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एक ज्वलंत सवाल....? - हम आजाद है, या आत्मनिर्भर....? 

एक ज्वलंत सवाल....? - हम आजाद है, या आत्मनिर्भर....? 

हम पिछले चैहत्तर सालों से पन्द्रह अगस्त को हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस या अंग्रेजी में ‘‘इंडिपेन्डेंस डे’’ मनाते आ रहे है जबकि हिन्दी-अंग्रेजी के इन दोनों शब्द समूहों का अर्थ एक बिल्कुल नहीं है, हिन्दी के ‘स्वतंत्रता’ शब्द समूह को अंग्रेजी में ‘फ्रीडम’ कहते है, जबकि अंग्रेजी के ‘इंडिपेंडेंस’ शब्द समूह को हिन्दी में ‘आत्मनिर्भरता’ कहते है, तो अब बताईए हम पन्द्रह अगस्त को किस रूप में मनाते आ रहे है? अंग्रेजी के ‘फ्रीडम’ या ‘स्वतंत्रता’ का हमने पिछले सात दशकों में मनमाना दोहन किया और इसे हमारे संविधान से भी ऊपर मानकर हमने इसकी आड़ में जा चाहा वो किया, किंतु अंग्रेजी का ‘इंडिपेंडेंस’ या ‘आत्मनिर्भर’ शब्द समूह हमारी राजनीति का अंग अब इतने सालों बाद बना है और अब हमारे आधुनिक भाग्य विधाता इसे दिखावे का जामा पहनाने को आतुर है और अब इसी शब्द समूह का ढ़िंढोरा पीटकर अपना भविष्य उज्जवल रखने के प्रयास किये जा रहे है। 
ऐसा कतई नहीं है कि पिछले सात दशक की पूर्व सरकारों ने ‘आत्मनिर्भरता’ की दिशा में कोई काम नहीं किये, आज जो हमें हमारा देश विकासशील या विकसित नजर आ रहा है, यह इसी ‘आत्मनिर्भरता’ के प्रयासो का परिणाम है, किंतु अतीत और वर्तमान में अंतर यह है कि अतीत में आज जैसा ढ़िंढौरा पीटकर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया जाता था, तब हमारी सरकारों की विकास की राह वही थी जो आज समय व स्थिति के अनुरूप बदल गई है। आज दिखावा ज्यादा और वास्तविकता कम है, किंतु नेहरू, लाल बहादुर, इंदिरा या अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में ऐसा कतई नहीं था। 
विकास का कोई भी क्षेत्र देख लिजिये, चाहे वह औद्योगिक हो, आर्थिक हो, वैश्विक हो या कि सामाजिक हर क्षेत्र में बिना किसी दिखावे के अपना कर्तव्य मानकर तत्कालीन सरकारों ने आत्निर्भरत की दिशा में कदम बढ़ाया और उसमें काफी कुछ अंशों तक सफलता भी अर्जित की, यद्यपि यह भी सही है कि हम सात दशकों में अपने लक्ष्य को सही मंजिल तक नहीं पहुंच पाए, किंतु इसमें भी दो राय नहीं कि उस दिशा में ईमानदारी पूर्ण प्रयास अवश्य किए गए और उन प्रयासों के सार्थक परिणाम भी हमारे सामने आये। 
अतः अब यदि इस संदर्भ में यह कहा जाए कि ‘‘देर आए दुरूस्त आए’’ तो कतई गलत नहीं होगा, किंतु अभी भी आत्मनिर्भरता के प्रयासों में ‘ईमानदार कौशिश’ का तत्व बढ़ाना बहुत जरूरी है, तभी हम सही अर्थों में अपने आपको ‘इंडिपेंडेंट’ कह पाएगें और आजादी के मूल अर्थ को सार्थकता प्रदान कर पाएगें। 
किंतु आज भी हमारे बुद्धिजीवी वर्ग के सामने सबसे बड़ा और अहम सवाल यही है कि पिछले चैहत्तर साल से हम ‘आजाद है या इंडिपेंडेंट’? हमने हमारी आजादी के दिवस को अंग्रेजी में ‘इंडिपेंडेंस डे’ नाम दिया उस नाम को हम इतनी लम्बी अवधि में सार्थकता प्रदान क्यों नहीं कर पाए? जबकि हमारे तत्कालीन भाग्यविधाताओं की इस नामकरण के पीछे मूल भावना ‘‘आत्मनिर्भरता’’ की ही थी? इसका कारण शायद यह रहा कि हम अपनी हर तरह की आजादी में इतने मशगूल हो गए कि हमें अपने आपको आत्मनिर्भरता का ख्याल ही नहीं रहा, यही हाल देशवासियों का रहा और वही हमारे माननीय तत्कालीन कर्णधारों का? किंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी को आत्मनिर्भरता से जोड़ने का मूल मंत्र पूर्णतः देश के पुरातन ‘गुरूपद’ के सम्मान को लौटाने की दिशा में सार्थक व सराहनीय प्रयास अवश्य था। 
....और अब समय व स्थिति के अनुरूप मौजूदा और भावी कर्णधारों को इस प्रयास को ईमानदार तरीके से जारी रखे रहना चाहिए, इसी में देश, देशवासी और सभी का हित निहित है।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता )

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