''राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है
कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है''
रामायण भारत का राष्ट्रीय महाकाव्य है तथा उसके नायक श्रीराम सर्वोच्च आदर्श पुरुष हैं। श्रीरामकथा का भारतवर्ष ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में जैसे यूरोप, अमेरिका, रुस, चीन, जापान आदि में अन्य किसी आख्यान का नहीं। श्रीराम की कीर्ति और रावण का अपयश लोक में फैला है तो श्रीरामकथा के प्रचार-प्रसार से, अन्य किसी साधन से नहीं।
प्रस्तुत कथा प्रसंग ऐसी ही श्री रघुनाथ कथा से प्राप्त किया गया है। कथा का प्रसंग सुन्दरकाण्ड से है। जामवंत्जी ने हनुमान्जी से कहा कि हे हनुमान् तुम्हारा अवतार क्यों हुआ? राम काज लगि तब अवतारा। हनुमान्जी को जामवंत् के यह वचन हृदय में बैठ गए।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका वृंद तहँ देखि हरष कपिराइ।।
श्रीराम.च.मा. सुन्दरकाण्ड-५
श्री हनुमान् लंका में सीताजी की खोज करते-करते ऐसे स्थान पर पहुँचे। पहुँचने के पश्चात् संभवत: श्रीहनुमान्जी की लंका में सीताजी की खोज में प्रथम बार सफलता के लक्षण दिखाई दिये तथा वे हर्षित हुए। हनुमान्जी ने देखा कि वह महल श्रीराम के आयुध अर्थात् धनुष-बाण के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। वहाँ नई-नई तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर श्रीहनुमान्जी बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि इतनी विशाल लंका नगरी में कोई भी राक्षसों के मध्य साधु ही नहीं श्रीराम भक्त है। श्रीराम भक्त वह अन्य कोई नहीं विभीषण ही थे। श्री हनुमान्जी ने ब्राह्मण का रूप धारण कर राम-राम का उत्तर राम-राम कह कर दिया। विभीषण को अपना परिचय श्रीरामकथा कह कर अपना नाम भी प्रकट कर दिया। विभीषण ने भी अपनी बात संक्षिप्त में बताकर कहा कि हनुमान्जी मैं लंका में ऐसा निवास कर रहा हूँ, जिस प्रकार बत्तीस दाँतों के बीच बिचारी जीभ रहती है। मैं लंका में परिवार सहित दु:खी जीवन जी रहा हूँँ।
ऐसी ही चर्चा में श्री रघुनाथ कथा लेखक श्री योगेश्वर त्रिपाठी योगी की पुस्तक में पढ़ने पर सुधीजन को प्रस्तुत है। एक बार किसी ने लंका नरेश रावण के कान भर दिए कि आप अपने जिस भाई विभीषण को बहुत प्यार करते हैं और आपका छोटा भाई आपके ही शत्रु का दिन रात जप करता रहता है। आप चाहे तो इस बात की सत्यता का पता लगा लें। बस फिर क्या था रावण सीधे विभीषण के घर जा पहुँचा। विभीषण ने उठकर बड़े भाई रावण का स्वागत किया। रावण की दृष्टि विभीषण के महल के कक्ष में गई। हर जगह दीवारों पर राम राम अंकित था। रावण ने क्रोधपूर्वक विभीषण से कहा कि यह क्या है? राम तो मेरा शत्रु है। तुमने उनका नाम अपने पूरे घर भर में लिख दिया। तू मुझे आडम्बर कर आदर करता है। विभीषण ने कहा- भैया। अरे आप यह क्या कर रहे हैं। मैं तो आपका और अपनी भाभी का बहुत आदर करता हूँ, उसी का यह दृश्य यह है। 'रा' से रावण और 'म' से मंदोदरी यही तो लिखा है। रावण संतुष्ट होकर चला गया और विभीषण भी सही था
निज प्रभुमय देखहिं जगत् केहि सन करहिं विरोध
अंत में गोस्वामी तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस निम्न चौपाई
सदा हृदय में रखकर श्रीराम का ध्यान करना चाहिए।
चौ. जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मुरति तिन्ह दैखी तैसी।।
श्रीराम च.मा. बाल. २४०-२
(लेखक-डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता )
आर्टिकल
'र' से रावण एवं 'म' से मंदोदरी कथा प्रसंग