YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

क्या मायावती की बसपा आज भाजपा की बी-टीम हो गई है! 

क्या मायावती की बसपा आज भाजपा की बी-टीम हो गई है! 

6 माह बाद उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा और सपा चुनावी तैयारियों में जोर-शोर से लगी हुई हैं। कांग्रेस पार्टी भी यदा-कदा अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। उत्तर प्रदेश के अन्य छोटे दल जैसे अपना दल, राष्ट्रीय लोकदल, महान दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी, आप पार्टी इत्यादि भी अपने-अपने तरीके से सक्रिय हैं लेकिन बसपा बहुत ही रहस्यमईढ़ग से चुप्पी साधे हुए है। वो मायावती जो चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, कतई सक्रिय दिखाई नहीं पड़ रही हैं। राजनैतिक विश्लेषक इसके मायने तलाशने में लगे हुए हैं। 
एक समय था जब बसपा की उत्तर प्रदेश में तूती बोलती थी। बहुत पुरानी बात नहीं है जब 2007 के विधान सभा चुनाव में 212 सीटें जीत कर बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इस चुनाव के पूर्व बसपा के संस्थापक काशीराम की वर्ष 2006 में मृत्यु हो चुकी थी और 2007 का चुनाव मायावती ने अपने बलबूते लड़ा और जीता। हालांकि इस चुनाव को जीतने के लिए मायावती ने सतीशचन्द्र मिश्रा की अगुवाई में तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग के तहत प्रदेश में जो ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन करवाये उससे उसे ब्राह्मण समुदाय के 15-20 प्रतिशत वोट तो अवश्य मिले और पार्टी सरकार बनाने में भी कामयाब रही लेकिन सरकार चलाने में ब्राह्मणों का जो वर्चस्व रहा उससे बसपा से जुडी अनेक दलित और अति पिछड़ी जातियां उससे अलग हो गई। गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 312 सीटे जीती और 39.67 प्रतिशत वोट प्राप्त किये। सपा 311 पर लड़ी, 47 जीती और 21.8 प्रतिशत वोट प्राप्त किये। कांग्रेस 114 पर लड़ी, 7 जीती और 6.25 प्रतिशत वोट प्राप्त किये जबकि बसपा 403 सीटों पर लड़ी, मात्र 19 जीती और लगभग 20 प्रतिशत  वोट प्राप्त किये। यहाँयह भी गौरतलब है कि कुल 85 आरक्षित सीटों में से भाजपा ने जहां 2012 में मात्र 3 सीटे जीती थी वही भाजपा 2017 में 69 सीटेंजीतने में कामयाब हो गई। सपा ने जहां 2012 में 58 सीटें जीती थी उसे 2017 में मात्र 7 सीटें मिली जबकि बसपा 2012 में 13 और 2017 में मात्र 2 सीटें ही जीत पाई। आज बसपा के पास मात्र 19 विधायक हैं जिनमें से 11 निष्कासित हो चुके हैं और 9 विधायक अखिलेश यादव से मिल चुके हैं। आज मायावती के पास जाटव को छोड़ कर दलित वोट भी नहीं बचा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटव वोट में भी चन्द्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी ने सेंध लगा दी है।  
आजकल मायावती बसपा के पुराने वोट बैंक दलित और पिछड़ी/अति पिछड़ी जातियों को छोड़कर ब्राह्मण सम्मेलन करवाने में व्यस्त हैं। वे या तो इस गलतफहमी में ये सम्मेलन करवा रही हैं कि उत्तर प्रदेश के भाजपा से नाराज ब्राह्मणों के वोट उन्हें मिल जावेंगे या उन्हें 2007 वाले पुराने दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण गठजोड़ बनने की उम्मीद है। मेरे मतानुसार ये दोनों ही बातें नहीं होने वाली हैं। मुझे लगता है कि बसपा का मुख्य उद्देश्य भाजपा से नाराज ब्राह्मणों का वोट पाना नहीं है अपितु यह वोट अखिलेश यादव की सपा को न मिल पावे, इसी कारणवश बसपा ये सम्मेलन कर रही है। वास्तविकता यह भी है कि मुसलमान भी आज बसपा को वोट देने वाला नहीं है। मुसलमानों को भली-भांति ज्ञात है कि मायावती ने मुसलमानों के हितों के  विरूद्ध अनेक कार्य किये हैं। कुछ समय पूर्व ही सीएए पर हुई वोटिंग के दौरान मायावती ने भाजपा का साथ दिया है। धारा 370 पर होने वाली वोटिंग के दौरान भी बसपा ने सदन से वॉक आउट कर भाजपा का साथ दिया है। बसपा के इसी सहयोग के एवज में कुछ माह पूर्व हुए राज्य सभा उपचुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा ने 8 सीटों पर ही चुनाव लड़ा और एक सीट बसपा के रामजी गोतम के लिए छोड़ दी। ऐसा होने से बसपा के रामजी गोतम भाजपा के सहयोग से राज्य सभा के लिए चुन भी लिए गये जबकि भाजपा 10 मे से 9 सीटेंस्वयं जीत सकती थी। ये तीनों कदम यह सिद्ध करने के लिए प्रयाप्त हैं कि बसपा अब भाजपा के साथ है। यह बात अलग है कि बसपा का यह साथ सीबीआई/ ईडी जैसी केन्द्रीय एजेन्सियों के दबाव में है अथवा भविष्य में मिल सकने वाले उपराष्ट्रपति/राष्ट्रपति पद के प्रलोभन में। दोनों ही स्थितियों में बसपा देश का बड़ा अहित करने जा रही है। 
उपरोक्त परिस्थितियां यह दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि आज बसपा एक तरफ जहां अपना जनाधार खो चुकी है वहीं दूसरी ओर भाजपा के पाले में खड़ी दिखाई देती है। काशीराम के जमाने का एक भी नेता चाहे वह पिछड़ा/अति पिछड़ा वर्ग का हो अथवा उसी दलित वर्ग का जिससे मायावती स्वयं आती हैं, आज बसपा के साथ नहीं है। इस दयनीय हालत के लिए कोई ओर नहीं अपितु मायावती स्वयं जिम्मेदार हैं। ऐसा नहीं है कि मायावती के मुख्यमंत्री के 4 कार्यकालों के दौरान दलितों एवं पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं हुआ लेकिन उनके कार्यकाल में हुआ भ्रष्टाचार उन पर भारी पड़ रहा है। मायावती पर आय से अधिक सम्पत्ति के मामले हैं। उनके कार्यकाल के कई बड़े भ्रष्टाचार के मामले भी लम्बित हैं। अपने को इन भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों से बचाने के लिए ही आज मायावती भाजपा के पाले में जाने हेतु मजबूर हैं। अत्यन्त दुख का विषय है कि जिस बसपा को काशीराम ने अपने खून पसीने से सींचा था और बसपा को एक राजनैतिक दल ही नहीं अपितु सामाजिक परिवर्तन का एक बड़ा औजार बनाया था, मायावती की करतूतों ने उसे मिटा दिया है। कितनी तकलीफ की बात है कि जो बसपा देश की पहले या दूसरे नम्बर की राष्ट्रीय पार्टी हो सकती थी, वह आज उत्तर प्रदेश से भी मिटने जा रही है। ऐसा होने से उन लाखों, करोड़ों गरीबों के सपने चकना-चूर हो गये हैं जिन्होंने कभी बसपा के माध्यम से देश में सामाजिक क्रांति का सपना देश था। यह सब अतिलोभ- लालच के कारण हुआ है।  
कालान्तर में की गई अनेक गलतियों के कारण बसपा आज हाशिंये की पार्टी बन गई है। आज बसपा के पास भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं है।ऐसी स्थिति में जब पार्टी राजनैतिक रूप से विफल होने जा रही है तब भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने के बजाए मायावती की नजर भविष्य में होने वाले उपराष्ट्रपति/राष्ट्रपति के  पद पर होगी। ऐसे ही राजनैतिक गुणा-भाग के कारण बसपा आज भाजपा की बी-टीम बन कर रह गई है। 
 (लेखक- आजाद सिंह डबास)

Related Posts