गिरधर रामायण (गुजराती) लेखक महाकवि गिरधर दास ने अपने ग्रन्थ में शूर्पणखा के पुत्र शम्बर के वध का वर्णन लक्ष्मण द्वारा बतलाया है और लिखा है कि अपने पुत्र के हत्यारे को वह ढूँढ लेती है। उसका बदला लेने के लिए वह अपूर्व सुन्दरी का स्वरूप धारण करती है और अपनी चार सहेलियों के साथ सुनसान वन में घूमती है। उसके पुत्र शम्बर का लक्ष्मण द्वारा वध कैसे होता है उसे गिरधर रामायण में इस प्रकार बतलाया है।
लक्ष्मणजी वन में घूम कर प्रतिदिन सीताजी को फल लाकर देते थे। सीताजी श्रीराम को खाने के लिए फल देती और स्वयं भी खा लेती। सीताजी यह समझती थीं कि लक्ष्मण वन में फलों का सेवन कर लेते होंगे। भाई लक्ष्मण निराहार रह जाते थे। रात को पर्ण कुटि के बाहर पहरा देते थे, इसलिए सोते भी नहीं थे। लक्ष्मणजी ने भूख और नींद को अपने वश में कर लिया था।
श्रीरामचरितमानस में महर्षि विश्वामित्र ने उन्हें इस हेतु बला और अतिबला के मन्त्र की शक्ति प्रदान की थी जिससे उन्होंने अपनी क्षुधा-पिपासा वश में कर ली थी।
एक दिन लक्ष्मण जी फल देने के लिए वन में गए तो उन्हें बाँस से निर्मित एक कोठा दिखाई दी। वह बहुत घनी थी। लक्ष्मण को ज्ञात नहीं था कि उसमें एक असुर तप कर रहा है। वह शूर्पणखा पुत्र शम्बर था। उसने यह नियम ले रखा था कि वह साठ सहस्त्र वर्ष तक तप करेगा। उसकी तप सीमा समाप्त हो चुकी थी। वह शिव जी से काल खड्ग प्राप्त करने की आशा में बैठा था ताकि वह समस्त देवों का नाश कर सके। अचानक शिव का वह खड्ग नीचे गिर पड़ा। लक्ष्मणजी सोच रहे थे कि इस बाँस की कोठी में छेद कर दूँ ताकि इसमें बाघ आदि जंगली जानवर छुप कर न बैठें। शस्त्र से एक ध्वनि उत्पन्न हुई कि मैं शिव जी का शस्त्र हूँ जो उन्होंने एक तपस्या रत असुर को दिया है। लक्ष्मणजी ने शिव जी का मंत्र पढ़ा और उस शस्त्र को छोड़ दिया। संयोग से वह बाँस की कोठी को लगा। कोठी दूर चली गई और अंदर बैठे असुर के दो टुकड़े हो गए-
पछे लक्ष्मणे शिवनो मंत्र भणी ने, मूक्यूं तत्क्षण त्याहें,
ते जाळु कपाईने पडयु वेगळूं, छेदायो असुर ते मांहे।
असुर पड़यो बे भाग थई, गयुं शस्त्र पांछु शिवलोक,
सौमित्रीए जाण्युं को मुनि छेदाया, पाम्या घणुं मनशोक।।
(गुजराती गिरधर रामायण अरण्यकाण्ड अध्याय ९-१९-२०)
लक्ष्मण को लगा कि कोई मुनि कट गया है। उन्हें बहुत दु:ख हुआ। वे फल लेकर चले गए और श्रीरामजी को घटना सुनाई। श्रीरामजी ने कहा कि वह रावण का भांजा शूर्पणखा पुत्र शम्बर था। उन्होंने लक्ष्मणजी को सावधान किया कि अब बहुत से राक्षस यहाँ वन में आएंगे। लक्ष्मण जी धनुष, बाण तथा कवच धारण करके वन में रहते थे। शूर्पणखा को स्वप्र में इस बात का पूर्वाभास हो गया था कि उसका पुत्र मारा गया। वह चार राक्षसियों को लेकर उस स्थान पर गईं। जहाँ पुत्र तपस्या कर रहा था। उसने वहाँ दो टुकड़ों में कटा हुआ पुत्र देखा। वह अत्यधिक दु:खी होकर विलाप करने लगी। उसने प्रण लिया कि वह पुत्र को मारने वाले को खोज कर रहेगी और उसे खा जाऊँगी। वह जमीन पर पड़े पद चिह्नों को देखकर पुत्र के बैरी के पास जाने को तत्पर हुई। उसने अपना स्वरूप बदल लिया। वह सोलह वर्ष की सुन्दरी, चन्द्रमुखी, मृगनयनी, चपल, षोड़षी के रूप में परिवर्तित हो गई
विधुमुखी मृगनयनी चपळा, पहेर्या चोळी चीर,
अलंकार तनमंडित जोईने मुनिवर मूके धीर।।
(गुजराती गिरधर रामायण अरण्यकाण्ड-अध्याय ९-३४)
विभिन्न आभूषणों से सज धज कर वह अपनी दो-दो सखियों के मध्य मतवाली बाला वन में इधर-उधर घूम रही थी कि अचानक उसे लक्ष्मणजी फल संचय करते हुए दिखे। वह समझ गई कि यही मेरे पुत्र का बैरी है। वह लक्ष्मणजी के पास पहुँचकर विभिन्न हाव भाव से उन्हें मोहित करने लगी। उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मणजी ने कहा कि वे अपने बड़े भाई श्रीरामजी की आज्ञा के बिना तुमसे विवाह नहीं कर सकता हूँ। वह पंचवटी में आ गई और अपने सहेलियों से कहने लगी कि राम-सीता और लक्ष्मण वन में अकेले रहते हैं। हम छल कपट से इन्हें खा जाएँगी। वे सीता के पास लक्ष्मणजी से उसका विवाह कराने का अनुनय विनय करने लगी। मैं आपकी देवरानी हूँ। मेरी विननी स्वीकार कीजिए।
माटे परणाओ एबुं जाणी, हुँ देराणी तमो जेठाणी
सीताए सुण्यां एवां वचन, घणुं मनमां थयां ते प्रसन्न।
(गुजराती, गिरधर रामायण, अरण्यकाण्ड अध्याय १०-२२)
सीताजी श्रीराम के पास जाकर लक्ष्मण, शूर्पणखा का विवाह प्रस्ताव रखती है। राम शूर्पणखा को पहचान लेते हैं। वे घूँघटधारी शूर्पणखा से कहते हैं कि तुम लक्ष्मण के पास जाओ वे विचार करके तुम्हारा वरण कर लेंगे। वह रामजी से कहती हैं कि आप मेरी हथेली पर चिह्न अंकित कर दीजिए, जिसे पढ़कर वे मुझसे विवाह कर लेंगे। श्रीराम कहते हैं कि मैं एक पत्नी व्रती हूँ। किसी अन्य महिला के हाथ को स्पर्श नहीं करता। मैं तुम्हारी पीठ पर लिख देता हूँ। वह श्रीराम की ओर पीठ करके खड़ी हो गई। श्रीराम ने तिनके से उसकी पीठ पर लिख दिया कि इसे रावण भगिनी शूर्पणखा राक्षसी समझो। इसके नाक, कान काट दो। इसे जीवित छोड़ देना। स्त्री हत्या मत करना। वह लक्ष्मण के पास जाकर कहती है कि देखिए आपके भाई ने कुछ लिख कर दिया है। लक्ष्मणजी ने उसे कहा कि तुम एकान्त में जाओ। मैं सन्देह का त्याग कर तुमसे विवाह करूँगा। सखियाँ चली गईं। लक्ष्मणजी एकान्त में उसे लेकर गए और उसे भूमि पर गिरा दिया तथा पैरों में दबाकर खूब पीटा और उसके नाक, कान काट दिए। वह चीखी और भाग गई। उसने प्रचण्ड रूप धारण किया और खरदूषण के पास चली गई।
श्रीरामचरितमानस में शूर्पणखा प्रसंग में श्रीरामजी उसकी पीठ पर नहीं लिखते हैं। दोनों भाई विनोदपूर्ण वार्तालाप करते हैं और उसके नाक, कान काट देते हैं। शूर्पणखा सहेलियों के साथ नहीं जाती है वरन् अकेली रहती है। वह सीताजी को जेठानी के रूप में स्वीकारने की चर्चा भी नहीं करती है। दोनों ही रामायण में श्रीराम लक्ष्मण अपनी मर्यादा में रहते हैं परन्तु शूर्पणखा के राक्षस जाति के संस्कार उसे एक मर्यादाहीन नारी के रूप में प्रस्तुत करते हैं। पुत्र की हत्या का बदला लेने के लिए वह किस सीमा तक अपने चरित्र का पतन कर सकती थी यह पाठकों के लिए विचारणीय प्रश्न है। कामी राक्षसी वृत्ति की शूर्पणखा विधवा होकर असत्य के सहारे श्रीराम एवं लक्ष्मण से छल कपट कर विवाह करना चाहती थी, अत: लक्ष्मणजी ने सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए उसको कुरुप बनाकर छोड़ दिया।
(लेखक-डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता )
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शूर्पणखा पुत्र शम्बर का वध प्रसंग