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बहेड़ा --- अनोखा  लाभदायक

बहेड़ा --- अनोखा  लाभदायक


     बहेड़ा  का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी माना जाता है। आग से जलने के कारण हुए घाव पर भी बहेड़ा का तेल लाभकारी है। बहेड़ा  वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को दूर करता है, लेकिन इसका मुख्य प्रयोग कफ-प्रधान विकारों में होता है। यह आँखों के लिए हितकारी, बालों के लिए पोषक होता है।
    बहेड़ा असमय बाल पकने, गला बैठने, नाक सम्बन्धी रोग, रक्त विकार, कंठ रोग (लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस) तथा हृदय रोगों में फायदेमंद होता है। बहेड़ा कीड़ों को मारने वाली औषधि है। बहेड़े के फल की मींगी मोतियाबिन्द को दूर करती है। इसकी छाल खून की कमी, पीलिया और सफेद कुष्ठ में लाभदायक है। इसके बीज कड़वे, नशा लाने वाले, अत्यधिक प्यास, उल्टी, तथा दमा रोग का नाश करने वाले हैं।
       बहेड़ा, त्रिफला का एक अंग है। वसंत ऋतु में बहेड़ा के पेड़  से पत्ते झड़ जाने के बाद इस पर ताम्बे के रंग के नई टहनी या शाखा निकलते हैं। गर्मी के मौसम के आगमन तक इसी टहनी या शाका के साथ फूल खिलते हैं। वसंत के पहले तक इसके फल पक जाते हैं। बहेड़ा के फलों का छिलका कफनाशक होता है। यह कंठ और सांस की नली से जुड़ी बीमारी पर बहुत असर करती है। इसके बीजों की गिरी दर्द और सूजन ख़त्म करती है।
     बहेड़ा, आंवला, हरीतकी यह सब कफनाशक, योनिदोषनाशक, दूध को शुद्ध करने वाले और पाचक हैं। बहेड़ा विरेचक  भी होता है। यह आमाशय को शक्ति देता है। आमाशय को ताकत देने वाली कोई भी दूसरी औषधि इससे बढ़कर नहीं है। इसका आधा पका फल रेशेदार और पाचक होता है। बहेड़ा बालों के लिए लाभकारी तथा मज्जा मदकारी होती है।
    बहेड़ा  का वानस्पतिक नाम  टर्मिनेलिया बेलेरिका  है र
    यह कॉम्ब्रेटेसी कुल का है।
     लैटिन नाम --बेलेरिक मॉयरोबालान
     हिंदी में  – हल्ला, बहेड़ा, फिनास, भैरा, बहेरा;
    इंग्लिश में  – सियामीस टर्मिनेलिआ , बास्टर्ड मायरोबालान
  भेदनम लघु रुक्षोषणम वैस्वर्य कृमिनाशनम .चक्षुश्यम स्वादुपाकयक्षं कषायाम कफपित्तजित .
  विभीतको मदकारः कफ्मारुतनाशनः (सु सू ४६ )
    इस पौधे में विभिन्न रासायनिक यौगिक होते हैं जैसे कि साइटोस्टेरॉल, एग्लिक एसिड, गैलिक एसिड, गैलॉयल ग्लूकोज, चेबुगैलिक एसिड, प्रोटीन, ऑक्सालिक एसिड, टैनिन, गैलेक्टोज, ग्लूकोज, मैनिटोल, फ्रुक्टोज, चेबुलासिक एसिड और रेमनोस
    बहेड़ा के फायदे
     बालों की बीमारी का इलाज  
    बहेड़ा फल की मींगी का तेल बालों के लिए अत्यन्त पौष्टिक है। इससे बाल स्वस्थ हो जाते हैं।
    आँखों के रोग में
    बहेड़ा और शक्कर के बराबर मात्रा में मिश्रण का सेवन आँखों की ज्योति को बढ़ाता है।
   तिल का तेल, बहेड़ा का तैल, भांगरा का रस तथा विजयसार का काढ़ा लें। इनको लोहे के बर्तन में तेल में पकाएं। इसका रोज प्रयोग करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
    बहेड़ा की छाल को पीसकर मधु के साथ मिलाकर लेप करने से आँख के दर्द का नाश होता है।
    बहेडे की मींगी के चूर्ण को मधु के साथ मिलाकर काजल की तरह लगाने से आँख के दर्द तथा सूजन आदि में लाभ होता है।
    इसके बीज के मज्जा के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर महीन पेस्ट बना लें। इसे रोज सुबह काजल की तरह लगाने से आँख का रोग नष्ट होता है।
    ज्यादा लार बहने में
   1½ ग्राम बहेड़ा में समान मात्रा में शक्कर मिला लें। इसे कुछ दिन तक खाने से अधिक लार बहने की परेशानी ठीक होती है।
    दमा में
    बहेड़ा और हरड़ की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे 4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से दमा और खांसी में लाभ होता है।
    बहेड़ा के बीज रहित फल के 3 से 6 ग्राम छिलके (जिन्हें पुटपाक करके निकाला है) को मुंह में रखकर चूसने से खांसी एवं दमा रोग में लाभ होता है।
    बहेड़ के फल की छाल के चूर्ण (10 ग्राम) में अधिक मात्रा में मधु मिला लें। इसे चाटने से दमा की गंभीर बीमारी तथा हिचकी में भी शीघ्र लाभ होता है।
    गुर्दे की पथरी में
     बहेड़ा के फल के मज्जा के 3-4 ग्राम चूर्ण में मधु मिला लें। इसे सुबह-शाम चाटने से गुर्दे की पथरी की बीमारी में लाभ होता है।
    खाँसी में
    बहेड़ा के छिलके को चूसने से खांसी में लाभ होता है।
    बकरी के दूध में अडूसा, काला नमक और बहेड़ा डालकर पकाकर खाने से हर प्रकार की खांसी में लाभ होता है।
     बहेड़ा के 10 ग्राम चूर्ण  में शहद मिला लें। इसे सुबह और शाम भोजन के बाद चाटने से सूखी खाँसी तथा पुराने दमा रोग में बहुत लाभ होता है।
     बहेड़ा फल में घी चुपड़ लें। इसके ऊपर आटे का एक अंगुल मोटा लेप लगाकर पका लें। त्वचा के ताप के बराबर ठंडा होने पर इसके ऊपर का आटा निकाल लें। इसके बाद बहेड़ा के छिलके को चूसें। इससे खांसी, जुकाम, दमा तथा गला बैठने की समस्या में लाभ होता है।
     बहेड़ा के एक फल को घी में डुबाकर, घास से लपेटें। इसे गाय के गोबर में बंद करके आग में पका लें। इसे बीजरहित कर मुंह में रख कर चूसें। इससे खांसी, जुकाम, दमा तथा गला बैठने जैसे रोगों का नाश होता है।
    हृदय रोग में
   बहेड़ा के फल के चूर्ण तथा अश्वगंधा चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में लेकर गुड़ मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
    दस्त को रोकता है
    बहेड़ा फल के 3-6 ग्राम चूर्ण  को खाने के बाद सेवन करने से पाचनशक्ति ठीक होती है।
    बहेड़ा के पेड़  की 2-5 ग्राम छाल और 1-2 नग लौंग को पीसकर 1 चम्मच शहद में मिला लें। इसे दिन में 3-4 बार चटाने से दस्त में लाभ होता है।
    बहेड़ा के 2-3 भुने हुए फल का सेवन करने से दस्त की गंभीर बीमारी भी ठीक हो जाती है।
     पेशाब में जलन में
    बहेड़ा  के फल के मज्जा के 3-4 ग्राम चूर्ण में मधु मिला लें। इसे सुबह-शाम चाटने से पेशाब में जलन की समस्या में लाभ होता है।
      डायबिटीज में
    बहेड़ा, रोहिणी, कुटज, कैथ, सर्ज, सप्तपर्ण तथा कबीला के फूलों का चूर्ण बना लें। इसे 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 चम्मच मधु के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे पित्त विकार के कारण हुए डायबिटीज में लाभ होता है।
     नपुंसकता का उपचार
3 ग्राम बहेड़ा के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिला लें। इसे रोज सुबह-शाम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है और काम भावना बढ़ती है।
     त्वचा रोग में
    बहेड़ा  फल की मींगी का तेल खाज, खुजली आदि त्वचा रोग में लाभकारी है तथा जलन कम करने वाला है। इसकी मालिश से खुजली और जलन की परेशानी ठीक हो जाती है।
    बुखार उतारने के लिए करें
    बहेड़ा और जवासे के 40-60 मिली काढ़े में 1 चम्मच घी मिला लें। इसे दिन में तीन बार पीने से पित्त और कफ विकार से हुए बुखार में लाभ होता है।
     बहेड़ा के मज्जा को पीसकर शरीर पर लेप करने से पित्तज बुखार से होने वाली जलन कम होती है।
     सूजन को कम करता
     बहेड़ा के बीजों को पीस कर लेप करने से सभी प्रकार की सूजन, जलन और दर्द  का नाश होता है।
     बहेड़ा की मींगी का लेप करने से पित्त विकार के कारण आयी सूजन का ठीक होती है।
    नेत्र रोग में
    नेत्र रोग में  बहेड़ा का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार बहेड़ा में चक्षुष्य गुण पाया जाता है जिससे बहेड़ा नेत्र संबंधी रोग में लाभ पहुंचाता है।
    श्वास रोग में
   श्वास की समस्या अधिकतर कफ दोष के बढ़ने की वजह से होती है जिसमें श्वसन नली में बलगम इकठ्ठा होना शुरू हो जाता है। बहेड़ा में कफ शामक गुण पाया जाता है साथ ही इसके उष्ण होने के कारण यह बलगम को पिघला कर आराम देने में सहयोगी होता है।
    पाचन शक्ति को बेहतर करने में
    बहेड़ा में उष्ण गुण पाए जाने के कारण यह अग्नि को तीव्र कर पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करता है।  
      बहेड़ा  का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी हो सकती है।
    बहेड़ा के उपयोगी हिस्से ---छाल,फल,सूखे फलों के बीज, मज्जा
    बहेड़ा के सेवन की मात्रा    3-6 ग्राम
   योग --विभीतक तेल ,त्रिफ़ल चूर्ण ,फ़लत्रिकादि क्वाथ ,तालिशादी चूर्ण ,लवंगादि वटी
 (विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन) 

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