वर्तमान में जासूसी कांड की बहुत चर्चा हैं, जिसके कारण सरकार के साथ विपक्षी और प्रभावित व्यक्ति परेशान हैं।आजकल जासूसी के तौर तरीके नयी तकनिकी के कारण बदल गए पर इनका मुख्य उद्देश्य शासन प्रशासन और विशेष लोगों को सचेत करना और शासक को कैसे बलशाली, प्रभावशाली बनाया जाय यह प्रमुखता रहती हैं।इसके अलावा शासन की कमियों का फर्दाफाश करना और भेदियों की जानकारी से दुशमन की गतिविधियों को उजागर करना। परन्तु जासूसी कांड ने बाह्य देश के गुप्तचरों नेअपने देश में सेंधमारी हैं जो हमारे तंत्र की विफलता का घोतक हैं।
हर देशमें हर राजा की तीसरी आँख गुप्तचर होते हैं।जितने शक्तिशाली राजा उससे अधिक प्रभावकारी गुप्तचर होते हैंi जैसे हमारे देश में रॉ जो विदेशों के लिए होती हैं और सी बी आई, इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, राष्ट्रीय स्तर की होती हैं राज्य स्तर में लोकायुक्त, एस ऍफ़ टी आदि तो स्थानीय स्तर पर एल आई बी और मुखबिर होते हैं।इनके माध्यम से स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली नैतिक और अनैतिक कार्यविधियां पर निगाह रखते हैं और अपराध सिद्ध होने पर दण्डित करते हैं।इसके अलावा हर विभाग की अपनी अपनी निगरानी समितियाँ होती हैं।यानी इन संस्थाओं से कोई भी नागरिक छुप/बच नहीं सकता हैं
गुप्तचरों के लक्षण ---
स्वपर मंडल कार्यावलोकने चाराश्चाक्षुणषि क्षितिपातीनाम।(१/१४)
स्वदेश-- परदेश सम्बन्धी कार्य -अकार्य का ज्ञान करने के लिए गुप्तचर राजाओं के नेत्र हैं।
गुप्तचर के गुण और वेतन
अलौल्या ममानघयाम मृषाभाषितुमभ्युःकर्तुम चेती चारगुणाः। (२/१४)
संतोष, आलस्य का न होना, सत्यभाषण और तर्कणा शक्ति या विचार शक्ति हे गुप्तचरों के गुण हैं।
तुष्टिदानमेव चारणाम वेतनम (३/१४)
कार्य सिद्धि हो जाने के बाद रहा द्वारा संतुष्ट पर्यन्त पुरूस्कार देना ही गुप्तचरों का वेतन हैं।
ते ही तल्लोभात स्वामिकार्येष्वतीव त्वरंते । (४/१४)
निःसंदेह वे संतोषजनक पुरुस्कार के लोभ से स्वामी का कार्य विशेष शीघ्रता के साथ करते हैं ।
अनवसरपों ही राजा स्वैः परेश्चातिसंधीयते। (६/१४)
निश्चय से गुप्तचर -हीन राजा स्वदेश और प्रदेश सबधी शत्रुओं से वंचित किया जाता हैं।
किमस्तियामिकस्य निशि कुशलम (७/१४)
छात्र कापाटिकोदास्थित -गृहपति -वैदेहिक -तापस -किरात --यापट्टिका हितुनिदक -शौंडिक -शौभिक -पाटच्चर -विट-विदूषक -पीठमर्द --नर्त्तक -गायन -वादक -वाग्जीवन -गणक -शकुनिक -भिषगेंद्रजालिक-नैमित्तिक -सुदारालिक -संवाहक -तीक्ष्ण -क्रूर -रसद -जड़ -मूक -बधिरान्धछद्मअवस्थायिययीभेदनावसर्पवर्गः (८/१४)
गुप्तचरों के निम्म प्रकार ३४ भेद हैं --- उन कुछ अवस्थायी अर्थात राजा अपने ही देश इ मंत्री -आदि की जाँच पड़ताल के लिए नियुक्त करता हैं और कुछ यायी अर्थात जिन्हे शत्रु -राजा के देश भेजा जाता हैं, होते हैं ---छात्र, कापाटिक,उदास्थित,गृहपति, वैदेहिक, तापस, किरात, यमपट्टिक, अहितुण्डिक, शौंडिक, शौभिक, पाटच्चर,विट, विदूषक,पीठमर्द, नर्तक, गायन, वादक, वागजीवन,गणक, शाकुनिक, भिषग, ऐंद्रजालिक, नैमित्तिक, सूद, आरालिक, संवाहक, तीक्ष्ण, क्रूर, रसद, जड़, मूक , बधिर और अंध आदि।
परममर्ज्ञ प्रगलभश छात्रः (९/१४)
शत्रु के गूढ़रहस्य का ज्ञाता और प्रतिभाशाली गुप्तचर छात्र हैं।
यं कमपि समयमास्थय प्रतिपन्न छात्र वेशकः कापाटिक (१०/१४)
जिस किसी भी सप्रदाय के शास्त्र को पढ़कर छात्र -वेश इ रहने वाले गुप्तचर को कापाटिक कहते हैं.
प्रभूतांतेवासी प्रज्ञातिशययुक्तो राज्ञा परिकल्पितवृत्तिरुदास्थितः (११/१४)
बहुत सी मित्रमंडली -सहित, तीक्ष्णबुद्धियुक्त तथा जिसकी जीविका राजा द्वारा निश्चित की गई हो ऐसा गुप्तर उदास्थित हैं।
गृहपति वैदेहिकी ग्रामकुटश्रेष्ठानौ (१२/१४)
कृषक के वेश में रहने वाला गुप्तचर गृहपति और सेठ के वेश इ रहनेवाला गुप्तचर वैदेहिक हैं।
वाह्यव्रत विद्याभ्यां लोकदभहेतुस्तापसः (१३/१४)
दिखावटी व्रत (अहिंसा-आदि )और दिखावटी विद्या द्वारा लोगों को ठगने वाला सन्यासी वेश युक्त उपचार तापस हैं
अल्पाखिलशरीरावयव किरातः।(१४/१४)
जिसके सस्त शारीरिक अंगोपांग (हस्त -पाद ) कद में छोटे हो वह किरात हैं।
यामपट्टिको गल त्रोटक प्रतिग्रहं चित्रपटदर्शी वा (१५/१४)
प्रत्येक गृह में जाकर चित्रपट दिखानेवाला अथवा गला फाड़कर चिल्लाने वाला कोटपाल वेशो गुप्तचर यमपट्टिक हैं अहितुंडिकाःसर्पक्रीड़ाप्रसरः (१६/१४)
सांप क खेल दिखाने वाला सपेरा का वेश में रहने वाला गुप्तचर अहितुण्डिक हैं।
शौंडिक कल्यपाल :(१७/१४)
शराब को बेचने वाला गुप्तचर शौंडिक हैं
शौभिकः क्षपयाम काण्डपातवरणेन नानारूपदर्शी (१८/१४)
रात्रि के अवसर पर पर्दा डालकर विवध भांति का रूप प्रदर्शित करने वाला बहुरुपिया गुप्तचर हैं।
पाटच्चरश्चौरो बंदीकारो वा (१९/१४)
चोर अथवा बंदी के वेश में वर्तमान गुप्तचर पाटच्चर हैं
व्यसनिनाम प्रेषणाजीवी विट।(२०/१४)
वेश्या-लम्पट आदि व्यसनी पुरुषों को वैश्याओं-आदि के घर पहुंचाकर जीविकोपार्जन करने वाले को विट कहते हैं।
सर्वेषाम प्रहसनपात्रं विदूषकः (२१/१४)
सब की हंसी का पात्र विदूषक हैं।
कामशास्त्राचार्याः पीठमर्दिकाः (२२/१४)
काम शास्त्र का आचार्य गुप्तचर पीठमर्दक हैं
गीताङ्गपट प्रावरणेन नृत्यवृत्त्यजीवी नर्तकों नाटकाभिनयनरंगनरतको वा।(२३/१४)
जो गुप्तचर संगीत में सहायक वस्त्रों से सुसज्जित होकर नृत्यकला के प्रदर्शन द्वारा अपनी आजीविका चलाने वाला हो अथवा नाटक -नाटिका के अभिनय इ रंगभूमि पर नृत्यकला प्रदर्शित करने वाला हो उसे नर्तक संज्ञा कहते हैं।
रूपजीवावृत्त्युदेष्टा गायकः।(२४/१४)
वेश्याओं की जीविका के कारण नृत्य, गान का उपदेश करने वाला गायक हैं।
गीतप्रबंधगतिविशेष वादक चतुर्विघातप्रचारकुशलो वादकः (२५/१४)
गीत सम्बन्धी प्रबंधों की गति विशेष को बजाने वाले और चार अर्थात तत,अवनद्ध घन सुषिर (मृदंग ) आदि वाद्य बजाने की कला को प्रवीण गुप्तचर वादक हैं।
वाग्जीवी वैतालिकाः सूतो वा (२६/१४)
कविता व कथा आदि अपनी वाणी द्वारा जीविका निर्वाह करने वाला चारण -भाटआदि वैतालिक हैं अथवा कथावाचक वैतालिक हैं।
गणकः संख्याविद दैवज्ञों वा (२७/१४)
गणित -वेत्ता अथवा ज्योतिषी गुप्तचर गणक हैं।
शाकुनिकः शकुनवाक्ता (२८/१४)
प्रिय -अप्रिय सगुन बताने वाला शाकुनिक हैं।
भिषगायुर्वेदाविद्वैघ्यः शास्त्रकारमविच्च (२९/१४)
अष्टांग आयुर्वेद का ज्ञाता और शस्त्रचिकित्सा में प्रवीण वैद्य भिषग हैं।
ऐंद्रजालिकस्तंत्रयुक्ता मनोविस्मयकारो मायावी वा (३०/१४)
जो गुप्तचर तंत्रशास्त्र में कही हुई युक्तियों द्वारा मन को आश्चर्य उतपन्न करने वाला हो अथवा मायाचारी हो वह ऐंद्रजालिक हैं।
नैमित्तको लक्ष्यवेधी दैवज्ञों वा (३१/१४)
लक्ष्य-वेध करने वाला अर्थात निशाना मारने में प्रवीण (धनुर्धारी )अथवा निमित्तशास्त्र का वेत्ता दैवज्ञ गुप्तचर नैमित्तिक हैं।
महानसिकः सूदः (३२/१४)
पाक विद्या में प्रवीण गुप्तचर सूद हैं।(लेखक-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन / ईएमएस)
विचित्रभक्ष्यप्रणेता आरालिकः (३३/१४)
विविध भांति की भोज्य सामग्री बनाने वाला गुप्तचर आरालिक हैं।
अंगमर्दनकलाकुशलो भारवाहको व संवाहक (३४/१४)
हाथ -पैर अदि अंगों के मर्दन की कला में कुशल अथवा बोझा ढोने वाला कुली को संवाहक संज्ञा हैं।
द्रव्यहेतोः कृच्छें कर्मणा यःसब्जीवितविक्रयी स तीक्षणो सह्रयों वा (३५/१४)
जो धन के लिए अत्यंत कठोर कर्म जैसे (शेर, बाघ आदि से लड़ना आदि) के द्वारा अपने प्राणों को भी खतरे में डाल देता हैं वह तीक्षण अथवा असह्य हैं।
बन्धुषु निःस्नेहःक्रूराः।(३६/१४)
बंधुजनों के प्रति स्नेह-हीन व्यक्ति क्रूर हैं
अलसाश्च रासदाह(३७/१४)
आलसी गुप्तचर रसद हैं।
जडमूकबधिरान्धाः प्रसिद्धाः(३८/१४)
मुर्ख को जड़, गूंगे को मूक, बहिरे को बधिर और अंधे को अंध कहते हैं परन्तु ये स्वाभाव से मूर्ख आदि नहीं होते, किन्तु कपट से अपने स्वामी की कार्यसिद्धि के लिए वैसा प्रदर्शन मात्र करते हैं।
(लेखक-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
आर्टिकल
(समसामयिक प्रसंग) नीतिवाक्यामृत में गुप्तचरी कितने प्रकार की होती हैं