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रामायण को दोहराती राजनीति  क्या शाह की शर्ते पूरी कर पाएगें काँग्रेस के विभीषण...? 

रामायण को दोहराती राजनीति  क्या शाह की शर्ते पूरी कर पाएगें काँग्रेस के विभीषण...? 

इन दिनों त्रेतायुग की रामकथा इस कलियुग में भारत भूमि पर ही राजनीतिक क्षेत्र में पुन: मंचित की जा रही है, अन्तर सिर्फ इतना है कि त्रेतायुग में रावण के अनुज विभीषण ने राम के साथ मिलकर लंका को ध्वस्त करवाया था और आज का विभीषण राजनीति के लक्ष्मण (अमित शाह) के साथ मिलकर कांग्रेस की लंका को ध्वस्त करने का संकल्प ले रहा है, त्रेतायुग में ऐसा करने पर विभीषण को राज मिला था और यदि आज का विभीषण लक्ष्मण जी की शर्ते पूरी कर देता है तो उसका राजतिलक करने का वादा है, इस सांकेतिक रामायण कथा को आप समझ ही गये होंगे?  
इस संदर्भ में अब ज्यादा पीछे नहीं, केवल साढ़े सात साल पीछे जाते है, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के समय आज के राम (नरेन्द्र मोदी) ने घोषणा की थी कि वे कांग्रेस को जड़ से खत्म कर देगें, उन्होंने न सिर्फ 2014 बल्कि उसके बाद 2019 में अपने संकल्प की पूर्ति का प्रयास किया और कुछ अंशों तक उसमें सफल भी रहे और आज एक ओर जहां लक्ष्मण जी (शाह) अपने स्तर पर राम जी का संकल्प पूरा करने का प्रयास कर रहे है, वही भरत और शत्रुघ्न भी कहने लगे है कि ”कांग्रेस को हमें खत्म करने की जरूरत ही नहीं, उसके लिए राहुल जी ही काफी है।“  
हमारे धर्मपरायण भारत में एक मान्यता सदा से चली आ रही है कि ”जो जन्म देता है, वही उसे खत्म भी करता है।“ अब यह मान्यता मानव के साथ तो अब तक चरितार्थ होती रही, किंतु अब यही मान्यता राजनीतिक क्षेत्र में भी चरितार्थ होने लगी है, जिसका ताजा मौजूदा उदाहरण कांग्रेस है, जिसे एक गांधी-नेहरू ने जन्म दिया, पाला-पौसा और अब गांधी-नेहरू का खानदान ही उसे खत्म करने का श्रेय लेने को आतुर है, अर्थात्् आज की राजनीति के भरत-शत्रुघ्न जो कह रहे है, वही वास्तविकता है, पिछले कई सालों से जिस वरिष्ठतम या बुजुर्ग राजनीतिक दल का कोई निर्वाचित अध्यक्ष ही नहीं हो और बिना विधिवत अध्यक्ष के फैसले लिये जा रहे हो और यह सवाल पार्टी में ही बुजुर्गों द्वारा उठाया जा रहा हो, तो फिर उस पार्टी के भविष्य के बारे में क्या कहा जा सकता है, इस प्रक्रिया को गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती गंभीर मरीज की श्वांसनलि का ऑक्सीजन छीनने से अधिक क्या कहा जा सकता है, उस मरीज (पार्टी) को तो स्वर्ग सिधारना ही है?  
आज एक तरफ कांग्रेस आईसीयू में है और अंतिम सांस गिन रही है और दूसरी ओर साफाधारी विभीषण लक्ष्मण से मिलकर उसकी शीघ्र मुक्ति की साजिश रच रहे है, विभीषण के सामने लक्ष्मण जी ने शर्ते रखी है कि वे कांग्रेस के असंतुष्टों से भेंट करें और उन्हें भाजपा में लाने का प्रयास करें, यदि वे अपने प्रयासों में सफल रहे और कांग्रेस के असंतुष्ट दिग्गज भाजपा में चाहे न आए, पार्टी से नाता तोड़ लें, तो विभीषण जी को राज्यसभा के द्वार से लाकर कृषि मंत्री के रूप में उनका राजतिलक कर दिया जाएगा और मौजूदा कृषि मंत्री को कोई अहम्् जिम्मेदारी(?) सौंप दी जाएगी।  
यहाँ यह भी स्मरणीय है कि एक ओर जहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अविवाहित राहुल गांधी नई कांग्रेस को जन्म देने की बात कह चुके है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जो अपनी ही पार्टी में ”जी-23“ के नाम से बदनाम है, वे पार्टी की ”डमी अध्यक्ष“ सोनिया जी से पंजाब के घटनाक्रमों के सन्दर्भ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक तत्काल आयोजित करने की मांग कर चुके है, पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल जहां सवाल उठा रहे है कि पार्टी का कोर्ठ विधिवत अध्यक्ष ही नहीं है तो फिर कांग्रेस आदेश कैसे जारी कर रही है, वही एक अन्य वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद पार्टी शासित राज्यों में घट रही राजनीतिक घटनाओं पर विचार-विमर्श हेतु पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक यथाशीघ्र आयोजित करने की सोनिया जी से मांग कर चुके है, उन्होंने इस संदर्भ में कायदे से चिट्ठी लिखकर यह मांग की है।  
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की सिर्फ दिल्ली स्थित प्याली में ही तूफान नहीं है, बल्कि देश के गिने-चुने राज्यों में जहां कांग्रेस की सरकारें है, वहां की प्यालियों में भी तूफान पैदा करने के प्रयास किये जा रहे है, इस तूफान ने सबसे पहले मध्यप्रदेश की प्याली को तोड़ा और अब इसी तूफान ने पंजाब की प्याली के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये है और अब यदि सिलसिला जारी रहा तो छत्तीसगढ़ व राजस्थान की भी कांग्रेसी प्यालियां कैसे सही सलामत रह पाएगी?  
इस प्रकार यदि अब यही कहा जाए कि त्रेतायुग की रामकथा इस कलियुग में पुन: इसी भारत भूमि पर अवतरित हो रही है तो क्या गलत है? क्योंकि इस कलियुग के राम (मोदी) भी उतने ही मजबूत है, जितने कि त्रेतायुग के वनवासी राम, अंतर सिर्फ इतना है कि उस समय की सीता माता एक नारीरूपा थी और आज की सीता नहीं ’सत्ता माता‘ सुविधा रूपा है, जिसे छीनने-झपटने की स्पर्द्धा (युद्ध) जारी है। 
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता )

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