आज का सबसे अहम् सवाल यह है कि क्या कश्मीर भी पाकिस्तान की राह पर चल रहा है? पाक में जिस तरह गैर मुस्लिमों का विरोध वहां की नीति में शामिल कर लिया गया है, क्या उसी तरह कश्मीरियों ने भी गैर मुस्लिमों को प्रताड़ित कर उन्हें कश्मीर सीमा से खदेड़ने या उनकी हत्या करने का संकल्प ले लिया है? एक राष्ट्रीय अखबार ने तो यहां तक लिखा है कि आतंकवादियों के नाम पर यह कार्य स्वयं कश्मीरी ही कर रहे हैं।
भारत की आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर के विरष्ठ नेता शेख अबदुल्ला व जिन्ना के दबाव में आकर पण्डित जवाहर लाल नेहरू व महात्मा गांधी ने भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बनाने का तय किया था, तब इन नेताओ के बीच यह तय हुआ था कि जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने के बाद इस क्षेत्र का भविष्य तय होगा कि इसे भारत में रखना है या पाकिस्तान में? किंतु चूंकि पंडित नेहरू यह जानते थे कि आम कश्मीरी की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ है, इसलिए उन्होंने और उनके वारिस प्रधानमंत्रियों ने आज तक जनमत संग्रह नहीं होने दिया और इसी कारण जम्मू-कश्मीर आज भी भारत का अंग है, किंतु यह आज की भी सच्चाई है कि कश्मीर का हर मुस्लिम कश्मीरी मानसिक रूप से आज भी अपने आपको पाक से ही जुड़ा मानता है, उसे भारत या उसकी किसी भी हरकत से कोई लेना देना नहीं है, इसील,ि आज चाहे फारूक अब्दुल्ला हो या महबूबा मुती या कोई और नेता, सभी की पूरी सहानुभूति पाक के प्रति ही है, यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कुछ माह पूर्व बुलाई गई कश्मीरी नेताओं की बैठक में भी उजागर हो गई थी और अब जब से जम्मू-कश्मीर से धारा-370 खत्म की गई है तब से तो कश्मीरी नेताओं की भारत व यहां की मौजूदा सरकार से और अधिक नाराजी बढ़ गई है। यह इसी तथ्य से उजागर हो जाता है कि पाक के आतंकवादियों को कश्मीरियों का हर तरीके से सहयोग प्राप्त हो रहा है और अब जो कश्मीर में गैर मुस्लिमों की हिंसा का दौर शुरू हुआ है, उसमें भी स्थानीय कश्मीरियों का पूरा योगदान है। अब जिस तरह पाकिस्तान में गैर मुस्लिम हिन्दू या सिख अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करता और पाक छोड़ने का अभियान शुरू कर दिया है, उसी की पुनरावृत्ति अब कश्मीर में होने लगी है, वहां गैर मुस्लिमों में भय की भावना इस कदर हावी हो गई है कि शाम पांच बजे गैर मुस्लिम अपना कारोबार बंद करके अपने घरों में कैद होने लगे है, साथ ही अब तो वे कश्मीर से पलायन करने का भी मौका खोज रहे है, पिछले एक सप्ताह में करीब पांच सौ हिन्दू व सिख परिवारों ने कश्मीर छोड़ दिया और वे जम्मू में सड़कों की खाक छानने और भीख मांग कर अपना परिवार पालने को मजबूर है।
इसी संदर्भ में यहां यह भी उल्लेखनीय है कि करीब पच्चीस साल पहले बीस लाख कश्मीरी पण्डितों को कश्मीरियों और वहां की तत्कालीन सरकार ने उत्पीड़ित कर कश्मीर छोड़ने को मजबूर कर दिया था और उनके मकान व अन्य स्थाई सम्पत्तियों पर कश्मीरियों ने कब्जा कर लिया था ये बीस लाख कश्मीरी पण्डित अपना घरबार छोड़कर जम्मू अ ाने को मजबूर हो गए थे।
2014 के लोकसभा चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी ने जो अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया था, उसमें उल्लेख किया गया था कि यदि भाजपा की सरकार देश में बनती है तो सभी निष्कासित कश्मीरी पण्डितों को वापस सम्मान पूर्वक कश्मीर में बसाया जाएगा और उनकी छीनी हुई सम्पत्ति भी वापस लौटाई जाएगी, किंतु आज मोदी जी की सरकार के सात साल पूरे होने के बावजूद कश्मीरी पण्डितों की बदहाली वैसी ही है और अब जो वहां गैर मुस्लिमों के प्रति माहौल तैयार किया गया है, उसे लेकर कश्मीरी पण्डित और अधिक निराश व चिंतित है। वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके परिवार व बच्चों का भविष्य क्या व कैसा होगा?
आम कश्मीरी मुसलमान वैसे ही परम्परागत रूप से भारत सरकार से नाराज ही था और अब जम्मू-कश्मीर से धारा-370 खत्म करने के मोदी सरकार के कदम से आम कश्मीरी की भाजपा व मोदी सरकार के प्रति और अधिक नाराजी बढ़ गई है और इसीलिए अब कश्मीर में आतंकवादी हिंसा की वारदातों में भी इजाफा होने लगा है।
....और अब यह आग सैना शांत नहीं कर सकती, क्योंकि पाक आतंकवादियों के प्रति स्थानीय लोगों की सहानुभूति है, इसे खत्म करने के लिए सरकार को कश्मीरियों का किसी भी तरह से विश्वास जीतना होगा और यह काम कट्टर हिन्दुत्व भावना के चलते संभव नहीं होगा।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता )
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जन्नत बना जहन्नुम गैर मुस्लिम विरोध.... पाक की राह पर कश्मीर....?