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धर्म को धारण करने वाला ही धर्मात्म होता है-मुनिश्री

 धर्म को धारण करने वाला ही धर्मात्म होता है-मुनिश्री

जैन राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने गुरूवार को मालनपुर स्थित दिगंबर जैन मदिर में आगवानी के दौरान आश्र्विाद वचन देते हुए कहा कि   जिस प्रकार चलत चित्यम् अर्थात मन चंचल होता है। उसे धर्म व सद्कायों पर केंद्रित करे। चलत वितम् अर्थात धन भी चंचल होता है। सभी खाली हाथ आए और सभी खाली हाथ ही जाना है। इसी तरह चलना जीवनम् अर्थात बचपन जवानी से जुडा है और जवानी बुढ़ापे से तथा बुढ़ापा मृत्यु सें। संसार मे कोई किसी का नही होता है सब रिश्ते झूठे होते हैं। केवल धर्म ही हमेशा साथ देता है। इसलिये कहा गया है धर्म को धारण करने वाला ही धर्मात्म होता है।
मालनपुर में विराजमान राष्ट्र संत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज, मुनिश्री विजयेष सागर महाराज एवं क्षुल्लक श्री विश्वोत्तर सागर महाराज के चरणो में अयोजक जैन मिलन ग्वालियर, लाला गोकुलचंद जैसवाल जैन मदिर समिति, दिगंबर जैन जागरण युवा मंच ग्रेटर, दिंगबर जैन सोशल ग्रुप, राजेश लाला मित्र मंडली, जैन सोशल ग्रुप ग्वालियर एवं विहर्ष बहू मंडल ने श्रीफल चढाककर आर्शिवाद लिया।

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