हमारी फिल्में करोड़ों भारतीयों को प्रभावित करती हैं। ये देश दुनिया में देखी जाती हैं। फिल्मों के नायक नायिका आम जीवन में असर डालते हैं। उनके संवाद सालों तक हमारे अवचेतन में छाए रहते हैं। ये फिल्में समय समय पर सार्थक संदेश भी देने वाली रहीं हैं। फिल्म जगत की इसी ताकत को समझते हुए भारतीय चित्र साधना ने फिल्मों में भारतीयता और वहां से प्रेरक संदेश देने के लिए अपना अभियान जारी रखा है। 2016 में लघु फिल्मों को परिवर्तनकारी बनाने के उद्देश्य से इसकी शुरुआत हुई है और इसके लिए देश में राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय लघु फिल्म महोत्सव आयोजित किए जा रहे हैं। 2022 में राष्ट्रीय आयोजन से पहले ग्वालियर में संभागीय लघु फिल्म महोत्सव होने जा रहा है। 3 से 4 अक्टूबर तक इस महोत्सव में समाज को सार्थक व प्रेरक संदेश देने वाली फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी।
राष्ट्रवाद से प्रेरित भारतीय चित्र साधना सिनेमा की ताकत को सार्थक दिशा देने में तेजी से कार्य कर रही है। इस समय पूरे देश में भारतीय चित्र साधना के अंतर्गत लघु फिल्म महोत्सव अलग अलग शहरों में आयोजित किए जा रहे हैं। ग्वालियर में यह आयोजन भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान के सभागार में आयोजित होने जा रहा है। इस आयोजन में प्रदेश के निर्माताओं, छात्र छात्राओं द्वारा लघु फिल्म, डॉक्युमेंट्री, एनीमेशन एवं कैम्पस फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा। इस आयोजन की क्या उपयोगिता है एवं इसका क्या असर होगा इस संबंध में भारतीय चित्र साधना के प्रांत सह संयोजक दिनेश चाकणकर कहते हैं कि फिल्मों का हमारे जनजीवन, सोच विचार पर व्यापक असर होता है। हम देशभक्ति से परिपूर्ण फिल्म देखते हैं तो राष्ट्रप्रेम के भाव से भर जाते हैं, हम कोई सत्य जीवन पर आधारित फिल्म देखते हैं तो उसके जीवन से बहुत कुछ सीखते हैं। भारत में बनी कई फिल्मों ने आम भारतीयों का मानस बदला है। चक दे इंडिया फिल्म की बात करें तो इस फिल्म के बाद से महिला हॉकी की पूरे देश में चर्चा हुई है। महिला हॉकी के लिए वातावरण बना है। पूरे देश की बच्चियों ने जाना समझा है कि हॉकी केवल पुरुषों का ही खेल नहीं है महिलाएं भी इसमें बराबर से बाजी मार सकती है। इस फिल्म के बाद से देश की लड़कियों ने हॉकी में अच्छा खेल दिखाया है ये सिलसिला इस कदर जारी रहा कि इस बार के ओलंपिक में हम पदक से बस एक कदम दूर रह गए। यह सिर्फ एक उदाहरण मात्र है। ऐसी अनेक फिल्में बनी हैं एवं हजारों के बनने की गुंजाइश है। अगर फिल्मों से अच्छा संदेश जाता है तो अनेक फिल्में दूषित विचार के साथ बनाई जाती हैं। समाज में बढ़ते अपराधों की विवेचना में कई बार ये तथ्य सामने आया है कि अमुक अपराधियों ने फिल्मों से अपराध के तरीके सीखे। फिल्मों में वीभत्स और अश्लील दृश्यों के कारण अनेक अपराध समाज में घटित होते हैं। इस तरह फिल्मों का प्रभाव दोनों तरह का हो सकता है। ऐसे में आवश्यकता है कि फिल्मकारों के पास एक उज्जवल दृष्टि रहे वे समाज के बीच अच्छा स्वस्थ मनोरंजन करें साथ ही कुछ अच्छा करने को प्रेरित करें। अच्छी कहानियां, संघर्ष के कथानक समाज को कुछ कर गुजरने एवं परिवर्तन के लिए प्रेरित करते हैं। चित्र भारती लघु फिल्म महोत्सव में हमने सात विषय देकर ऐसे ही प्रेरक एवं संदेश भरी कहानियां आमंत्रित की हैं।
लघु फिल्म उत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. केशव पांडे कहते हैं कि समाज में चलचित्र जनसंचार का माध्यम है एवं इसकी पहुंच गांव गांव शहर शहर एवं विदेशों तक है। आज अप्रवासी भारतीयों से लेकर विदेशों में भी भारतीय फिल्में देखी जाती हैं। ऐसे में यह बहुत आवश्यक हो गया है कि भारत की फिल्में भारतीय संस्कृति, आचार विचार, जीवन मूल्यों, मुद्दों, हमारे प्रेरक व्यक्तित्वों एवं घटनाओं को सार्थक दृष्टि के साथ प्रस्तुत करें। इससे भारत और भारत के बाहर देश की संस्कृति पहुंचेगी एवं लोग भारत और यहां के उच्च जीवन मूल्यों को समझ एवं आत्मसात कर पाएंगे। डॉ. पांडे कहते हैं कि आज हर किसी पर स्मार्ट फोन है एवं भारत में हर तरफ प्रेरक कहानियां बिखरी हुई हैं। हमारे गांव और शहर अनेक प्रतिभाओं से भरे हैं। युवा मोबाइल के माध्यम से छोटी छोटी कहानियां इस मंच पर प्रस्तुत कर सकते हैं जिससे आगे उनका व्यापक प्रचार प्रसार हो सकेगा।
महोत्सव के संयोजक एवं नाट्य निर्देशक चंद्रप्रताप सिंह सिकरवार कहते हैं भारत में महान नाट्य परंपरा है। भगवान भोलेनाथ नटराज हैं। हमारे यहां उच्च साहित्य की कमी नहीं है जिनमें बहुत सुंदर कहानियां लिखी गयी हैं। रामानंद सागर ने रामचरितमानस की इसी कथा को टीवी के जरिए देश दुनिया तक पहुंचाया था। बी आर चोपड़ा साहब ने भी महाभारत के जरिए भारत को जीवन मूल्यों की शिक्षा के साथ सार्थक मनोरंजन का अवसर दिया था। रामायण और महाभारत जैसे प्रयास सार्थक दृष्टि से ही संभव हैं एवं भारतीय चित्र साधना सिनेमा में भारतीयता के इसी संदेश के साथ लघु फिल्मों का उत्सव आयोजित कर रही है। ग्वालियर में भी लघु फिल्मों के जरिए युवाओं को सार्थक सिनेमा की ओर अग्रसर किया जाएगा
(लेखक-विवेक पाठक स्वतंत्र )