संसार मेँ कोई अदृश्य शक्ति हैं जिससे हर व्यक्ति डरता हैं और वह ही सुख या दुःख मेँ सहारा देता हैं .चाहे कोई कितना भी नास्तिक हो वह भी किसी न किसी को अपना इष्ट मानता हैं और उनके सामने जाकर शिर झुकाता हैं.कम्युनिस्ट किसी ईश्वर को नहीं मानते पर वे लेनिन ,मार्क्स कब्र पर जाकर इबादत या पुष्प माला पहनाते हैं .भारत वर्ष मेँ अदृश्य शक्तियों की संख्याए करोड़ों मेँ हैं .यहाँ सब नागरिक अपने अपने हिसाब से अपने इष्ट को याद करते हैं .
तैतीस करोड़ देवी देवता ,बुद्धों मेँ २४ अवतार ,जैनों मेँ २४ तीर्थंकर ऐसे ही पारसियों मेँ भी ,और कभी कभी मानव खोपड़ी कोई नए अवतार को स्थापित कर देते हैं जैसे संतोषी माता आदि आदि .इसी प्रकार हमारे यहाँ साधु संतों की कमी नहीं हैं .कोई न कोई संकट मेँ साथ दे देता हैं जैसे आशाराम बापू ,राम रहीम आदि .
पर अभी देखा अफगानिस्तान मेँ अफगानी हो या तालिबान सब अल्लाह पर बहुत भरोसा करते हैं .ऐसे मेँ बहुत मुश्किल मेँ होगा कोई भी .एक अनार और करोड़ों बीमार .जीतने वाला भी पुकार रहा हैं और हारने वाला भी उनको याद कर रहा हैं .इससे यह सिद्ध होता हैं की संसार मेँ कोई किसी का उपकारी नहीं हैं सबको अपने अपने किये हुए कर्मों का फल भोगना होगा .वो अदृश्य शक्ति के पास कुछ नहीं रहता हैं .हमारा भरम रहता हैं की हमें उसने लाभ या हानि हो रही हैं .सब अपने अपने किये हुए कर्मों के हिसाब से और पुण्य पाप के कारन सुख दुःख भोगता हैं .
हर जीव को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता हैं .वैसे हमारी मान्यता हैं की वह कुछ करता हैं पर वास्तव कोई किसी का उपकारी नहीं होता हैं .जिसको पीड़ा होती हैं उसी को कष्ट भोगना पड़ता हैं.मौत के समय आप शहर के शहर बुला लो पर मरने वाला मरेगा और कोई भी उसके जीवन को न बढ़ा या घटा सकता हैं .यदि ऐसा होता तब पहले और वर्तमान मेँ कितने बड़े बड़े राजा महाराजा या रईस लोग कभी न मरते .इस कोरोना काल मेँ हजारों लोगों को अकेले बिना परिवार के कर्मचारियों के द्वारा जलाना पड़ा या दफनाना पड़ा राजा राणा छत्र पति हाथिन के असवार ,
मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार
दाम बिना निर्धन दुखी तृष्णा वश धनवान
कहीं न सुख संसार मेँ जब जग छान
जीतने वाला भी सुखी नहीं और हारने वाला भी सुखी नहीं .जीतने वाले को हरने का दुःख /भय /डर .पूरा चित्रण देखे दोनों पक्षों मेँ भय व्याप्त हैं .दोनों डरे हुए हैं .मानसिक द्वन्द मेँ जी रहे हैं .सब अनिश्चितता मेँ जीरहे हैं .अहिंसा ,अनेकांतवाद और अपरिग्रह के बिना शांति पाना असंभव .जब तक एक दूसरे को आदर नहीं देंगे तब तक सामंजस्य का वातावरण नहीं बनेगा तब तक शांति नहीं होगी .सत्ता आती जाती हैं पर जो मर गए जिनका जो छिन गए उनका कोई भी प्रतिनिधत्व हैं .ऐसा राज्य जिसकी नीव हिंसा पर तिकी हैं उसका भविष्य अंधकारमय होगा निश्चित .अमन का पैगाम की जरुरत हैं जो उनसे कोसों दूर हैं .
न होगा कभी राजपाट किसी का
यह आने जाने वाला क्रम हैं
स्वराज्य की जगह स्व - राज होगा
तभी आप शांति सुख से स्थायी रहेंगे
अन्यथा यह अस्थिर और अस्थायी दौलत हैं
कौन कितने दिन राज्य करेगा किस पर
जब सब मर जायेंगे तब कौन कहेगा किसको राजा .
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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अफगानिस्तान मेँ सबसे अधिक परेशान हैं अल्लाह !