एक अध्ययन में सामने आया है कि मोबाइल रखने वाले पांच में से चार किशोर रात में उसे अपने कमरे में रखते हैं। इनमें से एक तिहाई उसे सोते समय बिस्तर पर ले जाते हैं। कंज्यूमर एडवोकेसी समूह कामनसेंस ने यह अध्ययन 1,000 बच्चों और उनके माता-पिता पर किया है। अध्ययन में बच्चों के स्लीप पैटर्न पर मोबाइल डिवाइसेज के पड़ने वाले असर का व्यापक शोध किया है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह कॉग्निटिव फंक्शनिंग और मेंटल हेल्थ को कमजोर करने के साथ मोटापे की दर भी बढ़ा रहा है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि स्मार्टफोन के कारण घरों में झगड़े भी हो रहे हैं, क्योंकि कई माता-पिता को भय होता है कि मोबाइल के कारण कई बच्चे 'लती' हो रहे हैं। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कई बच्चे बेडटाइम से पहले अपना मोबाइल यूज करते हैं। वहीं, कई बच्चे सुबह उठने के तुरंत बाद और कभी-कभार रात के दौरान भी मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं।
अगर मोबाइल में बच्चों की गतिविधियों की बात की जाए तो इनमें सोशल मीडिया अकाउंट चेक करना, गेम्स खेलना और विडियो देखना शामिल है। अध्ययन में कई माता-पिता ने अपने खुद के स्मार्टफोन यूज के बारे में भी यही बातें कही हैं, जो कि चिंता बढ़ाने वाली हैं। स्टॉनी ब्रुक यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और स्लीप रिसर्चर लॉरेन ई. हैल का कहना है कि लोग हर समय मोबाइल डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं। हैल ने कॉमन सेंस की तरफ से किए गए अध्ययन की समीक्षा की है। उनका कहना है मैं इन आंकड़ों से चकित नहीं हूं, लेकिन निश्चित रूप से ये काफी ज्यादा हैं। सैन-फ्रांसिस्को की कॉमन सेंसर अक्सर सिलिकॉन वैली की आलोचना करती है। कॉमन सेंस, बच्चों के टेक्नॉलजी यूज को मैनेज करने में परेशान हो रहे पैरेंट्स के पक्ष का समर्थन करती है।
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मानसिक स्वास्थ्य कमजोर करने के साथ मोटापा भी बढ़ा रहा है बच्चों का मोबाइल प्रेम