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क्या पूर्वरोत्तार  राज्यों में गृह युध्य की आशंका?  

क्या पूर्वरोत्तार  राज्यों में गृह युध्य की आशंका?  

भाई जैसा दोस्त नहीं और भाई जैसा दुश्मन नहीं .इसके जीते जागते उदाहरण रामायण काल ,महाभारत काल से लेकर यह नियति निश्चित हैं .हमारे देश में विभाजन के बाद जो स्थिति बनी हैं वह भी आज दुशमनों से कम नहीं .आज ७३ साल हो गए दुश्मनी की दरार नहीं पट पायी ,जो एक बार हुई वह टूटी फिर जुड़ती नहीं ..यह टूटन आजादी के पूर्व से शुरू हुई थी जो विभाजन के बाद और चौड़ी हुई .
जब प्रेम होता हैं तब गलती पतली होती हैं और जब प्रेम पतला होता  हैं तब गलती मोटी हो जाती हैं
विभाजन  के बादतो दुश्मनी और संगीन हो गयी ,हर बात का विश्लेषण और पोस्ट मार्टम होना शुरू हुआ .मजेदार बात यह हैं की सब एक दूसरे की बारीक से बारीक और गुप्त बातें जानते हैं जो बहुत खतरनाक परिणाम देते हैं .जिसके उदाहरण पिछले युद्धों से पता चलता हैं की उस देश के द्वारा कितना निम्म स्तर कृत्य किया और वर्तमान में भी वही परिपाटी निभा रहे हैं .कारण उन्हें कितना भी समझाओ नहीं समझते .वे बेफिक्रे और बेशर्म हो जाते हैं ,जिसे मूढ़ हृदय बोलते हैं .लुछ नहीं समझते .
समाचार पत्रों और मीडिया के द्वारा जो समाचार प्राप्त हो रहे हैं उनसे लगता हैं की वहां की स्थिति नाजुक और ग़मगीन हैं जो निश्चित ही चिंतनीय हैं . नयी सरकार अपना दायित्व   निभा रही हैं पर मिजोरम पर बड़ी मुसीबत आ पडी कारन आसाम मुहाने पर हैं उसी के यहाँ से रसद ,आवागमन की पूर्ती होती हैं .वैसे अन्य देशो और राज्यों की सीमाओं में अनुचित और अनैतिक कार्य अधिकांश होते ही हैं .असामाजिक तत्वों को सुरक्षा मिल जाते हैं और वे इतने बलशाली और शक्तिशाली होते हैं की वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं .इन दोनों कालाबाज़ारी ,अवैध ड्रग्स ,प्रवासी का आना जाना सुगम होने से दूसरे राज्य में अव्यवस्था होने से परेशानी हो रही हैं .
सही अर्थों में नार्थ ईस्ट में हिंसात्मक प्रवत्ति  होने  से  हिंसात्मक वातावरण बना रहता हैं। जिस स्थ्ल पर हिंसा होती हैं और अपराधों का प्रचलन बहुत हैं और उनके द्वारा अन्य देशों के लोगों को संरक्षण दिया जाता हैं वहां ये घटनाएं होगी और सम्भतः विदेशी  ताकतों का भी संरक्षण मिल रहा हो तो कोई नयी बात नहीं हैं।
ऐसे मामलों में केंद्र सरकार को शीघ्र हस्तक्षेप करना मामला निपटना चाहिए जिससे अन्य प्रांतों में इस प्रकार की घटनाएं न हो। देश में अमन चैन की जरुरत हैं। इस कोरोना काल में जब देश विषम परिस्थियों से जूझ रहा हो वहां इस प्रकार का तनाव बहुत ही दुखद और चिंतनीय हैं। आपसी वार्ता से हल निकालना  चाहिए।
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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