YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आरोग्य

आयुर्वेद के अनुसार पाचनतंत्र  की समस्या का समाधान --- आहार करते समय रहे सावधान  

आयुर्वेद के अनुसार पाचनतंत्र  की समस्या का समाधान --- आहार करते समय रहे सावधान  

आयुर्वेद में अन्नपान की तुलना प्राण से की गई हैं .वर्ण ,गंध ,रस तथा स्पर्श जिस आहार ,का मनोनुकूल हो और जो आहार विधिपूर्वक बनाया और खाया गया हो वह अन्नपान प्राणीसंज्ञक जीवधारियों के प्राण हैं .क्योकि अन्नपान का प्रत्यक्ष फल प्राणधारक होता हैं .अन्नरूपी लकड़ी के रहने पर ही अन्तरग्नि की स्थिति रहती हैं .यह अन्नपान मन को बल प्रदान करता हैं ,शरीर की सम्पूर्ण धातुओं के समुदाय ,बल वर्ण एवं इन्द्रियों में प्रसन्नता लाने वाला हैं इससे विपरीत रूप से किया गया अन्नपान अहितकर होता हैं .
       इसके लिए यह जानना  बहुत जरुरी हैं की हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं ?कैसे खाना खाना चाहिए ?कितनी मात्रा में खाना चाहिए ?हमें कब खाना खाना चाहिए .कारण खाना खाने से न केवल हमारा पाचन अच्छा होता हैं बल्कि हम कैसे स्वस्थ्य रह सकते हैं .शुचिता का होना आवश्यक हैं .शुचिता बाह्य एयर आँतरिक होना चाहिए
        पाचन  संबंधी समस्याओं का  निराकरण  आयुर्वेद आहार  विधि से होता हैं इसके लिए नियमों का पालन जरुरी और लाभकारी होगा.
          एंटीजन से लड़ने और अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली का मजबूत होना जरूरी है। इम्यून सिस्टम न सिर्फ वायरल इंफेक्शन से हमारी रक्षा करता है बल्कि इसका मजबूत होना हमारी आंत की सेहत के लिए भी जरूरी है। आप इम्यून और आंत की सेहत को बेहतर रखने के लिए आयुर्वेदिक डाइट को आजमा सकते है। अगर आप आयुर्वेदिक आहार को नियमित रूप से अपनाते हैं  तो यह न केवल आपके शरीर को अतिरिक्त स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है, बल्कि इससे हमारा डाइजेस्ट सिस्टम पाचन तंत्र में भी सुधार होता है।
 आयुर्वेद के अनुसारपौष्टिक आहार  के कुछ  नियम बता रहे हैं जो आपके समग्र शरीर के विकास में काम आंएगे। हर किसी को अपने शरीरीक  संरचना  के आधार पर ही आहार लेना चाहिए, क्योंकि खान-पान का भी एक नियम होता है।  आयुर्वेद आहार नियम  आपके पाचन स्वास्थ्य में सुधार करेंगे।
   भोजन में नियमितता
    जब तक कि आपका पिछला भोजन पूरी तरह से पच नहीं जाता तब तक आपको दोबारा नहीं खाना चाहिए। इसके साथ ही भोजन के बाद अनावश्यक रूप से कुछ भी खाने से बचना चाहिए। जब आपको भूख सताए तब भी भोजन करें।
    आमतौर पर हमें डिहाइड्रेशन के कारण भूख लगती है, इसलिए भोजन के बीच प्रोबायोटिक्स जैसे लस्सी या जूस का विकल्प चुन सकते हैं। इस तरह के दैनिक  नियम से व्यक्ति को मूल रूप से शरीर के साथ फिर से जुड़ने की आवश्यकता होती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में भूखा रहना क्या होता है।
      पाचन जन्य रोग आजकल प्रमुखता से हो रहे हैं उसका मूल कारण अनियमितता .एसिडिटी का होना उसके बाद पेप्टिक अलसर ,डुएडेनल अलसर होने के कारण आप अपने धन और अन्न का उपभोग नहीं कर सकते हैं .अनियमितता भी नियमित हो तो वह स्वाभाविक लक्षण हो जाता हैं .
     भोजन के वक्त शोर न करें
    सुनिश्चित करें कि आप अपना भोजन आराम और शांतिपूर्ण वातावरण में करें। ज्यादातर लोग खाना खाते समय टेलीविजन, फोन या लैपटॉप देखते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार खाने खाते वक्त न तो आपस में बातचीत करने सही है और न ही किसी तरह के डिजिटल उपकरण का इस्तेमाल करना उचित है।
     भोजन  न केवल आपको शरीरीक तंदुरुस्ती देता हैं बल्कि वह मानसिक शांति का मुख्य आधार भी हैं .हमें शांत और मनोकुल वातावरण में भोजन करना चाहिए .व्यस्तता के कारण हर मनुष्य समय का सदुपयोग करना चाहता हैं ,पर वह किस काम के लिए धन संचय करता हैं .भोजन बहुत अनिवार्य और महत्वपूर्ण घटक हैं जिसमे शुकुन होना चाहिए .
    अपने भोजन की मात्रा पर ध्यान दें
   हममें से हर कोई चार या 6 रोटी नहीं खा सकता। पेट के आकार और चयापचय दर के आधार पर हर व्यक्ति के भोजन की मांग अलग-अलग होती है। इसलिए अपनी आहार  को ध्यान में रखकर ही भोजन की मात्रा प्लेट में परोसें।वैसे नियम यह हैं की आधा पेट भोजन एक चौथाई स्थान पानी के लिए और शेष स्थान वायु के लिए ,आजकल जब मनुष्य अपनी सीमा लांघकर खाना खाता हैं तब उसे परेशानी उठानी पड़ती हैं .कम भोजन से कोई बीमार नहीं होता पर अति अधिक मात्रामे खाने वाले बीमार हो जाते हैं .
     ताजा और गर्म भोजन करें
    कोशिश करें कि गर्म और ताजे भोजन का ही सेवन करें। ऐसी किसी भी चीज़ से बचें जो बहुत ठंडी या लंबे वक्त से रखी हुई हो। क्योंकि पाचक एंजाइमों को अपने अधिकतम स्तर पर काम करने के लिए थोड़े गर्म तापमान की आवश्यकता होती है।वर्तमान में यह संभव नहीं हो प् रहा हैं कारण व्यापार या नौकरी के लिए बहुत दूर जाना पड़ता हैं .आजकल टिफ़िन संस्कृति का चलन अधिक हैं .टिफ़िन में एल्युमीनियम फॉयल का उपयोग और अधिक हानिकारक हैं टिफ़िन में संतुलित आहार नहीं मिल पाता हैं .पर मज़बूरी के कारण अन्य कोई रास्ता नहीं हैं .
    भोजन के वक्त डिजिटल उपकरण का प्रयोग न करें
    सुनिश्चित करें कि आप अपना भोजन आराम और शांतिपूर्ण वातावरण में करें। ज्यादातर लोग खाना खाते समय टेलीविजन, फोन या लैपटॉप देखते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार खाने खाते वक्त न तो आपस में बातचीत करने सही है और न ही किसी तरह के डिजिटल उपकरण का इस्तेमाल करना उचित है।इसका पालन जरुरी हैं पर आजकल छोटी उम्र से ही बच्चों को बहलाने इनका उपयोग करते हैं जो आदत बन जाती हैं जो बहुत हानिकारक होता हैं .
    इस तरह के फूड को खाने से बचें
      डाइजेशन और पोषक तत्वों के अवशोषण को ध्यान में रखते हुए ज्यादा तली हुई और शुगर युक्त चीजों का सेवन न करें। साथ ही डिब्बा बंद सामग्री खाने से भी बचें। पैकेज्ड स्नैक्स आपके शरीर पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं।जिसका चलन बहुत हैं .इनके उपयोग से कई घटक बीमारियां होती हैं .ये पूर्णरूपेण हानिकारक के साथ स्वास्थ्यवर्धक नहीं होते हैं
    अपने निवालों को अच्छे से चबाएं
    पाचन की प्रक्रिया मुख गुहा से ही शुरू होती है जहां कुछ एंजाइम जैसे लार एमाइलेज भोजन पर काम करते हैं और इसे आगे की प्रक्रिया के लिए उपयुक्त रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इसलिए भोजन को अच्छी तरह चबाकर खाने की सलाह दी जाती है।पाचन को ठीक रखने चबाकर भोजन लाभदायक होता हैं ,इसकी हमारे शरीर निर्माण में प्रमुख भूमिका होती हैं .
          पहले घरों में चौका होते थे जहाँ पर बैठकर खाना खाते थे ,अब किचिन संस्कृति के साथ डाइनिंग टेबल और कुर्सी पर बैठकर खाना खाने से हम भोजनालय में जूते चप्पल पहनकर खाना खाते हैं .कभी कभी बाहर के उपयोग में आने वाले जूते संक्रमण पहुंचाने में कारगर होते हैं .इसके लिए हमें इस बात का ध्यान रखना आवश्यक हैं .
              भोजन करने के पहले हमें अपने हाथ पांव धोकर बैठना चाहिए .
             हितकर भोजन करे और अहितकर भोजन से बचे।
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)

Related Posts