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ग्लोबल वार्मिंग का असर : 27 जुलाई के बाद से ग्रीनलैंड में रोजाना पिघल रही 9.37 अरब टन बर्फ 

ग्लोबल वार्मिंग का असर : 27 जुलाई के बाद से ग्रीनलैंड में रोजाना पिघल रही 9.37 अरब टन बर्फ 

 
ग्रीनलैंड । वैश्विक तापमान में वृद्धि का असर ग्रीनलैंड में दिखाई देने लगा है। पिछले माह यहां तापमान बढ़ने के बाद बर्फ तेजी से पिघल रही है। आर्कटिक के पर्यावरण का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं की साइट पोलर पोर्टल की रिपोर्ट के मुताबिक 27 जुलाई के बाद से यहां कम से कम 9.37 अरब टन बर्फ हर दिन पिघल रही है। यह गर्मियों में होने वाले औसत का दोगुना है। 
वहीं, डेनमार्क के मौसम संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनलैंड में तापमान 20 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था जो गर्मियों के औसत तापमान का दोगुना है। 28 जुलाई को बढ़े हुए तापमान के कारण साल 1950 के बाद तीसरी बार एक दिन में इतना नुकसान हुआ है। इससे पहले साल 2012 और 2019 में इससे ज्यादा बर्फ पिघलती पाई गई थी। साल 1990 के बाद से यहां हर साल बर्फ पिघल रही है और 21वीं शताब्दी में पहले की तुलना में ज्यादा गति देखी गई है। पोलर पोर्टल के शोधकर्ताओं के मुताबिक सन 2019 के मुकाबले भले ही ज्यादा बर्फ न पिघली हो, जितने क्षेत्र में यह पिघली है वह पहले दो सालों से ज्यादा है।
अमेरिका के नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (एनएसआईडीसी) के मुताबिक अगर ग्रीनलैंड की सारी बर्फ पिघल गई तो वैश्विक समुद्रस्तर 6 मीटर से ऊपर निकल जाएगा। बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ लीज के क्लाइमेट साइंटिस्ट जेवियर फेटवीस के आकलन के मुताबिक ग्रीनलैंड की बर्फ की परत से 28 जुलाई को 22 अरब मेट्रिक टन बर्फ पिघल गई जिसमें से 12 अरब मेट्रिक टन महासागर में जाकर मिल गई। जेवियर ने एक दिन में इतनी बर्फ पिघलने के पीछे एंटी-साइक्लोन नाम के इवेंट को जिम्मेदार बताया है। ये ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां ज्यादा दबाव के कारण हवा गर्म होने लगती है।
डेनमार्क की सरकार के डेटा के मुताबिक बर्फ पिघलने का मौसम जून से सितंबर की शुरुआत तक रहता है। इस साल अभी तक 100 अरब मेट्रिक टन बर्फ पिघलकर महासागर में मिल चुकी है। अंटार्कटिका के अलावा ग्रीनलैंड धरती की इकलौती स्थाई बर्फ की परत है, जो 17 लाख स्क्वेयर किलोमीटर में फैली है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ से धरती के फ्रेशवॉटर का 99 फीसदी हिस्सा बनता है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ये तेजी से पिघल रही हैं। 
 

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