दौर बचपन का महकता, खुश हुआ व्यवहार है।
भाव की माला पिरोकर, द्वार पर त्योहार है।।
हो गए धागे सुहाने,
रोलियाँ माथे सजीं।
हैं दुआएँ खुशनुमा सब,
सरगमें लय में बजीं।।
प्रीति ने अँगड़ाई ली, और प्रेममय मनुहार है।
भाव की माला पिरोकर, द्वार पर त्योहार है।।
राग महके आज तो बस,
द्वेष की तो है विदा।
दीप थाली में सजे हैं,
प्रेम की गूँजे सदा।।
सात्विकता की विजय है, निष्कलुष उपहार है।
भाव की माला पिरोकर, द्वार पर त्योहार है।।
गीत मौसम गा रहा है,
सज गए कर भाई के।
हर बहन खुशियों भरी है,
अश्रु भावुक माई के।।
थक गईं कटुताएँ सारी,झूठ की तो हार है।
भाव की माला पिरोकर, द्वार पर त्योहार है।।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे )