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मेंटल हेल्थ से जुड़ी कठिनाई के बारे में कुछ सुनना नहीं चाहते युवा -एक ताजा रिपोर्ट में ‎किया गया यह दावा 

मेंटल हेल्थ से जुड़ी कठिनाई के बारे में कुछ सुनना नहीं चाहते युवा -एक ताजा रिपोर्ट में ‎किया गया यह दावा 

नई दिल्ली । एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेंटल हेल्थ को लेकर संघर्ष करने वाले लगभग दो-तिहाई वयस्कों से जब ये पूछा गया, क्या सब ठीक है? तो उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की कि उनके जीवन में सब अच्छा है। 2000 वयस्कों पर की गई इस स्टडी में पाया गया कि 10 में से लगभग 4 लोगों को यह लगता है कि सवाल पूछने वाला बस छोटी-छोटी बातें कर रहा है और वास्तव में वह मेंटल हेल्थ से जुड़ी कठिनाई के बारे में कुछ सुनना नहीं चाहता।
 स्टडी के अनुसार, खुलकर बोलने और अधिक ईमानदार जवाब देने वाले एक चौथाई लोग बहुत शर्मिंदा महसूस करते हैं, जबकि 17 प्रतिशत लोगों को ये चिंता सताती रहती हैं कि अगर वे अपनी बात खुलकर कहते हैं, तो उनके बारे में दूसरे लोग क्या सोचेंगे। इसके अलावा एक डर ये भी है कि उनका जवाब दूसरे व्यक्ति को यह सोचने पर मजबूर कर देगा कि काश उन्होंने सवाल नहीं पूछा होता। दरअसल, ये जानकारी सामने आने पर कि 66 प्रतिशत लोग पैसों से जुड़े मुद्दों के कारण मेंटल हेल्थ से जूझ रहे हैं, स्पेन की फाइनेंशियल सर्विस कंपनी सेंटेंडर ने एक रिसर्च शुरू की। ताकि लोगों को अपने सुख के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। दरअसल यूके की फ़र्लो योजना (कोरोना काल में कर्मचारयों को छुट्टी दे दी गई) के समाप्त होने के साथ, यह आशंका बढ़ गई है कि लोगों को नुकसान होता रहेगा – जिसमें फर्लो कर्मचारी भी शामिल हैं, जो अब बेकारी का सामना कर रहे हैं।
 बैंक ने मेंटल हेल्थ चैरिटी, माइंड  के साथ मिलकर सेंटेंडर कर्मचारियों को ट्रेनिंग और मार्गदर्शन प्रदान किया है, ताकि उन्हें मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों का सामना करने वाले कस्टमर्स के साथ “सही बातचीत” करने में मदद मिल सके।  में डायरेक्टर फाइनेंशियल सपोर्ट जोसी क्लैफम का कहना है, “हम में से बहुत से लोग दूसरों पर इस बात का “बोझ” नहीं देना चाहते हैं कि हम कैसा महसूस करते हैं, फिर हमें चिंता है कि हमें कैसे आंका जाएगा। और अगर हम मेंटल हेल्थ स्ट्रगल को लेकर ईमानदार हुए, तो इसे कुछ अलग तरह से देखा जा सकता है। हम जानते हैं कि पैसों की टेंशन अक्सर मानसिक परेशानी का कारण हो सकती है और कुछ लोगों के लिए पिछले अठारह महीनों की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं। “ उन्होंने आगे कहा, “हम चाहते हैं कि ग्राहकों को पता चले कि अगर उन्हें हमसे बात करने की ज़रूरत है, तो हम यहां सहानुभूतिपूर्ण, गैर-निर्णयात्मक (नॉन जजमेंटल) होते हुए उनके फाइनेंशियल मुद्दों के प्रैक्टिकल सॉल्यूशन के साथ उनका सपोर्ट करने के लिए तैयार हैं।”इस स्टडी में यह भी पाया गया कि जब यह सवाल पूछा गया, “क्या आप ठीक हैं?”, तो मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दों की तुलना में लोगों द्वारा अनुभव की गई फिजिकल प्रॉब्लम के बारे में खुलने की संभावना 3 गुना अधिक थी। लेकिन वास्तव में, 69 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो इस सवाल, क्या वे ठीक हैं? का एक ईमानदार उत्तर सुनना चाहते हैं। और 79 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्हें अगर लगा कि वो सच नहीं सुन रहे हैं तो वो फिर से पूछेंगे। 
माइंड में वर्कप्लेस वेलबीइंग  की प्रमुख एम्मा मामो  ने बताया कि, “हम जानते हैं कि पैसे और मेंटल हेल्थ के बीच एक मजबूत संबंध है। कुछ लोगों के जीवन को महामारी और आर्थिक मंदी दोनों ने बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसका प्रभाव आने वाले लंबे समय तक महसूस किए जाने की संभावना है। इस रिसर्च से पता चलता है कि लोगों को अभी भी अपनी मेंटल हेल्थ के बारे में बात करना मुश्किल लगता है, लेकिन हमें ऐसी महत्वपूर्ण बातचीत को जारी रखने की जरूरत है। बहुत से लोग नॉन-जजमेंटल तरीके से सुनने के लिए तैयार हैं और यदि आवश्यक हो तो समर्थन के लिए साइनपोस्ट करें।”उन्होंने आगे कहा, “माइंड अपने सहयोगियों,  ग्राहकों की भलाई व उनकी मेंटल हेल्थ में मदद करने के लिए सेंटेंडर को प्रशिक्षण देकर खुश है। यदि आपको अपने पैसे, अपने मेंटल हेल्थ, या दोनों के बारे में जानकारी और समर्थन की आवश्यकता है, तो वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं। 
बता दें ‎कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान कई तरह के तनाव से गुजरता है। किसी को फाइनेंशियल टेंशन होती है, तो किसी को पर्सनल लेवल पर कोई बात अंदर ही अंदर खाए जा रही होती है। ऐसा कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि वर्तमान दौर में ज्यादातर इंसान किसी ना किसी मानसिक परेशानी के साथ संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन वो किसी के साथ इस बात की चर्चा नहीं करते हैं। 
 

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