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मॉं पीताम्बरा (मुश्किल कार्य को आसान बनाती है 

मॉं पीताम्बरा (मुश्किल कार्य को आसान बनाती है 

मध्यप्रदेश के हृदय स्थल ग्वालियर से 70 किलोमीटर दूर स्थित माँ पीताम्बरा पीठ इन दिनों धमत्कार का केन्द्र बना हुआ है । यहां आने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
अखण्ड ब्रहम्चारी स्वामी जी श्री स्वामी जी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था । श्री स्वामी जी यही एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रहमचारी संत थे। स्वामी जी प्रकांड विद्ववान व प्रसिद्ध लेखक है उन्होंने संस्कृत-हिन्दी में कई किताये लिखी है । वर्तमान में जहाँ माँ पीताम्बरा पीठ का मंदिर है । वहाँ कभी शमशान हुआ करता था । इस शमशान के पास प्राचीनकाल के काल का शिव मंदिर था । जिसे बनखण्डेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था पुरातत्व विभाग के अनुसार श्री बनखण्डेश्वर महादेव जी का मंदिर 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है । ऐसा कहा जाता है कि महाभारत कालीन समय के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा के कहने पर भी पीताम्बरा पीठ की स्थापना स्वामी जी ने अपने तर. बल से की थी । इस स्थान को
शुद्ध कर माँ पीताम्बरा माई पीठ के पवित्र विग्रह को वैशाख शुल्क चतुथी सन् 1936 को पीताम्बरा मों की प्रतिष्ठा दतिया के वैदिक विधान स्व.पगित ज्याला प्रसाद जी दुबे से प्राण प्रतिष्ठा काई पीताम्बरा पीठ के स्थापना पूर्व स्वामी जी ने 1934 में दतिया में 7 दिन का अखण्ड कतिम हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्णा हरे-हरे करवाया था। स्थापित किया श्री स्वामी जी विद्धवान के साथ-साथ अच्छे लेखक भी थे उन्होंने कई किताबे हिन्दी व सांस्कृत में लिखी माँ पीताम्बरा पीठ मंदिर में माँ बागलामुखी जागृत अवस्था में है। माँ स्वर्ण शासन पर विराजमान है श्री नेत्र पीले वस्त्रों से सुशोभित, स्वर्ण अंगों स्वर्ण मुकट को धारण करने वाली अंपा पुष्षों की माला धारण करने वाली अपने हाथ में मुद्गर, पाश बज. और जिहा धारण करने वाली श्री शोभायान करने वाली तीनों लोकों को स्तम्भित करने वाली माँ पीताम्बरा है। भगवती बगलामुखी अत्यंत गंभीर आकृति वाली है । उनका वर्ग तपाए हुए स्वर्ग की भांति है । ये त्रिनयना है । उनसे पीले रंग की आभा निकल रही है । उन्हें दो भुजा वाली एवं चार भुजा वाली दोनों ही स्वरूपों में जाना गया है । दो भुजा स्वरूप में एक हाथ में मुदगर एवं दूसरे हाथ में शत्रु की जिला एवं बज है । इनके वक्त भी पीले रंग के है। इनके मस्तक पर अर्धचन्द्रमा सुशोभित हो रहा है । ये पीले रंग के आभूषणों से शोभायमान है । ये स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान है । माँ बागलामुखी को प्रशास्त्र विद्या के नाम से जाना जाता है । 'प्रास्त्र की माता सर्वोपरि है। इसका निरोधक और कोई अस्त्र नहीं है। ब्रह्मास्त्र से ही इसका निरोध हो सकता है। भगवती बगला जहाँ ब्रहास्त्र की शक्ति है. वही ब्रहास्त्र की स्तमिनी विद्या भी है । अर्थात् उसकी निरोधक भी है।
भगवती बगलता की उपासना सर्वप्रथम ब्रह्म ने सनक आदि को यह विद्या प्रदान की । सनत्कुमार ने इस विद्या को नारद को प्रदान किया नारद ने साख्यान ऋषि प्रदान और उन्होंने सांख्यायनतन्त्र का प्रणयन किया इस विद्या के द्वितीय उपासक विष्णु हुए और शिव तृतीय उपासक हुए शिव ने ब्रह्मास्त्र विद्या को परशुराम को प्रदान किया और परशुराम ने इसे द्रोणाचार्य, कर्ण, भीष्म आदि को दिया द्रोणाचार्य ने अर्जुन और अश्वथामा को दिया श्री कृष्णा भी इसके जानकार थे भगवान्‌ शिव ने यह विद्या च्यवन को प्रदान की
समस्त स्तम्भन शाक्ति के पीछे पीताम्बरा की स्तम्मन शाक्ति होती है इसी शाक्ति से मेघनाद ने हनूमान जी की शाक्ति को स्तम्भित किया था श्री कृष्णा भगवान जयद्रथ के
वध के लिये सूर्यनारायण को स्तम्भित कर दिया था
माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक एवं स्तम्भनात्मक हैं माँ पीताम्बरा पीठ मंदिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य जुड़ा हुआ है। (चिनी सेना वापिस भेजी) 
सन्‌ 4962 में जब गद्दार देश चीन ने भारत से दोस्ती के नाम पर भारत की पीठ में छुरा खोपकर अपनी सेनाओं के साथ भारत के ऊपर आक्रमण कर दिया था। चीन की सेनाओं से भारतीय सेना हर मोर्चो पर मुकाबला कर रही थी, फिर भी चीन ने भारत की जमीन पर कई जगह अवैध कब्जा कर लिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। चीन के इस धौखे से स्वामी जी भी स्तम्ध रह गये। इस अचानक चीन हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। नेहरू जी के मित्र देश रूस तथा मिश्र के राष्ट्रपतियों ने इस हमले में हस्तक्षेप करने से नेहरू जी को मना कर दिया था। एक योगी ने पंड़ित ज्वाहरलाल नेहरू को माँ पीताम्बरा पीठ दतिया, के साधक व 5 श्री श्री 408 स्वामी जी से मिलने के लिए कहा जवाहरलाल नेहरू के पर्सनल सेकेट्री ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को एक मैसेज भेजा कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू दतिया में माँ पीताम्बरा पीठ आना चाहते है। जवाहरलाल नेहरू शासकीय विमान से झांसी आए उसके बाद कार से दतिया पीताम्बरा पीठ पधारे तथा स्वामी जी से मिले उन्होंने व्यक्तिगत मुलाकात कर अपनी समस्‍या बतायी श्री स्वामी जी ने माँ पीताम्बरा की अनुमति लेकर राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की योजना बनायी यज्ञ मे सिद्ध पंडितों, तांब्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया कहते हैं यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी उसी समय संयुक्त, राष्ट्रसंघ का पंड़ित जवाहरलाल नेहरू जी को संदेश मिला की चीन ने आक्रमण रोक दिया है। और अपनी फौजो को पीछे हटने को कहा है आज भी यह यज्ञशाला जिसमें राष्ट्रहित के लिये एक हुआ था मंदिर में बनी हुई है 
पूरे विश्व में देवी बगलामुखी माँ के केवल तीन सिद्ध पीठ माने गये है जिसमें मालवा जिले की नलखेडा तहसील का आमला ग्राम माँ के नलखेडा के नाम से सिद्ध पीठ है जहा स्वयं मा बगलामुखी पीताम्बरा के रूप में प्रतिष्ठित है, नलखेडा के इस पीठ में माँ बगलामुखी की स्थापना पांण्डव युधिष्ठिर द्वारा स्वयं भगवान कृषणा के आदेश पर माँ भारत के युद्ध कौरव सेना पर विजय प्राप्त के लिये पीठ की स्थापना की गई थी दो अन्य पीठों में दतिया म0प्र0 और नेपाल के बगलामुखी देवी के सिद्धपीठ है। आसाम का माँ कामाख्या मंदिर में माँ के स्वरूप को माँ पीताम्बरा कहा जाता है। शत्रु नौ प्रकार के होते हैं, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विश्वासघाती, ऋण, दरिद्रता, रोग, कुमार्था, कुपुत्र और भाग्यहीनता, हैं। उक्त शत्राओं के कारण व्यक्ति की प्रगति रोक जाती है उसकी अभिलाषाऐं पूरी नहीं हो पाती है और वह कुछ भी करना चाहता है इन शत्रुओं की वजह से नहीं कर पाता है बगलामुखी आठवी महाविद्या हैं। माँ बंगलामुखी शत्रुओं की
शक्ति को स्तम्मित कर देती है। एक बार सतयुग में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट कर देने की क्षमता रखने वाला भयंकर तूफान आया और प्राणियों की रक्षा के लिये भगवान विष्णु सौ राष्ठ देश में हरिद्रा सरोवर के बीच तपस्या की उस दिन मंगल को चतुर्थी तिथि में अर्धरात्रि के समय माता बगलामुखी प्रकट हुई माता ने स्तंभन क्रिया के द्वारा समस्त विश्व को स्तम्मित कर दिया था जिससे विश्व की रक्षा हो सके। इनके एकवक्वत्र रूद्र है कलयुग में इनकी पूजा अराधना बहुत अधिक हो रही है। आज के भागदौड के योग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परिक्षीत एंव अनुभव सिद्ध तथ्य है। इनके मंत्र के जाप से शत्रु का सर्वनाश हो जाता है मा पीताम्बरा “के स्वरूप रक्षात्मक शत्रु विनाशक भनात्मक वेदों में भी इसी स्वरूप का वर्णन मिलता है माँ पीताम्बरा अपने साधकों के शत्रुओं को स्तंमन कर देती है शत्रु निराश होकर कुछ भी करने में समर्थ नहीं रहता है माँ भगवती पीताम्बरा के मंत्र का छंद बृहती है, जो वृद्धि करेन वाला है
साधक की सभी प्रकार से वृद्धि होती है माँ पीताम्बरा सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। माँ पीताम्बरा के हाथों में मुदगर, पाश वज एवं शत्रुजिव्हा है यह शत्रुओं की जीम को कीलित कर देती है। मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला है । इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है, तथा शत्रु पराजित होता है । जो राज्य आतंकवाद व नक्सलवाद से प्रभावित है, वह मां पीताम्बरा की साधना व अनुष्ठान करायें, तो अत्यंत लाभकार उनके राज्य के लिए होगा । माँ बगलामुखी की साधना में साधना के नियमों का जानना तथा उनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है । साधना किसी योग अनुभवी, गुरू से दीक्षा लेकर करनी चाहिए । माँ बगलामुखी देवी के जप में पीले रंग का विशेष महत्व है साधक को पील वस्त्र पहनना चाहिए तथा हलदी की गांठ की माला या कमल गदूटे की माला से जाप करना चाहिए।
मी पीताम्बरा का मूल मंत्र इस प्रकार है- 
'ॐही बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्म । जिला कीलय वृद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।। इस मंत्र को कमलगट्टे या हल्दी की माला से साधक एक लाख या दस हजार
जाप 21 दिन, 11 दिन.9 दिन या 7 दिन में करे, तो साधक को लाभ प्राप्त होता है। धूमावती का एकमात्र मंदिर माँ पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में मों भगवती धूमावती देवी का देश का एक मात्र मंदिर है । मों धूमावती की स्थापना ने करने के लिए अनेक विद्वानों ने श्री स्वामी जी को मन किया था। श्री स्वामी जी ने कहा कि मों का भयंकर रूप तो दृष्टों के लिए है, भक्तों के
प्रति ये अति दयालु । समूचे विश्व में धूमावती माता का एक मात्र मंदिर है । जय माँ पीताम्बरा पीठ में धूमावती की स्थापना हुई थी उसी दिन महाराज जी ने अपने ब्रहमलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी । ठीक एक वर्ष बाद मों धूमावती जयन्ती के दिन श्री स्वामी जी महाराज अहमलीन हो गए । मो धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है, लेकिन भक्तों के लिए माँ धूमावती का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है । माँ धूमावती को नमकीन (मंगोडे, कचौडी, व समोसे) कला भोग लगता है । मों पीताम्बरा पीठ का मंदि प्रतिदिन सुबह 5.00 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुलता रहता है । यहा। पर हजारों की संख्या में भक्त राजनेता, व्यवसायी दर्शन के लिए आते है । झांसी से दतिया नजदीकी है झांसी दतिया के अंदर पीताम्बरा पीठ से 50 मीटर की दूरी पर दतिया नरेश का महल देखने लायक है । तथा 20 किलोमीटर उन्नाव तहसील पडती है जहाँ सूर्यनारायण जी का हजारो वर्ष पुराना प्राचीन मंदिर देखने लायक है । यहाँ पर स्थित पीठ पर आने वालों के लिये कई धर्मशाला होटल रुकने के लिये बने हुये है तथा दतिया रेलवे स्टेशन को अपडाउन कई ट्रेनें रूकती है । झांसी जंकान होने के कारण सभी ट्रेनों का स्टोपेज झांसी में होता है।
(लेखक-विष्ण अग्रवाल )
 

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