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आयुर्वेदानुसार दिनचर्या और आहारचर्या  

आयुर्वेदानुसार दिनचर्या और आहारचर्या  

                आधुनिक जीवन शैली के कारण अनियमित दिनचर्या और आहार चर्या के कारण अस्त व्यस्त जिंदगी होने के कारण बहुत अधिक बीमारियां होने लगी .इससे तन ,मन ,धन  रोगग्रस्त होने लगे .सबको ईश्वर ने २४ घंटे दिए हैं यदि आप अपना जीवन व्यवस्थित बना सकते हैं उसके लिए कहीं अलग से धन व्यय नहीं करना पड़ता मात्र समय को देना हैं .समय का उपयोग आपको स्वस्थ्य बना सकता हैं
     आयुर्वेद के इन स्वस्थ आदतों का पालन करने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। साथ ही व्यक्ति लंबा जीवन जीता है।
    आयुर्वेद के इन स्वस्थ आदतों का पालन करने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। साथ ही व्यक्ति लंबा जीवन जीता है।
     फिट और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने का मतलब केवल अपने जीवन में अधिक बदलाव लाना और नई आदतों को शामिल करना नहीं है, यह आपकी अपनी नियमित दिनचर्या पर ध्यान देना भी है। आयुर्वेद के अनुसार, रोजमर्रा की अच्छी आदतों का पालन करके कोई भी स्वस्थ जीवन जी सकता है।
     'आयुर्वेद जीवन का एक तरीका है, यह हमारी आदतों में सुधार का एक दैनिक प्रयास है। इस प्राचीन ज्ञान के मार्गदर्शन के साथ, हम अपने आहार और जीवन शैली में सुधार कर सकते हैं जिससे न केवल हम स्वस्थ रह सकते हैं बल्कि लंबा जीवन भी जी सकते हैं।'
   'आयुर्वेद आपके शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है क्योंकि ये तीनों क्षेत्र जुड़े हुए हैं।' आयुर्वेद से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण आदतों को जिन्हें अपनाकर हर कोई स्वस्थ जीवन जी सकता है।
    स्वस्थ जीवनशैली के तरीके
    जागना
    आयुर्वेद के अनुसार, सुबह सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पहले जल्दी उठ जाना चाहिए। यह एक अच्छी आदत है और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करती है। हमारे बुजुर्गे हमेशा ब्रह्म मुहूर्त में जागने की सलाह देते थे। ब्रह्म मुहूर्त एक शुभ अवधि है, जो सूर्योदय से 1 घंटे 36 मिनट पहले शुरू होती है और इसके 48 मिनट पहले समाप्त होती है।
    नस्य कर्म करें (नाक का ड्रॉप)
    दो बूंद तिल का तेल, सरसों का तेल या घी अपनी नाक में डालें। यह बालों का समय से पहले सफेद होना, गंजेपन को रोकता है और अच्छी नींद आने में मदद करता है।
    व्यायाम करें
     सुबह जल्दी व्यायाम करने से शरीर की सुस्ती दूर हो जाती है। इससे शरीर रिचार्ज होता है और कायाकल्प करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा व्यायाम तन और मन दोनों को स्वस्थ रखता है।
    दांतों की देखभाल
    नीम (अजादिराच्ता इंडिका), खादिर (बबूल का कत्था) आदि की एक ताजा छड़ी का उपयोग करने से दांत साफ हो जाते हैं और मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है।
   अभ्यंग --
      शीत ऋतू में सरसो या टिल के तेल की मालिश करना चाहिए ,मालिश से रक्त का प्रवाह बढ़ता हैं और अच्छा महसूस होता हैं .
     स्नान
    आयुर्वेद के अनुसार, नियमित एक्सरसाइज के आधे से एक घंटे बाद नहा लेना चाहिए।
     पूजा पाठ --
       हर व्यक्ति को अपने जीवन के व्यस्त समय में से कुछ समय पूजा पाठ ध्यान करना चाहिए .इससे मन में शांति मिलती हैं और सकारात्मक सोच बढ़ती हैं .
     मसाला
     मसाले पाचन में मदद करते हैं, हृदय को स्वस्थ रखते हैं और सूजन से लड़ते हैं। रोजाना जीरा, धनिया, अदरक और हल्दी का सेवन करना चाहिए।
       नींद
    पर्यावरण को स्वच्छ और सुखद बनाए रखें। दिन में सोने से बचें। रात में पर्याप्त नींद लें। उचित नींद स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करती है।
       अध्ययन करना
      आजकल मोबाइल ,लेपटॉप का चलन बहुत अधिक होने से पुस्तकों ,पत्रिकाओं के पढ़ने का चलन काम होता जा रहा  हैं ,जो मन पर कभी कभी विपरीत प्रभाव पड़ता हैं .पुस्तकें धार्मिक ,साहित्य ,ऐतहासिक पुस्तकें जरूर पढ़े जिससे विषय के प्रति लगाव मिलता हैं और जानकारी मिलती हैं .
खाने से जुड़े कुछ नियम पालन करने से पाचन संबंधी समस्याओं से बचे रहेंगे।
      खाना हमारी दैनिक दिनचर्या का जरूरी हिस्सा है। जीवित रहने के लिए लोगों को खाने की जरूरत होती है। यह एक ऐसी चीज है, जिस पर हम ज्यादा सोच-विचार नहीं करते। क्योंकि इसी की वजह से हम सांस ले पाते हैं, सो पाते हैं यहां तक की चलना-फिरना भी खाना खाने की वजह से ही संभव है। फिर भी यदि देखा जाए, तो बहुत से लोग पाचन संबंधी समस्याओं से ग्रसित होते हैं। कई लोगों को हर समय अपच, अम्लता, कब्ज और सुस्त पाचन की समस्या बनी ही रहती है। इससे निजात दिलाने के लिए आयुर्वेद आपकी मदद कर सकता है।
        खाने के नियमों के अनुसार, हम सभी को खाद्य पदार्थों को ठीक से खाने और पचाने के लिए खाने के नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है।
    आयुर्वेद के अनुसार खाने से जुड़े नियम
    गर्म और ताजा भोजन करें-
    विशेषज्ञ के अनुसार, ठंडा भोजन खाने से हमेशा बचें। कोशिश करें, जो भोजन आप कर रहे हैं, वह गर्म और ताजा हो। बता दें कि गर्म भोजन अग्रि या पाचन अग्नि को उत्तेजित करता है। इतना ही नहीं यह पाचन क्रिया को बढ़ावा देने में भी मददगार है।
      गर्म भोजन से मतलब भोजन इतना गर्म होना चाहिए कि आप इसे आसानी से खा सकें। बहुत ज्यादा तेज गर्म भोजन खाने से जितना बचेंगे, उतना अच्छा है। यह शरीर में पित्त दोष को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। जबकि ठंडा भोजन पाचन क्रिया को बुरी तरह से प्रभावित कर देता है।
    तेल का सेवन भी जरूरी
    आजकल मोटापे और कोलेस्ट्रॉल के चलते लोगों ने खाने में तेल की मात्रा बेहद कम कर दी है। लेकिन आयुर्वेद कहता है कि खाने में तेल को अवॉइड नहीं करना चाहिए। सीमित मात्रा में ही सही, लेकिन तैलीय भोजन करना आयुर्वेद का नियम है।
    जरूर से ज्यातदा न खाएं
    कई लोग भूख लगने पर जरूरत से ज्यादा खाना खा लेते हैं। लेकिन कुछ समय बाद इन लोगों को कब्ज और पाचन संबंधी समस्याएं घेर लेती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति को सही मात्रा में ही भोजन करना चाहिए। भोजन की सही मात्रा वात, पित्त और दोष पर किसी भी प्रभाव के बिना आपकी उम्र बढ़ाते हैं।
     केवल दोपहर में ही करें भारी भोजन
     कहा जाता है कि दोपहर का भोजन सबसे जरूरी और अच्छा होना चाहिए। आयुर्वेद का नियम है भले ही सुबह और शाम कम भोजन खाएं, लेकिन दोपहर का खाना बहुत स्वस्थ्य और अच्छा होना चाहिए।
     हल्का डिनर करें
    आयुर्वेद के अनुसार, रात 8 बजे से पहले हल्का भोजन करना चाहिए। यह मेटोबोलिक तत्वों को रात में थोड़ा आराम करने में मदद करता है।
     आयुर्वेद में तमाम बीमारियों को रोकने के लिए व्यक्ति की जीवनशैली के साथ खानपान की आदतों को बदलने पर जोर दिया जाता है। इससे तीनों दोषों वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहेगा और आप जीवनभर स्वस्थ बने रहेंगे।
       खाना अपने पेट से आधी मात्रा में करना और एक चौथाई पानी पीना और एक चौथाई खाली रखना .पर आजकल शादी विवाह पार्टी में लोग ठूस ठूस तक ,गले तक खाते हैं उसके बाद अजीर्ण ,वमन के  रोग होते हैं .इसीलिए समय पर और उचित मात्रा में खाना खाये .
         दिनचर्या और आहारचर्या का हमारे जीवन में मुख्य स्थान हैं .
(लेखक-  विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
 

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