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मिले राम और परशुराम,हवा में उड़ गये काशीराम ! 

मिले राम और परशुराम,हवा में उड़ गये काशीराम ! 

वर्ष 1984 में बसपा की स्थापना कर काशीराम ने दलित राजनीति प्रारम्भ की। जनता दल के विभाजन उपरांत सजपा से होते हुये मुलायम सिहं यादव ने 1992 में सपा की स्थापना की। उत्तर प्रदेश में 90 के दशक में पिछड़ों के नेता के रूप में मुलायम सिंह यादव एवं दलितो के नेता के रूप में काशीराम बड़े नेता के रूप मे उभरे थे। मण्डल कमीशन लागू होने के बाद उत्तर भारत की राजनीति में बड़े बदलाव की शुरूआत हुई। ज्ञात रहे कि 7 अगस्त 1990 को मण्डल कमीशन की घोषणा के बाद भाजपा ने लालकृष्ण अडवाणी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि यात्रा जिसे ”कमंडल यात्रा“ कहा गया  प्रारम्भ की गई। इस यात्रा के दौरान भाजपा ने खूब धार्मिक उन्माद फैलाया। इस यात्रा की परिणीति अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में हुई। बाबरी मस्जिद के गिरने के फलस्वरूप केन्द्र सरकार व्दारा उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार गिरा दी गई। सरकार गिरने बाद 1993 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के आम चुनाव हुये।1993 के विधान सभा चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा। इस चुनाव में एक नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ ”मिले मुलायम काशीराम, हवा में उड़ गये जय श्री राम“। चुनाव उपरान्त सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। कुछ समय बाद लखनऊ में गेस्ट हाऊस कांड हुआ जिसके बाद मुलायम सरकार गिर गई और बसपा ने भाजपा के सहयोग से मायावती के नेतृत्व में सरकार बनाई। इसके बाद मायावती 3 बार और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। मुलायम सिंह यादव भी 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद एक बार मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।  
उत्तर प्रदेश में विगत 25 वर्षो में सपा और बसपा के ही मुख्यमंत्री बनते रहे हैं। काशीराम ने बसपा के रूप में जिस 85 प्रतिशत बहुजन समाज(ओबीसी, एस सी एवं एस टी)को जागृत कर राजनैतिक रूप से सशक्त बनाया था, उसमें धीरे-धीरे कमी आती चली गई। वर्ष 2006 में काशीराम की मृत्यु के बाद बसपा की कमान पूरी तरह से मायावती के हाथ में आ गई। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव के पूर्व सतीशचन्द्र मिश्रा के प्रभाव में आकर मायावती ने बहुजन समाज को एकजुट रखने के बजाय उत्तर प्रदेश में जगह-जगह ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करवाये ताकि ब्राह्मणों के वोट लिये जा सके। बसपा ने ”हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु ,महेश है“ और ”ब्राह्मण शंख बजायगा,हाथी बढ़ता जायगा“जैसे नारे दिये। बसपा बहुजन समाज की बात छोड़कर सर्वजन समाज की बात करने लगी। ऐसा करने के कारण 2007 में बसपा ने मायावती के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार तो बना ली लेकिन वह बहुजन समाज से दूर होती चली गई। आज हालत यह है कि वर्ष 2012 से लेकर आज तक बसपा कोई चुनाव नहीं जीत पाई और धीरे-धीरे अपना समाजिक आधार खोती चली गई। पहले पिछड़े और अति पिछेड़े बसपा को छोड़कर चले गये और बाद में गैर जाटव दलित जातियों ने भी बसपा से किनारा कर लिया। ऐसा होने से वर्ष 2012, 2014, 2017 एवं 2019 के चुनावों में बसपा की करारी हार हुई। आज की तारीख में बसपा के पास मात्र 18-20 प्रतिशत वोट ही बचे हैं। ऐसे हालत में बसपा पुन: ब्राह्मण सम्मेलन करवा रही है जिसकी शुरूआत सतीशचन्द्र मिश्रा ने अयोध्या से की है। इस आयोजन में बसपा ने पहली बार ”जय श्री राम“ के नारे का उदघोष किया गया है। 
एक समय था जब 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग हो कर पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी। चौधरी चरण सिंह ने पहले भारतीय क्रांति दल फिर  भारतीय लोक दल एवं बाद में लोक दल पार्टी बनाई। इन पार्टियों का मुख्य आधार जाट , गुर्जर , अहीर, कुर्मी, त्यागी इत्यादि किसान जातियाँ होती थी। जब 1977 में केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तब चौधरी चरण सिंह के कारण ही राम नरेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।  कालान्तर में मुलायम सिंह ही चौधरी चरण सिंह की राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकारी बने लेकिन चौधरी चरण सिंह ने जिन किसान जातियों का गठजोड़ बनाया था, उन्हें मुलायम सिंह यादव साथ में नहीं रख सके। मुलायम सिंह यादव धीरे-धीरे समस्त पिछड़ी किसान जातियों के नेता न रह कर मात्र यादवों तक सीमित रह गये। उन्होने मुस्लमानों के साथ यादवों का गठजोड़ बनाया जिसे ”एम-वाई“ समीकरण के नाम से जाना गया।आज ज्यादातर पिछड़ी जातियों ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड दिया है। हालाकि 2012 में समाजवादी पार्टी सर्वणों के सहयोग से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हो गई लेकिन चूंकि ज्यादातर पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी से अलग हो गई अत: 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की बुरी हार हुई। ऐसा होने के कारण ही सपा भी आज ब्राह्मणों को लुभाने का प्रयास कर रही है ताकि 2022 में उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाई जा सके। 
2017 के विधान सभा चुनाव में गैर यादव , गैर जाटव पिछड़ी एवं दलित जातियों का गठजोड़ बना कर भाजपा ने 325 सीटो पर विजय प्राप्त कर सरकार बनाई। इसी प्रयोग से भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भारी सफलता प्राप्त की जबकि समाजवादी पार्टी 5 सीट एवं बसपा को शून्य सीट प्राप्त हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 एवं सपा को 5 ही सीटे मिली। चूंकि सपा एवं बसपा अपना ज्यादातर पिछड़ा एवं दलित आधार खो चुकी हैं अत: 2022 के आगामी विधान सभा चुनावों के लिए दोनों ही पार्टियां ब्राहम्णों को लुभाने के लिए ब्राहमण सम्मेलन आयोजित कर रही हैं। समाजवादी पार्टी प्रत्येक जिले में परशुराम की 108 फीट ऊची मुर्तियां लगाने जा रही है। मुझे नहीं लगता कि बसपा एवं सपाब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर,जय श्री राम के नारे लगा कर एवं परशुराम की मुर्ति लगा कर  सत्ता  प्राप्ती के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगी। हॉ,यह अवश्य है कि राम और परशुराम के गीत गाने से काशीराम व्दारा जो बहुजन क्रांति का शंखनाद किया गया था , उसे जरुर दफन कर देंगी और काशीराम ही हवा में उड़ जायेंगे। इनके इस कृत्य के लिए जागरुक बहुजन समाज इन्हे कभी माफ नहीं करेगा। आज भाजपा पुन: जिस तरह के सामाजिक समीकरण उत्तर प्रदेश की राजनीति में उभार रही है,उससे तो यही लगता है कि तमाम विफलताओं के बावजूद भाजपा ही उत्तर प्रदेश के 2022 के विधान सभा चुनाव में जीत प्राप्त कर सकती है। 
(लेखक- आजाद सिंह डबास/ )

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