काफल कहे या कट्फल (Kafal fruit), इस जड़ी-बूटी का नाम शायद बहुत कम लोगों नें सुना होगा। लेकिन आयुर्वेद में सदियों से काफल का प्रयोग औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। काफल एक प्रकार का सदाबहार झाड़ी होता है जिसका फल थोड़ा-बहुत ब्लैकबेरी के तरह देखने में होता है।
काफल क्या होता है?
कायफल प्रकृति से कड़वा, तीखा, गर्म और लघु होता है। यह कफ और वात को कम करने वाला तथा रुचिकारक होता है। इसके साथ ही यह शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है।
कट्फल सोमवालकश्च कैटयः कुम्भिकापि च .श्रीपर्णिका कुमुदिका भद्रा भद्रवतीति च .
कट्फलस्तुवरस्तितकाः कटुवार्ट्क़फ ज्वरां .हन्ति श्वासप्रमेहाश्र कासकंडुवामवारुचिः ..(भ .प्रा)
कायफल सांस संबंधी समस्या, प्रमेह या डायबिटीज, अर्श या पाइल्स, कास, अरुचि यानि खाने में रुचि न होना, कण्ठरोग, कुष्ठ, कृमि, अग्निमांद्य या अपच, मेदोरोग या मोटापा, मूत्रदोष, तृष्णा, ज्वर, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome), पाण्डुरोग या एनीमिया, धातुविकार, मुखरोग या मुँह में छाले या सूजन, पीनस (Rhinitis), प्रतिश्याय (Coryza), सूजन तथा जलन में फायदेमंद होता है।
इसकी तने की त्वचा सुगंधित, उत्तेजक, बलकारक, पूयरोधी (Antiseptic), दर्दनिवारक, जीवाणुरोधी (बैक्टिरीया को रोकने वाला), विषाणुरोधी (वायरस को रोकने वाला) होती है।
वानास्पतिक नाम मिरिका एस्कुलेन्टा । काफल Myricaceae (मिरीकेसी) कुल का है।
अंग्रेजी में काफल को Box myrtle (बॉक्स मिर्टल्) कहते हैं
संस्कृत में -कट्फल, सोमवल्क, महावल्कल, कैटर्य :, कुम्भिका, श्रीपर्णिका, कुमुदिका, भद्रवती, रामपत्री;
हिंदी में -कायफर, कायफल, काफल;
फायदे
आयुर्वेद में काफल के बीज, फूल और फल का प्रयोग किया जाता है जिसमें सबसे ज्यादा पत्तियों का इस्तेमाल उपचार के रुप में किया जाता है।
सिरदर्द में
काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो काफल का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होगा।
कायफल के छाल का चूर्ण बनाकर नाक से सांस लेने पर कफ जनित सिरदर्द से राहत मिलता है।
कटफल चूर्ण तथा मरिच चूर्ण को मिलाकर सूंघने से भी सिरदर्द कम होता है।
कायफल के तेल को 1-2 बूंद नाक में डालने से आधासीसी का दर्द तथा प्रतिश्याय (Coryza) से राहत मिलती है।
आँखों के रोग
आँख संबंधी बीमारियों में बहुत कुछ आता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में काफल से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। गोमूत्र, घी, समुद्रफेन, पीपल, मधु तथा कायफल को सेंधानमक के साथ मिलाकर बांस की नली में संग्रह करके आँखों में काजल की तरह लगाने से आँखों के बीमारी से राहत मिलती है।
नाक के रोगों
नकछिकनी तथा कट्फल के चूर्ण को मिलाकर नाक से सांस लेने से नाक संबंधी रोगों में लाभ होता है। (इसका नस्य लेने से छींक आती है।)
कान के रोग
अगर सर्दी–खांसी या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर कान में दर्द होता है तो काफल से इस तरह से इलाज करने पर आराम मिलता है। कटफल को तेल में पकाकर-छानकर, 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णशूल (कान का दर्द) से आराम मिलता है।
दांत दर्द में
अगर दांत दर्द से परेशान हैं तो काफल का इस तरह से सेवन करने पर जल्दी आराम मिलता है।
कायफल के तने के छाल को चबाकर दांतों के बीच दबाकर रखने से दांत दर्द दूर होता है।
कायफल चूर्ण को सिरके में पीसकर दांतों पर रगड़ने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।
कायफल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गलगण्ड या घेंघा, दांतदर्द तथा गले का संक्रमण का शमन होता है।
सांस संबंधी
अगर किसी कारणवश सांस लेने में समस्या हो रही है तो तुरन्त आराम पाने के लिए काफल का सेवन ऐसे करने से लाभ मिलता है। 1 ग्राम बृहत्कट्फलादि चूर्ण में 500 मिली अदरक का रस तथा मधु मिलाकर सेवन करने से कफ जनित रोग, वात जनित रोग, दर्द, खाना खाने की इच्छा में कमी, श्वास-कास तथा क्षय रोग यानि टीबी रोग में लाभ होता है।
खाँसी
अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो काफल से इसका इलाज किया जा सकता है।
कट्फल, पुष्कर की जड़, पिप्पली तथा काकड़ा शृंगी से बने चूर्ण (1-2 ग्राम) में मधु मिलाकर चाटने से खांसी, बुखार तथा कफ संबंधी रोगों में लाभ होता है।
कायफल, धनिया, मोथा, कर्कट शृंगी, वच, हरीतकी, भारंगी, पर्पट, सोंठ तथा देवदारु आदि से बने काढ़े (10-20 मिली) में 500 मिग्रा हींग तथा 2 चम्मच मधु मिलाकर पीने से खांसी, सांस संबंधी रोग, मुखरोग, बुखार तथा कफज-विकारों में लाभ होता है।
10-20 मिली कायफल की त्वचा के काढ़े को पीने से सांस संबंधी समस्या, फूफ्फूस-संक्रमण तथा सांस की नली में सूजन में लाभ होता है।
1 ग्राम कटफल चूर्ण में 2 ग्राम गुड़ तथा 5 मिली तेल मिलाकर चाटने से सांस संबंधी समस्या तथा खांसी से राहत मिलता है।
दस्त
अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहा तो काफल का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।
-1-2 ग्राम कायफल चूर्ण को दो गुना मधु के साथ मिलाकर सेवन करने से दस्त में लाभ होता है।
-10-30 मिली कायफल के छाल का काढ़ा बनाकर का सेवन करने से दस्त, प्रवाहिका तथा जठरांत्र संक्रमण में लाभ होता है।
-कटफल तथा बेल गिरी का काढ़ा बनाकर, 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से दस्त से राहत मिलता है।
मस्से में फायदे
काफल का पेस्ट मस्सों पर लगाने से तुरन्त आराम मिलता है। कटफल को महीन पीसकर उसमें घी मिलाकर मस्सों पर लगाने से मस्से नष्ट हो जाते हैं।
श्वेत प्रदर या सफेद पानी में
कायफल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से डिलीवरी होने के बाद ब्लीडिंग, अतिमासिकस्राव तथा श्वेत प्रदर के परेशानी से लाभ मिलता है।
नपुंसकता में लाभकारी
कटफल छाल को भैंस के दूध में पीसकर रात को इन्द्रिय (कामेन्द्रिय) पर लेप करने के बाद सुबह धो लेना चाहिए। इसका प्रयोग कई दिनों तक करने से नपुंसकता मिटती है। कटफल छाल तेल को कामेन्द्रिय पर मलने से भी नपुंसकता दूर होती है।
अल्सर की परेशानी
कायफल तने के छाल से घाव को धोने के बाद समान भाग अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा काफल छाल से बने चूर्ण को व्रण या घाव पर डालने से अल्सर का घाव जल्दी भरता है।
पेट दर्द
अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। 1 ग्राम कटफल चूर्ण में चुटकी भर नमक मिलाकर खिलाने से पेट दर्द दूर होता है।
लकवा
कटफल तेल की मालिश करने से पक्षाघात (लकवा) में भी लाभ होता है।
रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना)
1-2 ग्राम उशीरादि चूर्ण अथवा 1-2 ग्राम कायफल चूर्ण में समान मात्रा में लाल चंदन चूर्ण मिलाकर, शर्करा युक्त चावल के धोवन के साथ सेवन करने से रक्तपित्त, सांस संबंधी समस्या, पिपासा तथा जलन में फायदेमंद होता है।
बुखार करे कम
अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में काफल बहुत मदद करता है।
-कायफल, नागरमोथा, भारंगी, धनिया, रोहिषतृण, पित्तपापड़ा, वच, हरीतकी, काकड़ा शृंगी, देवदारु तथा शुण्ठी, इन 11 द्रव्यों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से हिक्का, खाँसी तथा बुखार से छुटकारा मिलता है।
-1-2 ग्राम कट्फलादि चूर्ण में मधु अथवा अदरक का रस मिलाकर सेवन करने से बुखार, खांसी तथा सांस संबंधी समस्या, खाना खाने की इच्छा में कमी, वातरोग, उल्टी, दर्द तथा क्षय रोगों या टीबी में फायदेमंद होता है।
-कट्फल, इन्द्रयव, पाठा, कुटकी तथा नागरमोथा, इन द्रव्यों से बने 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से पित्त के कारण जो बुखार होता है, वह कम होता है।
-1 ग्राम कटफल चूर्ण में 500 मिग्रा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर मधु के साथ चटाने से कफ जनित बुखार से राहत मिलता है।
अत्यधिक पसीना से दिलाये राहत
कटफल चूर्ण को बारीक पीसकर उसमें सोंठ चूर्ण मिलाकर शरीर पर मर्दन (रगड़ने) करने से अत्यधिक पसीना निकलना बंद हो जाता है।
सूजन करे कम कटफल चूर्ण को पानी में पीसकर सूजन पर लगाने से सूजन कम हो जाता है।
काफल का उपयोगी भाग
आयुर्वेद में काफल के छाल, फूल, बीज तथा फल का प्रयोग औषधि के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है।
उपयोग
आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार
-2-4 ग्राम काफल का चूर्ण,
-30-60 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।
योग --कटफलादि क्वाथ
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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