भले ही उम्र अभी कम हो, लेकिन राजनीतिक परिपक्वता किसी बड़े राजनेता से कम नही है।समस्याएं लेकर आएं लोगो की बातों को ध्यान पूर्वक सुनना और फिर उसपर तत्काल कार्यवाही करना उनकी आदत में शुमार है। जी हां ,हम बात कर रहे है महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव अनुपमा रावत की,जिनपर राहुल गांधी ने सन 2018 में भरोसा कर उन्हें महिला कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर का महत्वपूर्ण पद दिया,जिसपर वे खरी भी उतर रही है।कुछ लोग उन्हें कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बेटी के रूप में देखते है ,लेकिन यदि उनका उनसे अलग भी राजनीतिक आंकलन किया जाए तो उनकी गिनती उन संघर्षशील युवा नेताओं में होती है,जो अपना रास्ता बगैर किसी बैशाखी के स्वयं तैयार कर रहे है।अलबत्ता वे अपने पिता हरीश रावत के कामो में हाथ बटाती है,उनसे मिलने आए लोगो का स्वागत सत्कार करती है और हरीश रावत की अनुपस्थिति में यदि किसी को तत्कालिक मदद की आवश्यकता हो तो वह भी करने से पीछे नही हटती।एक ग्रहणी के रूप में घर पर पर्याप्त समय भी बिताती है,अपने बेटे के बचपन को भी जीती है,अपनी मां के ममत्व की छांव का सुख लेना भी नही भूलती ,वही पिता की हर छोटी बड़ी आवश्यकताओं में सहायक बनकर सबसे आगे खड़ी नज़र आती है।इन सबके साथ जब एक राजनीतिक के रूप में वह जनता के बीच होती है तो उनके दुःख दर्द की साक्षी बनकर उन्हें दूर करने के लिए जीजान लगा देती है।चाहे कोरोना काल रहा हो या फिर चुनाव की तैयारियों का समय अनुपमा को फुर्सत नही होती कि वह दो घड़ी चैन से बैठ सके या फिर आराम कर सके।
अपने मधुर व्यवहार ,कर्मठता और संघर्ष के बलबूते उन्होंने अपने समर्थकों की एक बड़ी टीम खड़ी कर ली है।जो भविष्य में उनकी सफलता का आधार बनेगे।अनुपमा रावत कांग्रेस की रीति नीति पर चलकर आमजन को जागरूक कर कांग्रेस के पक्ष में वातावरण निर्माण करने में जुटी है।वे मानती है कि उत्तराखंड जिसको बनाने में सर्वाधिक योगदान नारी शक्ति का रहा है,उसी नारी शक्ति को अभी तक वह सम्मान व हक नही मिल पाया,जो उसे मिलना चाहिए था।हालांकि हरीश रावत सरकार के समय नवजात बच्चियों के हित संरक्षण को लेकर लागू हुई योजनाओं से लेकर किशोरियों,युवतियों, महिलाओं और वर्द्धाओ के सम्बंध में चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं को लेकर वे खासा उत्साहित रही।लेकिन साथ ही चाहती है कि दूरस्थ पहाड़ से लेकर मैदान तक उत्तराखंड की हर नारी के चेहरे पर मुस्कान हो।इसी मुस्कान को लाने के लिए वह बार बार सत्ता से भी टकरा जाती है।एक कांग्रेस नेत्री के रूप में वे चाहती है कि राजनीति स्तर पर भी महिलाओं को बराबरी का अधिकार और सत्ता में भागीदारी का हक मिले।वे मानती है कि अभी तक कोई भी पार्टी संख्या बल के हिसाब से महिलाओं को टिकट नही दे पाई है।लेकिन उनका मानना है कि आने वाला समय महिलाओं का है और उन्हें अपने अधिकार मिलकर रहेंगे।जिसके लिए उन्होंने संघर्ष का अपना लक्ष्य भी दोहराया।फिलहाल अनुपमा रावत जहां उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए चुनावी जमीन तैयार करने में जुटी है,वही महिला कांग्रेस की प्रभारी होने के नाते उत्तर प्रदेश में भी जोर शोर से अपना दायित्व निभा रही है।जो उनके राजनीतिक भविष्य की दिशा और दशा तय करेगा।लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )
आर्टिकल
उत्तराखंड की राजनीति में ख़ास मुकाम बनाती अनुपमा रावत!