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  चलने का नाम ही है जीवन  

  चलने का नाम ही है जीवन  


चले रे चले रे आज मुसाफिर ,
तेरी मंजिल अभी है बहुत दूर ।
है रात अंधेरी है डगर कटीली ,
फिर भी तू  मत  हिम्मत हार।। 
चलते रहने से मंजिल मिलेगी,
बाधाएं होगी तभी सभी दूर। 
हार के अगर तू बैठ गया तो ,
मंजिल फिर तुझे लगेगी दूर।।  
आसमान के अधेरे से डरकर ,
चंदा ने कब छोड़ा था चलना।
सूरज की उस तपन से डरकर , 
किस पंछी ने छोड़ा था उड़ना।।
जब तक  मृत्यु नहीं आती है,
तब तक सांसे चलती रहती है। 
मृत्यु से पहले कभी भी सांसे,
जीवन में नहीं रुका करती है।। 
जन्म मरण का यही रहस्य है,
चलने का ही नाम है जीवन। 
रुक जाने  का नाम मृत्यु है,
जीवन मृत्यु का यही है ज्ञान।।

 लेखक:-बृज किशोर सक्सेना  किशोर ) 

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