नई दिल्ली । फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी के क्रिस्टिन ई लिन कालेज ऑफ नर्सिग की रिसर्चर्स ने ब्रेस्टफीडिंग कराने की स्थिति और प्रसव के बाद होने वाले अवसाद के रिस्क के बीच संबंधों की पड़ताल की है। इसके लिए अमेरिका के 26 राज्यों की 29,685 महिलाओं के डाटा का विश्लेषण किया। यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के अनुसार, मां बनने वाली महिलाओं में से प्रति वर्ष 11 से 20 प्रतिशत प्रेगनेंट लेडीज में डिलिवरी के बाद डिप्रेशन के लक्षण मिलते हैं, जो उनके आत्महत्या या बच्चे की हत्या का भी एक बहुत बड़ा कारण होता है।
अमेरिका में प्रति वर्ष लगभग 40 लाख बच्चे पैदा होते हैं और इसके हिसाब से आकलन करें तो डिलिवरी के बाद डिप्रेशन की शिकार होने वाली महिलाओं की संख्या करीब आठ लाख तक हो सकती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 की एक एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 22 प्रतिशत महिलाएं डिलिवरी के बाद होने वाले डिप्रेशन से पीडि़त होती हैं। इसमें सबसे ज्यादा हल्के अवसाद के मामले होते हैं, जिसे ‘बेबी ब्लूज कहते हैं। इसका यदि सही इलाज नहीं हो तो उसका महिलाओं की खुद की सेहत और बच्चे की देखभाल क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। स्टडी के ऑब्जर्वेशंस में यह पाया गया कि अमेरिकी महिलाओं में डिलिवरी के बाद अवसाद हेल्थ की एक बड़ी समस्या है। इस स्टडी में प्रतिभागी महिलाओं में से 13 प्रतिशत में डिप्रेस्ड होने का रिस्क था। यह भी देखा गया कि डाटा कलेक्शन के समय जो महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग करा रही थीं, उनमें फीडिंग नहीं कराने वाली महिलाओं की तुलना में डिलिवरी के बाद डिप्रेशन का रिस्क काफी कम था।
इतना ही नहीं, स्टडी में यह भी पाया गया कि जो महिलाएं जितने अधिक समय तक ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं, उनमें समय के साथ डिप्रेस्ड होने का रिस्क भी घटता जाता है।अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका असिस्टेंट प्रोफेसर क्रिस्टीन टोलेडो ने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद 4 सप्ताह से लेकर 12 महीने तक महिलाओं के डिलिवरी के बाद डिप्रेस्ड होने होने का रिस्क बना रहता है। इसमें उदासी, बेचैनी तथा अत्यधिक थकान महसूस होती है, जिससे महिलाओं के लिए सामान्य कामकाज करना बहुत ही कठिन हो जाता है। डिलिवरी के बाद अवसाद से ग्रस्त महिलाओं का यदि सही इलाज नहीं हो तो उसके बड़े नकारात्मक परिणाम होते हैं। इसमें माता का बच्चे से पर्याप्त लगाव नहीं होता और उसकी देखभाल में भी कमी होती है। साथ ही महिलाओं को खुद या बच्चे को नुकसान पहुंचाने के भी विचार आते हैं और वे सामानों का दुरुपयोग भी करने लगती हैं। अगले बच्चे के जन्म पर डिलिवरी के बाद अवसाद का रिस्क 50 प्रतिशत बढ़ जाता है और 11 साल तक अन्य कारणों से भी डिप्रेस्ड होने का रिस्क 25 प्रतिशत ज्यादा होता है। ऐसी महिलाओं में कार्डियोवस्कुलर रोग, स्ट्रोक और डायबिटीज टाइप-2 का भी खतरा ज्यादा होता है।फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी के क्रिस्टिन ई। लिन कालेज ऑफ नर्सिग की डीन सॉफिया जार्ज का कहना है कि इस स्टडी का निष्कर्ष यह है कि ब्रेस्टफीडिंग कराना और हेल्दी बिहेवियर डिलिवरी के बाद होने वाले डिप्रेशन का रिस्क कम करने का सबसे आसान और किफायती उपाय है।
इसमें नर्सो की भूमिका महिलाओं को ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए शिक्षित करने और जच्चा-बच्चा के लिए उसके फायदे बताने में अहम हो सकती है। ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे को पोषण के अलावा अलर्जी और संक्रमण संबंधी बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। बता दें कि आजकल के लाइफस्टाल में तनाव और डिप्रेशन के मामले लगातार देखने को मिल रहे हैं। लेकिन गंभीर बात ये सामने आई है कि गर्भवती महिलाओं में भी डिलिवरी के बाद अब अवसादग्रस्त (डिप्रेस्ड) होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। और इससे जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है। जानकारी के मुताबिक, इसके कारणों और इलाज खोजने की दुनियाभर में लगातार कोशिशें जारी हैं।
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गर्भवती महिलाओं में डिलिवरी के बाद मिलते है डिप्रेशन के लक्षण - बच्चों को दूध पिलाने से कम होता प्रसव के बाद होने वाला तनाव