जता रहे हैं। दरअसल मायावती ने गठबंधन से पूरी तरह किनारा नहीं किया है। उन्होंने भविष्य के लिए विकल्प रख छोड़ा है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे मायावती की रणनीति भी हो सकती है। आम चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने सियासी संदेश दिया था कि मायावती पीएम पद की उम्मीदवार होंगी और वह राज्य की राजनीति में लीड करेंगे। अब जब राष्ट्रीय राजनीति में कुछ हासिल नहीं हुआ है तो बसपा सुप्रीमो यूपी के सीएम उम्मीदवार के रूप में खुद को दोबारा स्थापित करना चाहती हैं। अस्थायी ब्रेक-अप को सपा पर दबाव बनाने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है।
जानकारों की मानें तो मायावती को उम्मीद थी कि दलित और मुस्लिम उनके साथ हैं। सपा से गठबंधन की वजह से ओबीसी वोट मिल जाएंगे, लेकिन वेस्ट यूपी में ओबीसी का साथ कम मिला। यहां की तीन सीटों, सहारनपुर, बिजनौर और नगीना में ओबीसी ने दलित-मुस्लिम समीकरण के साथ ताल मिला ली और गठबंधन जीत गया। अन्य सीटों पर ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने यूपी में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन अगर विधानसभावार देखें तो उसके लिए तस्वीर इतनी खुशनुमा नहीं है। वेस्ट यूपी की लोकसभा सीटों के तहत आने वाले कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायक अपने कैंडिडेट को दूसरे से अधिक वोट नहीं दिला सके। ऐसे में अगर महागठबंधन आने वाले विधानसभा चुनाव में साथ रहा तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
मेरठ लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीट आती हैं। चार में भाजपा के विधायक हैं। इनमें किठौर, मेरठ दक्षिण और हापुड़ विधानसभा में भाजपा की करारी हार हुई है। अकेले कैंट विधानसभा क्षेत्र ने ही भाजपा की जीत का रास्ता तैयार किया। मुजफ्फरनगर की सभी असेंबली सीट पर भाजपा काबिज है, लेकिन चरथावल और बुढ़ाना में वह लोकसभा चुनाव में पिछड़ गई। यहां गठबंधन आगे रहा। खतौली, सरधना और मुजफ्फरनगर में भाजपा को मामूली बढ़त ही मिल पाई। बागपत की सभी पांचों विधानसभा क्षेत्रों में इस समय भाजपा के विधायक हैं, लेकिन सिवालखास और छपरौली में पार्टी बढ़त बनाने में नाकामयाब रही। सहारनपुर यहां देवबंद और रामपुर मनिहारन विधानसभा सीट से भाजपा विधायक होने के बावजूद पार्टी को हार मिली। कैराना की नकुड़ विधानसभा में भी भाजपा से विधायक होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी पिछड़ गए। बिजनौर की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज है। इसके बावजूद सिर्फ चांदपुर में बढ़त बना सकी। मायावती ने लोकसभा चुनाव के परिणाम में ईवीएम की विश्वसनीयता पर भी संदेह व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यह चुनाव परिणाम हमें सोचने पर मजबूर करता है। हालांकि उत्तर प्रदेश में जनअपेक्षा के विपरीत आए चुनाव परिणाम में ईवीएम की भूमिका भी खराब रही है। यह भी किसी से छुपा नहीं है।
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टूटा बसपा-सपा गठबंधन, वोट शेयर तो बस बहाना, सीएम पद है मायावती का निशाना!