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मौके का फायदा मोदी बाबू.... समझो इशारे.... महबूबा पुकारे....  रम्..., पम्..., पम्...?

मौके का फायदा मोदी बाबू.... समझो इशारे.... महबूबा पुकारे....  रम्..., पम्..., पम्...?


’अफगानिस्तान-तालिबान‘ घटनाक्रम ने कहां-कहां तक असर डाला है? उसका खुलासा अब होने लगा है, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के दो साल बाद अब वहां के नाराज नेताओं को मोदी सरकार को खुलकर धमकाने का मौका मिला है, इस मामले में आज मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के सियासी दलों के संयुक्त संगठन ’गुपकर‘ की अहम्् बैठक भी होने वाली हे, जिसमें भारत के आसपास के मौजूदा हालातों से जम्मू-कश्मीर कैसे फायदा उठा सकता है? इस अहम्् सवाल पर गंभीर विचार-विमर्श व चिंतन होगा, वैसे राज्य के सियासी मामलों में एक-दूसरे के पूरक रहे स्थानीय सियासी दल अब अनुच्छेद 370 की पुन: वापसी के मुद्दें पर एकजूट हो गए है और उन्होंने गुपकर का गठन किया है, जिसकी अगुवाई फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती कर रहे हैं, अब आज इसकी अहम्् बैठक है।  
इस बैठक का मूल मकसद पड़ौसी अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा किए गए कब्जे के संदर्भ में कश्मीर में अपनी सियासी रोटी सेंकना और  मोदी सरकार का विरोध करना है। इस बैठक के पहले ही महबूबा मुफ्ती ने एक विवादित बयान दिया है, जिसमें मोदी सरकार को  खुलेआम धमकी देते हुए कहा गया है कि ”कश्मीर के मामले में मोदी सरकार अभी भी नहीं सुधरी तो यहां भी अफगानिस्तान जैसे अंजाम होगा।“ अर्थात्् महबूबा जी खुलकर यह बताने का प्रयास कर रही है कि उनका तालिबान के साथ ’चोली-दामन‘ का साथ है और कश्मीर को यदि अनुच्छेद-370 नहीं लौटाया गया तो यहां भी अफगानिस्तान जैसे ही हालात होगें।  
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ सियासी मसलों को लेकर कुछ दिन पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने महबूबा जी की माँ गुलशन नजीर से लम्बी पूछताछ की थी, उसी से बौखलाकर महबूबा ने मोदी सरकार के खिलाफ धमकी भरा बयान जारी किया है। उन्होंने अपने बयान में कहा  कि अगर जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नेताओं की मांग नहीं मानी गई तो फिर मोदी सरकार को गंभीर नतीजें भुगतने होंगे।  
अफगानिस्तान घटनाक्रम के बाद अभी तक सियासी गलियारों में जो यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि चीन व पाकिस्तान सिर्फ और सिर्फ भारत पर अपना दबाव बनाने के लिए तालिबान के समर्थक बने हुए है, उसे महबूबा के बयान ने हकीकत में बदल दिया है, भारत सरकार चूंकि इस अफगानी घटनाक्रम को लेकर लगातार मौन साधे बैठी है, उससे यह संदेश पूरे विश्व में फैलाने का यह प्रयास किया जा रहा है कि मोदी सरकार भी तालिबान से डरी-सहमी है और अपना मुंह नहीं खोल पा रही है।  
....और सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह भी है कि इतने खतरनाक देश विरोधी बयान देने के बाद भी महबूबा के खिलाफ अब तक किसी भी स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। अब क्या सरकार ”गुपकार संगठन“ के सामुहिक बयान का इंतजार कर रही है? किंतु यह सभी मानते है कि महबूबा के इस बयान ने जम्मू-कश्मीर की भावी डरावनी फिल्म का ट्रेलर जरूर उजागर कर दिया है, फिर सबसे अहम्् बात यह भी है कि भारत की पूर्व यूपीए सरकार की तरह मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया और उसने मानवीय व मनोवैज्ञानिक तरीकों के बाद सियासी तरीकों से जोर- जबरदस्ती कर वहां के मसले हल करने की कौशिशें की, जिसका उदाहरण 370 अचानक खत्म करना है। फिर जम्मू-कश्मीर जैसे विवादित व सियासी समस्या ग्रस्त राज्य को राजनेता के हवाले कर दिया गया, जबकि यूपीए सरकारें वहां राज्यपाल या उप-राज्यपाल की नियुक्ति पर सुरक्षा सेवा (आर्मी या पुलिस) से जुड़े शख्स की करती थी, जो साम-दाम-दण्ड-भेद तरीके से वहां के स्थानीय विवादित मुद्दों को हल करते थे, किंतु अब वहां ऐसे-ऐसे उप-राज्यपाल भेजे जाने लगे जो पाक की बंदूक से कश्मीरी लाठी के मुकाबले की बात कर रहे है। ....और लाठी चार्ज को सही ठहरा रहे है, इस माहौल में आम कश्मीरी की सहानुभूति व सहयोग भारत सरकार को कैसे मिल सकते है? यह कश्मीर समस्या को गंभीरता  से नहीं लेने का ताजा उदाहरण है।  
अब आज स्थिति यह है कि न तो कश्मीर से निष्कासित पंडितों की वापसी का वादा सरकार पूरा कर पा रही है और न ही वहां के नागरिकों में कोई आम विश्वास ही पैदा करने के प्रयास किये जा रहे है, इसीलिए वहां के निष्कासित पंडितों को व्यंग में सरकार से पूछना पड़ रहा है कि ”आप मंदिर तो कश्मीर में बनवा रहे है, पर उनमें स्थापित देवता की पूजा और उनका रख-रखाव कौन करेगा?“ 
इस प्रकार कुल मिलाकर सरकार अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद न तो इस ’स्वर्ग‘ को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर रही है और न ही उसके प्रति गंभीरता ही दिखा रही है, ऐसे में महबूबा जैसे स्थानीय नेता करें तो क्या? 
 (लेखक- ओमप्रकाश मेहता )
 

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