नई दिल्ली । नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के जिला अस्पतालों में प्रति एक लाख की आबादी पर महज छह बेड हैं, जो देशभर में सबसे कम है। आयोग की इसी रिपोर्ट पर नीतीश कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।नीति आयोग की ओर से किए गए अध्ययन के बाद बीते 28 सितंबर को जारी रिपोर्ट में बिहार स्वास्थ्य सुविधाओं में कई मानकों पर पिछड़ा हुआ है। सरकारी जिला अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के संबंध में जारी सूची में प्रति एक लाख की आबादी पर 222 बेड के साथ पुड्डुचेरी सबसे ऊपर तथा छह बेड के साथ बिहार सबसे नीचे है। यहां तक कि झारखंड में भी यह संख्या नौ है। देश में एक लाख की आबादी पर औसतन बेड की संख्या 24 है जबकि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (आईपीएचएस-2012) के मानक के अनुसार प्रति एक लाख की जनसंख्या (2001 की जनगणना के अनुसार जिलों की औसत आबादी) पर जिला अस्पतालों में कम से कम 22 बेड अवश्य होने चाहिए। इसी मानक के अनुसार बिहार के 36 सरकारी जिला अस्पतालों में महज तीन में ही चिकित्सक उपलब्ध हैं। तस्वीरों मेंः बिहार को खास बनाने वाली बातें प्रतिशत के आधार पर यह देखें तो यह आंकड़ा महज 8।33 फीसद आता है। मानक के अनुरूप केवल छह अस्पतालों में स्टॉफ नर्सें हैं। इसी तरह मात्र 19 अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद हैं। प्रदेश के शेष अस्पतालों में मानक के अनुसार न तो डॉक्टर हैं, न ही स्टाफ नर्स या पैरामेडिकल। मानक के अनुरूप सौ बेड के एक अस्पताल में 29 चिकित्सक, 45 स्टाफ नर्स और 31 पैरामेडिकल स्टाफ अवश्य होने चाहिए। वैसे देश के कुल 742 जिलों में महज 101 जिलों के सरकारी अस्पताल में ही सभी 14 तरह के विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं। इसी तरह केवल 217 जिला अस्पतालों में ही प्रति एक लाख की आबादी पर 22 बेड पाए गए। आयोग द्वारा तय मुख्य परफॉर्मेंस इंडिकेटर पर स्थिति का आकलन करें तो प्रति एक लाख की आबादी पर सबसे अधिक क्रियाशील बेड सहरसा जिला अस्पताल में हैं। आईपीएचएस मानक के अनुरूप सर्वाधिक चिकित्सकों की उपलब्धता सदर अस्पताल जहानाबाद में, स्टॉफ नर्स की तैनाती समस्तीपुर में और पैरामेडिकल स्टाफ नवादा में हैं। इसी तरह सपोर्ट सर्विस में सीतामढ़ी सदर अस्पताल, कोर हेल्थकेयर सर्विसेज में मोतिहारी, डायग्नॉस्टिक टेस्टिंग में पूर्णिया, बेड ऑक्यूपेंसी रेट में सदर अस्पताल हाजीपुर (वैशाली) तथा सर्जिकल प्रॉडक्टिविटी में सदर अस्पताल, सहरसा अव्वल है। वहीं ओपीडी में डॉक्टर पर जमुई तथा ब्लड बैंक रिप्लेसमेंट रेट में सदर अस्पताल, खगडिय़ा सबसे आगे हैं। सरकारी दावों को झुठलाती रिपोर्ट इन आंकड़ों का खास महत्व इसलिए भी है कि यह अध्ययन कोविड महामारी के फैलने के ठीक पहले किया गया। इससे यह जाहिर होता है कि जिस समय देश इस महामारी से जूझ रहा था, उस समय खासकर जिला अस्पतालों में पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त नहीं था। कोविड की दोनों लहरों के बीच लोगों को खासकर अस्पतालों में बेड की समस्या से काफी जूझना पड़ा था। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के गृह जिला सीवान के सदर अस्पताल में बेड की अनुपलब्धता के कारण मरीज जमीन पर पड़े हुए थे। जानिए, क्या है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन पिछले साल पटना हाईकोर्ट में सरकार ने खुद ही बताया था कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों तथा नर्सिंग स्टाफ के 75 फीसद रिक्त पड़े हुए हैं। देश में जहां लगभग 1,500 की आबादी पर एक चिकित्सक मौजूद है, वहीं बिहार में 28 हजार से अधिक की आबादी पर एक डॉक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए। वैसे मार्च 2021 में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय विधानसभा में यह कह चुके हैं कि प्रदेश में डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुरूप चिकित्सक की उपलब्धता है। हालांकि यह भी सच है कि राज्य सरकार चिकित्सकों की विभिन्न पदों पर नियुक्ति करने की भरपूर कोशिश कर रही है। किंतु, इसकी प्रक्रिया काफी धीमी है। विशेषज्ञ चिकित्सक (एसएमओ) पद के एक अभ्यर्थी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया, ‘‘साक्षात्कार की प्रक्रिया अगस्त के आखिरी हफ्ते में पूरी हो गई। बताया गया कि सितंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में पोस्टिंग हो जाएगी, किंतु अक्टूबर का पहला हफ्ता बीतने को है।
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बिहार की पोल खुली तो भड़क गए मुख्यमंत्री