बच्चे के पर्याप्त विकास के पोषण की पूर्ति अकेले मां नहीं कर पाती है। ऐसे में बच्चे का विकास बहुत हद तक पिता पर भी निर्भर करता है। मां में अकेले इतनी शारीरिक क्षमता नहीं होती है कि वह बच्चे का ठीक से भरण-पोषण कर सके। स्तनधारी जीवों में जिसके दिमाग का आकार जितना बड़ा होता है वब उतना ही होशियार होता है। हालांकि, दिमाग का विकास इतना भी आसान नहीं है। बच्चे की सारी ऊर्जा का दो-तिहाई हिस्सा दिमाग के विकास में लगता है। इतनी ऐनर्जी बच्चों को लगातार मिलती रहनी चाहिए। पहले यह ऐनर्जी दूध से मिलती है और फिर बच्चा खाने से ऐनर्जी लेता है। इतनी ऐनर्जी देने में मां को किसी न किसी की सहायता चाहिए होती है। वैसे तो बच्चे की देखभाल में मां की मदद कोई भी कर सकता है, जैसे बड़े बच्चे। लेकिन इसमें पिता मदद करे यह बेहद जरूरी है। ये बातें एक स्टडी से पता चली हैं। जिन प्रजातियों में बच्चों की देखभाल करने में पिता सहयोग करता है उनमें बड़ा दिमाग होता है। बड़े बच्चों में अकसर स्वार्थ आ जाता है और वे छोटे बच्चे की देखभाल से पहले अपने बारे में सोचते हैं। जबकि मां के बाद पिता ही निस्वार्थ होकर बच्चे की पूरी तरह से देखभाल करता है। जब यह स्टडी शेरों पर की गई तो देखा गया कि शेरनी बड़े दिमाग वाले कुछ बच्चों को जन्म नहीं देती है बल्कि, छोटे दिमाग वाले कई बच्चों को जन्म देती है। अगर इनकी देखभाल में पिता सहयोग करता है तो सारे बच्चे जीवित बच सकते हैं। अगर मां को कम मदद मिले तो कुछ ही बच्चे जीवित बचते हैं। इंसानों की बात की जाए तो ये यूनीक होते हैं। बच्चे की देखभाल माता-पिता के अलावा अन्य रिश्तेदार भी करते हैं। यही वजह है कि इंसानों में दिमाग का आकार सबसे बड़ा होता है और वे अन्य जीवों से ज्यादा समझदार होते हैं। पहले माना जाता था कि बच्चे की देखभाल करने में मां की मदद कौन करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन अब इस मदद में पिता की भूमिका होने का महत्व सामने आया है।