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कृष्ण-लीला 

कृष्ण-लीला 

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  धर्म, नीति का सार थे, राधा के गोपाल।
 उनके कारण धन्य है, द्वापर का वह काल।।

 बचपन से करते रहे, लीलाएँ घनश्याम।
 नहीं हुई तब ही कभी, सत्य, न्याय की शाम।।

नटनागर का रूप है, सचमुच में कुछ ख़ास।
बचपन से देते रहे, सबको वे आभास।।

माखन खाकर बन गए, गिरिधर तो ख़ुद चोर।
यह लीला रोचक रही, नाचा मन का मोर।।

पराभूत कर कालिया, सिद्ध किया देवत्व।
कंस मारकर कर दिया, रक्षित न्यायिक तत्व।।

रास रचैया कृष्ण का, होता है यशगान।
घर-घर में जो बन गए, सचमुच मंगलगान।।

अर्जुन का बनकर सखा, मार दिया अन्याय।
समरभूमि में कर दिया, सचमुच चोखा न्याय।।

हरने सबके मोह को, दिया युद्ध में ज्ञान।
गीता के दिव्यत्व से, दूर भगा अज्ञान।।

लीला करके कृष्ण ने, बाँटा था उत्साह।
नंद-यशोदा लाल ने, रच डाला था वाह।।

कृष्ण धर्म के सार हैं, ईश्वर के अवतार।
हे भगवन हमको करो, भवसागर से पार।।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे )
 

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