उपवास का सामान्यतः यह अर्थ लगाया जाता हैं की हम अन्न का त्याग करे परन्तु वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से इसके अर्थ अन्य हैं .
चतुराहार विसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः .
सा .प्रोषधोपवासो यदुपोष्यारम्भमाचरति (रत्नकरण्डक श्रावकाचार १९)
चार प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास हैं .एक बार भोजन करना प्रोषध हैं और जो उपवास करने के बाद पारणा के दिन एक बार भोजन करता हैं वह प्रोषधोपवास हैं .
आहार चार प्रकार का होता हैं ---
१ अशन २ पेय ३ स्वाद्य ४ खाद्य (अ ,श्रा .६/९७ )
१ अन्न २ पान ३ खाद्य ४ लेह्य (र .क .श्रा १०९ )
अशन --- मुंग ,भात आदि अशन हैं .
पेय --- दूध ,जल आदि पेय हैं .दाख आदि का रस पान हैं .
स्वाद्य ---ताम्बूल ,दाड़िमादि स्वाद्य हैं .
खाद्य ---पुआ आदि खाद्य हैं
अन्न ---दाल ,भात आदि अन्न हैं .
लेह्य --रबड़ी आदि लेना लेह्य हैं .
प्रोषधोपवास करने से क्या लाभ हैं ?
जो ज्ञानी आरंभ को छोड़कर उपशम भाव पूर्वक एक भी उपवास करता हैं वह बहुत भावों के संचित किये हुए कर्म को लीला भाव से क्षय कर देता हैं .तथा जो उपवास करते हुए मोह वश आरम्भ करता हैं वह अपने शरीर को सुखाता हैं उसके लेश मात्र भी कर्मों की निर्जरा नहीं होती हैं (का.अ .३७७-७८ )
कुछ या सभी भोजन, पेय या दोनो के लिये बिना कुछ अवधि तक रहना उपवास कहलाता है। उपवास पूर्ण या आंशिक हो सकता है। यह बहुत छोटी अवधि से लेकर महीनो तक का हो सकता है। उपवास के अनेक रूप हैं। धार्मिक एवं आध्यात्मिक साधना के रूप में प्रागैतिहासिक काल से ही उपवास का प्रचलन है।
इन सब प्रकार के उपवासों का शरीर पर समान प्रभाव पड़ता है। एक बार भोजन ग्रहण करने पर कुछ घंटों तक जो शरीर को खाए हुए आहार से शक्ति मिलती रहती है, किंतु उसक पश्चात् शरीर में संचित आहार के अवयवों-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और स्नेह या वसा-का शरीर उपयोग करने लगता है। वसा और कार्बोहाइड्रेट परिश्रम करने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। प्रोटीन का काम शरीर के टूटे फूटे भागों का पुनर्निर्माण करना है। किंतु जब उपवास लंबा या अधिक काल तक होता है तो शक्ति उत्पादन के लिए शरीर प्रोटीन का भी उपयोग करता है। इस प्रकार प्रोटीन ऊतकनिर्माण (टिशू फॉर्मेशन) और शक्ति-उत्पादन दोनों काम करता है
शरीर में कार्बोहाइड्रेट दो रूपों में वर्तमान रहता है : ग्लूकोस, जो रक्त में प्रवाहित होता रहता है और गलाइकोजेन, जो पेशियों और यकृत में संचित रहता है। साधारणतया कार्बोहाइड्रेट शरीर प्रतिदिन के भोजन से मिलता है। उपवास की अवस्था में जब रक्त का ग्लूकोस खर्च हो जाता है तब संचित ग्लाइकोजेन ग्लूकोस में परिणत होकर रक्त में जाता रहता है। उपवास की अवस्था में यह संचित कार्बोहाइड्रेट दो चार दिनों में ही समाप्त हो जाता है; तब कार्बोहाइड्रेट का काम वसा को करना पड़ता है और साथ ही प्रोटीन को भी इस कार्य में सहायता करनी पड़ती है।
अगर आप फिटनेस लवर हैं और हमेशा खुद को एक शेप में मेंटेन रखना चाहते हैं तो एक्सपर्ट ने ड्राई फास्टिंग का तरीका बताया है।
यदि आप एक फिटनेस उत्साही हैं तो ज्यादा खान-पान की ज्यादा चीजों की ओर आपका मन नहीं ललचाता होगा। ऐसा भी कह सकते हैं कि फिटनेस फ्रीक लोग फास्टिंग में ज्यादा भरोसा करते हैं। लेकिन नौसीखिए फिटनेस शौकीनों को सोशल मीडिया वायरल होने वाले ऐसे तरीकों से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होने वाला।
फास्ट अगर सही तरीके से किया जाए, तो शरीर की मरम्मत और उसे स्वस्थ करने के लिए काफी मदद मिल सकती है। शरीर के भीतर सभी अंगों के बेहतर कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।..
ड्राई फास्टिंग
ल्यूक की ड्राई फास्टिंग चुनौती सूर्यास्त से सूर्योदय तक 12 घंटे के लिए भोजन और पानी से परहेज करने का सुझाव देती है। इसकी तैयारी के लिए, वह आपकी शारीरिक गतिविधि के आधार पर दिन में 8 से 14 गिलास पानी से खुद को हाइड्रेट करने का सुझाव देते हैं। , रात का खाना सूर्यास्त के समय या सूर्यास्त के एक घंटे के भीतर समाप्त करें। इसके बाद अगली सुबह तक पानी और भोजन से परहेज करें।
कुछ के लिए, भूख और प्यास एक आदतन प्रतिक्रिया के रूप में हो सकती है। लेकिन जब तक आपका स्वास्थ्य खराब नहीं हो रहा है, तब तक इसमें शामिल न हों। यहां तक कि अगर आप पहली रात ठीक से सो नहीं पाते हैं, जो एक दुर्लभ मामला है, तो हार न मानें। इसे लगातार पांच से छह दिन तक जारी रखें।
ड्राई फास्टिंग के लाभ
1. चीनी और कैफीन की इच्छा कम हो जाती है।
2. भूख कम होने से वजन कम होने को बढ़ावा मिलता है।
3. आप नियमित अंतराल पर भोजन करते हैं, क्योंकि आप अपने शरीर को एक चक्र का पालन करने के लिए ट्रेंड कर रहे हैं।
4. ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है।
5. बेहतर स्पष्टता और फोकस का लेवल बूस्ट होता है।
6. मेडीटेशन और योग की प्रैक्टिस में सुधार होता है।
6. त्वचा और बालों की समस्या अपने आप दूर होने लगती है।
7. यह सूजन के स्तर को कम करता है जो गठिया और अन्य तरह की सूजन को कम करने में मदद करता है।
ये लोग न करें ड्राई फास्टिंग
एक्सपर्ट के अनुसार, कुछ ऐसे मामले भी हैं जहां इसका पालन नहीं किया जाना चाहिए। ल्यूक सुझाव देते हैं कि सबसे पहले आपको अपने शरीर की क्षमता के बारे में समझना होगा। आपको ये जानना जरूरी है कि ड्राई फास्टिंग पर काम कर रहे है या नहीं।
सीरियस ऑटो-इम्यून सिस्टम और थायरॉयड ग्रंथि मुद्दों वाले लोगों के लिए, 12 घंटे की ड्राई फास्टिग हानिकारक हो सकती है। फिर भी ऐसे लोग इसमें रुचि रखते हैं तो 8 घंटे से शुरू करें और इसे आराम स्तर के अनुसार बढ़ाएं।
ड्राई फास्टिंग पर क्या कहता है शोध
द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के प्रकाशित शोध के अनुसार, ड्राई फास्टिंग से ब्लड शुगर लेवल कम होता है और इसे फॉलो कर लोग लंबी उम्र तक जीवन जी सकते हैं। इसके अतिरिक्त इससे मोटापा, कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम का जोखिम भी कम होता है। जॉन हापकिंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और प्रोफसेर मार्क मैटसन दो तरह की इंटरमीटेंट फास्टिंग करने का सुझाव देते हैं।
उपवास के प्रभाव
उपवास में कुछ दिनों तक शारीरिक क्रियाएँ संचित कार्बोहाइड्रेट पर, फिर विशेष संचित वसा पर और अंत में शरीर के प्रोटीन पर निर्भर रहती हैं। मूत्र और रक्त की परीक्षा से उन पदार्थों का पता चल सकता है जिनका शरीर पर उस समय उपयोग कर रहा है। उपवास का प्रत्यक्ष लक्षण है व्यक्ति की शक्ति का निरंतर ह्रास। शरीर की वसा घुल जाती है, पेशियाँ क्षीण होने लगती हैं। उठना, बैठना, करवट लेना आदि व्यक्ति के लिए दुष्कर हो जाता है और अंत में मूत्ररक्तता (यूरीमिया) की अवस्था में चेतना भी जाती रहती है। रक्त में ग्लूकोस की कमी से शरीर क्लांत तथा क्षीण होता जाता है और अंत में शारीरिक यंत्र अपना काम बंद कर देता है
उपवास तोड़ना
उपवास तोड़ने के भी विशेष नियम हैं। अनशन: प्राय: फलों के रस से तोड़ा जाता है। रस भी धीरे-धीरे देना चाहिए, जिससे पाचकप्रणाली पर विशेष भार न पड़े। दो तीन दिन थोड़ा रस लेने के पश्चात् आहार के ठोस पदार्थों को भी ऐसे रूप में प्रारंभ करना चाहिए कि आमाशय आदि पर, जो कुछ समय से पाचन के अनभ्यस्त हो गए हैं, अकस्मात् विशेष भार न पड़ जाए। आहार की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए। इस अवधि में शरीर विशेष अधिक मात्रा में प्रोटीन ग्रहण करता है, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है।
उपवास काल में एवं लम्बे उपवास को तोड़ते समय क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?
उपवास प्रारम्भ होने पर नित्य के नियमानुसार भोजन से शरीर को शक्ति प्राप्त नहीं होती, अतएव इसके लिये अन्य उपाय कामें लाने चाहिए, यथा-शुद्ध वायु और शुद्ध जल का उपयोग। शुद्ध वायु में गहरी सांस लेने से प्राणवायु के स्पर्श से रक्त में पहले से उपस्थित विषेले तत्व दूर होते हैं। उपवास काल में कोई अप्राकृतिक खाद्य शरीर में नही जाता, अतएव विजातीय द्रव्य रक्त में नहीं मिलते तथा उसकी शुद्धि होती है। धूप-स्नान से शरीर को अनेक विटामीन मिलते हैं तथा रोगों के कीटाणु नष्ट होते हैं।
उपवास काल में अधिक पानी पीना चाहिये, जिससे कि अधिक मूत्र विसर्जन के माध्यम से शरीर से अधिक गन्दगी बाहर हो। मूत्र गुर्दो में रक्त छनकर बनता हैं, अतएव रक्त में जल की अधिकता होने से अधिक गन्दगी साफ होती है। उपवास शारीरिक स्थिति एवं रोग के अनुसार 2-3 दिन से लेकर निरन्तर दो मास तक किया जा सकता हैं। एक सप्ताह से अधिक का उपवास लम्बे उपवास की श्रेणी में आता हैं। लम्बा उपवास अत्यन्त सावधानी पूर्वक विधिवत किया जाना चाहिए, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि का भय रहता हैं। लम्बे उपवास तोड़ने में काफी सावधानी बरतनी चाहिए। नींबू के पानी या सन्तरे-मौसमी आदि के रस से तोड़ना चाहिए। फिर एक दिन तक मौसम के फल लेने चाहिए। जितने दिन तक उपवास किया गया हो, उसके चौथाई समय तक फल लेने चाहिए, तदुपरान्त अन्न खाना चाहिए। पर यह ध्यान रखना चाहिए कि उपवास के बाद पुन: गलत भोजन न ले। ऐसा करने पर उपवास का लाभ भा जाता रहेगा तथा शरीर शुद्ध हो जाने पर यदि विजातीय द्रव्य शरीर में जाएगा तो पूरी मात्रा में वह शरीर के लिए हानिकारक होगा।
(लेखक-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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