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(मसला-ए-अफगानिस्तान) सर्वदलीय बैठक.. औपचारिकता या गंभीर चिंतन...? 

(मसला-ए-अफगानिस्तान) सर्वदलीय बैठक.. औपचारिकता या गंभीर चिंतन...? 

हमारे पड़ौसी देश अफगानिस्तान पर तालिबानी हमले और वहां के हालातों पर भारत सरकार के रूख को उजागर करने के लिए भारत सरकार ने प्रतिपक्षी दलों सहित सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया, इस बैठक की गंभीरता इसी से स्पष्ट हो जाती है कि प्रधानमंत्री ने इस बैठक से दूरी बना रखी और प्रतिपक्ष व अन्य दलों को भारतीय रूख बताने की जिम्मेदारी भारत सरकार के एक पूर्व नौकरशाह और मौजूदा विदेश मंत्री को सौंप दी। अब विदेश मंत्री जी सभी इक्कतीस दलों के प्रतिनिधियों की जिज्ञासाओं को कितना संतुष्ट कर पाए? यह तो बैठक के बाद उनके द्वारा प्रकट किए गए विचारों से स्पष्ट हो रहा है, किंतु सबसे महत्वपूर्ण सवाल यहां यही रह जाता है कि क्या प्रधानमंत्री जी को स्वयं इस अतिमहत्वपूर्ण बैठक में शामिल होकर विश्व की इस गंभीर समस्या पर भारत का रूख स्पष्ट नहीं करना चाहिये था? क्या मान्यवर स्व. अटल जी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कभी ऐसा औपचारिक रूख अपनाया?  
इस सर्वदलीय बैठक के बाद अधिकारिक तौर पर जो कुछ बताया गया वह पूरे भारत की जिज्ञासा को शांत नहीं करता, यह कहना तो मात्र औपचारिकता ही है कि अफगानिस्तान की हालत बहुत खराब है, वहां से प्रत्येक भारतीय को स्वदेश लाने का प्रयास किया जा रहा है, कुछ अफगानिस्तानियों को भी लाया गया है और प्रत्येक भारतीय को भारत लेकर आने तक यह अभियान जारी रहेगा, किंतु जो अहम्् सवाल है जो कई दलों के प्रतिनिधियों ने इस बैठक में उठायें, उनके जवाब नहीं दिए गए। आज पूरा आवाम यह पूछना चाहता है कि तालिबानियों को लेकर भारत की नीति क्या है? तालिबानियों के साथ पड़ौसी दुश्मन मुल्कों पाकिस्तान व चीन की सांठ-गांठ और कश्मीर पर उनकी बुरी नजर के बारे में भारत का रूख व उसकी नीति क्या है? हमारी अफगानिस्तान, पाकिस्तान व चीनी सीमा की सुरक्षा के क्या इंतजामात है? क्या इन ज्वलंत सवालों के माकूल जवाब इस बैठक में सरकार द्वारा दिए गए? जब तक इन अहम्् सवालों के जवाब स्पष्ट नहीं हो जाते तब तक इस बारे में भारत की नीति स्पष्ट कैसे हो सकती है?  
भारत सरकार द्वारा बुलाई गई इस सर्वदलीय बैठक से यह उम्मीद की गई थी कि इस बैठक में भारत सरकार हर मसले पर अपना रूख स्पष्ट कर देगी, किंतु पता नहीं क्यो मूल अहम्् सवालों के जवाब क्यों छुपा लिए गए? या फिलहाल इस तालिबान समस्या पर भारत की कोई स्पष्ट नीति ही नही है? जब कि आज विश्व का हर देश तालिबानियों के उग्र रूप से डरा सहमा है, जिस तालिबानियों ने अमेरिका जैसी महाशक्ति को 31 अगस्त तक अफगानिस्तान खाली कर देने की धमकी दे दी, उस तालिबान की अपनी कुछ ताकत तो होगी ही? सिर्फ पाकिस्तान व चीन ही है, जो उसका साथ अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए दे रहे है, जिनकी नजर भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों और कश्मीर पर है। हमारे देश की सुरक्षा से जुड़े अहम्् सवालों पर भारत सरकार ने मौन धारण कर अन्य दलों से उनके उत्तर छुपाकर क्यों रखे? यह आम समझ से बाहर है? जबकि समय की मांग यह है कि चूंकि हमारा लाखों करोड़ रूपया जो हमने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं पर खर्च किया, उसका हमें दु:ख होना चाहिए और तालिबानियों के साथ हमारे सम्बंधों का स्पष्ट खुलासा होना चाहिए, किंतु पता नहीं यह सरकार इसे गोपनीय रखने का प्रयास क्यों कर रही है? या इस अहम्् समस्या को हलके में ले रही है।  
आज इस माहौल में हमारी अहम्् समस्या कश्मीर की रक्षा है, जहां के नेता खुलेआम तालिबानियों के नाम पर भारत सरकार को धमकियां दे रहे है, क्या ऐसे भारत सरकार को सख्त रूख अपना कर उन्हें शांत नहीं करना चाहियें? किंतु इस गंभीर माहौल में भारत सरकार की चुप्पी हर भारतवासी को खल रही है, सरकार को अब तो गंभीर हो जाना चाहिए और पूरे भारत को अपने साथ एकजुट रखने का प्रयास करना चाहिए।  
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता )
 

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