लखनऊ । मुहर्रम के लिए यूपी के डीजीपी की एडवाइजरी पर विवाद हो गया है। शिया धर्म गुरुओं ने कहा कि एडवाइजरी में उन्हें विलेन की तरह पेश किया गया है। इसमें लिखा है कि मुहर्रम में सुन्नी वर्ग के खलिफाओं के लिए शिया अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जबकि पिछले 40 साल में लखनऊ में ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। पुलिस इसे वापस ले क्योंकि इससे शिया-सुन्नी झगड़े कीआशंका है। एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह पुरानी एडवाइजरी है जो हर साल जारी होती है। इसका मकसद किसी का अपमान करना नहीं है।
कर्बला में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मुसलमान पूरी दुनिया में मुहर्रम में गम मनाते हैं। इस मौके पर यहां काफी पहले हिंसा भी हो चुकी है। इसलिए मुहर्रम से पहले पुलिस को एडवाइजरी जारी होती है। इस बार कोविड की वजह से मुहर्रम के जुलूस पर रोक है। इसकी चार पेज की एडवाइजरी पर मौलानाओं ने ऐतराज किया है।
शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जावेद ने कहा, 'उन्होंने ये लिखा है कि ये होता है। हो सकता है नहीं। एक चीज होता है कि हो सकता है। उन्होंने लिखा है कि यह सब हुआ करता है। होता रहता है ये। तो ये झूठा इल्जाम है।'
लखनऊ में साल 1977 में मुहर्रम के जुलूस हुई हिंसा के बाद इस पर रोक लगा दी गई थी। बीस साल बाद 1998 में तीन पक्षीय समझौते के बाद फिर जुलूस शुरू हुए। पिछले 23 साल से महुर्रम के जुलूस में कोई झगड़ा नहीं हुआ है। इसलिए मौलाना कह रहे हैं कि 43 साल पहले के बवाल का जिक्र आज कि एडवाइजरी में क्यों किया जा रहा है?
शिया धर्म गुरु मौलाना सैफ अब्बास ने कहा, मैं तो कहता हूं कि ये ड्राफ्ट करने वाला खुद चाहता है कि अमन-चैन बिगड़े। आज 40 साल बाद उन तमाम चीजों को इस तरह से लिखकर और फिर आम किया जा रहा है। हम अफसोस इजहार करते हैं इस जुबान और इस खत पर।
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मुहर्रम के लिए यूपी डीजीपी की चार पेज की एडवाइजरी पर शिया धर्म गुरुओं ने ऐतराज किया