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(गीत) कृषक-वंदना  

(गीत) कृषक-वंदना  

तपन, शीत बरसात में, भी बस श्रम का नाम।
ऐसे हलधर वीर को, बारम्बार प्रणाम।।

लेकर के संकल्प जो, गति करता हर हाल।
नहीं हार मानी कभी, हो कैसा भी काल।
बहा स्वेद जो खेत में, गढ़ता राष्ट्र-भविष्य,
जिसने काटा नित्य ही, प्रतिरोधों का जाल।
काम-काम बस काम है, जिसको सुबहोशाम।
ऐसे हलधर वीर को, बारम्बार प्रणाम।।

वसुधा-छाती चीरकर, अन्न उगाता ख़ूब।
जो भोला-भाला,सरल, ज्यों पूजा की दूब।
फसलोंं पर रोगाणु लग, करें हर्ष-अवसान,
अति वर्षा संकट बने , फसलें जातीं डूब।
जिसके सुख-दुख खेत में, लिए विविध आयाम।
ऐसे हलधर वीर को, बारम्बार प्रणाम।।

नहीं निराशा उर पले, साहस का है संग।
करे यक़ीं जो कर्म पर, आशाओं के रंग।
जिसकी जय सब बोलते, पर देते ना साथ,
करता है निज भाग्य से, जो हरदम ही जंग।
जिसका अंतर निष्कलुष, पावन अरु अभिराम।
ऐसे हलधर वीर को, बारम्बार प्रणाम।।
                  (लेखक--प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे)
 

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