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अधजल गगरी झलकत जाए....  काँग्रेस... खण्डहर में ईंट खड़काने की जुगत.....? 

अधजल गगरी झलकत जाए....  काँग्रेस... खण्डहर में ईंट खड़काने की जुगत.....? 

कभी किसी ने यह कल्पना भी कि थी कि करीब छ: दशक तक देश पर राज करने वाली काँग्रेस सत्ता में हटने के मात्र सात साल बाद राजनीति के अस्पताल को गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में नजर आएगी और पार्टी के तथाकथित सिपहसालार आपस में खण्डहर की ईंट खड़खड़ाते नजर आएगें? किंतु आज की कांग्रेस की तस्वीर सबके सामने है, आज से पैतांलिस साल पहले इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गई ईमरजेंसी (आपातकाल) के उन्नीस महीनों में कांग्रेस को मिलीह बद्दुआएं अब फलीभूत हो रही है और कांग्रेस खात्में के कगार पर नजर आ रही है, करीब डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ अकेली कांग्रेस ही है, कभी नेतृत्व निरंकुश रहा तो कभी इसके नेता, आज नेता निरंकुश है और नेतृत्व नासमझ और यही स्थिति मोदी जी की कांग्रेस को खत्म कर देने की दम्भोक्ति को साकार रूप प्रदान कर रही है, जबकि उनका यह उनकी सरकार का इसमें कोई योगदान नहीं है।  
आज केन्द्र में जहां भारतीय जनता पार्टी पूरे बहुमत के दमखम के साथ सत्ता में है, वहीं कांग्रेस देश के आधा दर्जन से भी कम राज्यों में जैसे-तैसे सरकार चला रही है... और इन राज्यों के मुखिया ही अब अपने आपकों आलाकमान मानकर वह सब कर रहे है, जो इस पार्टी में कभी नहीं हुआ। वर्तमान में कांग्रेस राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ व एक दो छोटे राज्यों में सत्ता में है, किंतु इस दुर्गति के बावजूद इन राज्यों के मुखियाओं को सत्ता का अजीर्ण हो गया है, वे न सिर्फ अपने ही राज्य के नेताओं से सिरफुटौव्वल का खेल खेल रहे है बल्कि भविष्य के लिए अपनी ही कबर भी खोद रहे है। नेताओं के इसी रोग के कारण मध्यप्रदेश से सत्ता हाथों से फिसल गई और यहाँ भाजपा आ गई। अब लगभग यही स्थिति तीन प्रमुख राज्यों पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में निर्मित हो रही है और पंजाब इनमें शीर्ष पर है, जहां कुछ ही महीनों बाद विधानसभा के चुनाव होना है, किंतु यहां के नेताओं को न तो अपने भविष्य की चिंता है और न पार्टी के भविष्य की? प्रदेशाध्यक्ष अपनी ही पार्टी के आलाकमान को खुलेआम धमकी दे रहे है कि उनकी बातें नहीं मानी गई तो वे पार्टी की ईंट से ईंट बजा देगें, यहां अध्यक्ष पद पर वे ही सिरफिरें सज्जन है जो क्रिकेट से लेकर राजनीति के मैदान तक दलबदल के कई छक्के मार चुके है, अब मुख्यमंत्री जी उनके निशाने पर है, आलाकमान की अक्षमता व अनुभव हीनता ने उनके और अधिक भाव बढ़ा दिए है, वहां अभी से कांग्रेस का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।  
जहाँ तक दूसरे प्रमुख राज्य राजस्थान का सवाल है, वह तो पहले से ही गुटबाजी के संक्रमण रोग से ग्रसित है, जहां पॉयलट अपने रूतबे का जहाज उड़ाना चाहते है, तो मुख्यमंत्री जी अपने तजुर्बे का रथ हांकना चाहते है, वहां भी पार्टी इन दोनों नेताओं के बीच बंटी है और आए दिन वहां का टकराव दिल्ली में दस्तक देता रहता है।  
जहाँ तक तीसरे राज्य छत्तीसगढ़ का सवाल है, वह आकार में चाहे छोटा हो किंतु वहां के नेताओं के अरमान काफी विशाल है, कभी मध्यप्रदेश का अंग रहा छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सम्पदाओं के कारण चाहे मालामाल रहा हो किंतु वहां के नेताओं की स्वार्थपरक सोच के कारण आज भी काफी गरीब है। वैसे इस प्रदेश में कांग्रेस अतीत में काफी अच्छी हालत में रही, क्योंकि पं. रविशंकर शुक्ल व उनके पुत्र श्यामचरण व विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस के सर्वमान्य नेता रहे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का रूतबा कायम किया, किंतु आज यह प्रदेश अपने नाम के अनुरूप ’छत्तीस‘ के आंकड़े से जूझ रहा है और नेताओं की आकांक्षाएं प्रदेश के विकास में अवरोध बनी हुई है।  
वैसे यदि कांग्रेस की मौजूदा स्थिति का सही मूल्यांकन किया जाए और इसकी दुर्गति का ”पोस्टमार्टम“ किया जाए तो इस अवस्था के लिए सर्वाधिक दोषी पार्टी के शीर्ष पदाधिकारी (सोनिया-राहुल) व उनकी अनुभवहीनता व निष्क्रियता है, जिनका पार्टी व उसके नेताओं पर कोई नियंत्रण नहीं है, यही स्थिति चलती रही तो अगले एक-दो दशक में इस पार्टी का झंड़ा उठाने मिलेगा। हाँ, थोड़ी बहुत उम्मीदें प्रियंका गांधी से है, जिसके तैवर व मुद्रा उनकी दादी इंदिरा जी से मेल खाती है, वे सक्रिय भी है किंतु उन्हें उनके भाई व मां का सहयोग व प्रश्रय नहीं मिल पाने से वे मजबूर है।  
इस तरह कुल मिलाकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस स्वयं ही आत्महत्या के दौर से गुजर रही है, उसके लिए मोदी या किसी अन्य की कोई जरूरत नहीं है। 
 (लेखक- ओमप्रकाश मेहता)

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