चंडीगढ़ । पंजाब कांग्रेस के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच तीन लोगों की नियुक्ति को लेकर मतभेद गहरा गए थे। कैबिनेट मंत्री के रूप में राणा गुरजीत सिंह, एड्वोकेट जनरल के तौर पर एपीएस देओल और पुलिस महानिदेशक के तौर पर इकबाल प्रीत सिंह सहोता की नियुक्ति को लेकर सीएम चन्नी से सिद्धू के मतभेद गहराए जो अंतत: उनके इस्तीफे के रूप में सामने आया।
दरअसल, इन दोनों पदों पर सिद्धू अपने लोगों को नियुक्त करना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि सिंह को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाए, लेकिन इस मामले में सीएम चन्नी ने सिद्धू के सुझावों पर अमल नहीं किया। सत्ता में आते ही बेलगाम हो गए सीएम चन्नी और कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए ही सिद्धू ने कांग्रेस प्रदेश इकाई के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया।
सूत्रों के अनुसार सिद्धू 1986 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को डीजीपी और वरिष्ठ अधिवक्ता डीएस पटवालिया को एजी बनाना चाहते थे। वह कपूरथला से विधायक राणा गुरजीत सिंह को भी मंत्रिमंडल से हटाना चाहते थे। डीजीपी को लेकर अभी भी फैसला यूपीएससी की तरफ से दिया जाना बाकी है, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने सहोता को अतिरिक्त प्रभार दे दिया है। चट्टोपाध्याय अगले साल मार्च और सहोता और अगस्त में रिटायर होंगे।
सिद्धू की तरफ से सहोता पर आरोप लगाए गए हैं कि 2015 में बादल शासन के दौरान गठित पहली स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के प्रमुख के तौर पर उन्होंने कथित रूप से बेअदबी मामलों में बादलों और डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम को क्लीन चिट दे दी थी। सिद्धू खेमे का कहना है कि इस एसआईटी ने दो युवाओं को गलत गिरफ्तार किया गया था और गलत तरीके से विदेशी साजिश के आरोप लगाए थे। हालांकि, चन्नी सरकार ने तर्क दिया है कि सीबीआई के हाथ में जांच जाने से पहले सहोता की एसआईटी ने 20 दिन ही काम किया था और इस एसआईटी ने कभी किसी को क्लीन चिट नहीं दी।
एपीएस देओल को लेकर सिद्धू की आपत्ति यह है कि वे पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी के वकील रह चुके हैं और कई मामलों में उन्हें जमानत दिलाई है। बेअदबी मामलों के बाद बेहबाल कलां में हुए गोलीबारी कांड में सैनी भी जांच के दायरे में हैं। सिद्धू वरिष्ठ वकील डीएस पटवालिया को एजी बनाने की बात कह रहे हैं। सिद्धू का कहना है कि कैसे एक वकील, जो सैनी का वकील रहा है, अब उनपर मुकदमा चलाएगा। हालांकि, चन्नी सरकार ने तर्क दिया है कि वे ‘जरूरी मामलों’ की जांच के लिए 10 वकीलों की टीम के साथ एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने जा रहे हैं। ऐसे में चिंता की कोई बात नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, सूत्रों का कहना है कि चन्नी सरकार डीजीपी और एजी पदों पर बदलाव कर सकती है, क्योंकि ‘सीएम लचीले हैं औऱ सिद्धू के नजरिए का सम्मान करते हैं। चन्नी के लिए सबसे मुश्किल सिद्धू की राणा गुरजीत सिंह को बदलने की मांग होगी। दोआबा में मतदाताओं के बीच वर्चस्व के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाहर जाने के बाद सिंह को चुनाव के लिए फंडिंग जुटाने वाले नेता के तौर पर भी देखा जा रहा है। सिद्धू का कहना है कि 2018 में सिंह को रेत खनन माफिया में शामिल होने के आरोपों के चलते कैबिनेट से हटाया गया था। अब उनका शामिल होना सिद्धू की तरफ से गैर-भ्रष्टाचार को लेकर की गई बात पर सवाल उठाता है।
इसके अलावा उप-मुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा को गृहमंत्रालय देना और सीएम चन्नी की राज्य वित्त मंत्री मनप्रीत बादल से बढ़ती नजदीकियां भी सिद्धू की परेशानी का कारण है। सीएम चन्नी, सिद्धू के बजाए मनप्रीत से ज्यादा सलाह ले रहे हैं। दरअसल, मनप्रीत ने चन्नी को सीएम बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। सिद्धू के इस्तीफे के बाद भी कांग्रेस किसी भी तरह से मुख्यमंत्री चन्नी को कमजोर करने को तैयार नहीं है। सिद्धू ने भी अपने मुद्दों को आधिकारिक तौर पर नहीं उठाया है।
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तीन नियुक्तियों को लेकर मुख्यमंत्री चन्नी के साथ खटकने के बाद सिद्धू ने दिया इस्तीफा