भारत के शीश (कश्मीर) में एक बार फिर ’सरदर्द‘ काफी बढ़ गया है, आजादी के बाद से आज तक कोई भी सरकार कश्मीरी अवाम को भारत के पक्ष में नही कर पाई और अब देश के गृहमंत्री कश्मीर में है तो भी वहां आतंकी घटनाएं जारी है, आज ही बांदीपोरा में किए गए विस्फोट में आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, अमित शाह जी लाख कश्मीर में जाकर कहे कि हम कश्मीरियों की सोच बदलना चाहते है और कश्मीरियों को हर तरह की सुविधा प्रदान करना चाहते है, किंतु उनके इस प्रयास से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि वास्तव में कश्मीरियों के हित की बात कर रहे है या आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी और सरकार का प्रचार कर रहे हैं? एक तरफ वे मंच से ’बुलेट प्रुफ‘ आवरण हटवा रहे है और दूसरी ओर किसी होटल या सरकारी अतिथि गृह के बजाये सीआरपीएफ के कैम्प में रात्रि विश्राम कर रहे है, आखिर यह सब क्या प्रदर्शित करता है? यहां तक तो फिर भी ठीक है, किंतु केन्द्रीय गृहमंत्री के कश्मीर में रहते वहां के पाक परस्त लोगों ने टी-20 विश्वकप के मैच में भारत के विरूद्ध पाक की जीत पर पटाखें फोड़े और वहां का सुरक्षा बल यह सब देखता रहा? क्या यह कम आश्चर्यजनक है? अरें.... जिस कश्मीर के आवाम को पचहत्तर सालों के प्रधानमंत्रीगण भारत के पक्ष में नही कर पाये, उस आवाम को भारत के पक्ष में करने का गृहमंत्री जी का प्रयास ’शेखचिल्ली‘ का प्रयास नहीं माना जाएगा? स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कश्मीरियों की सर्वदलीय बैठक बुलवाकर उन्हें भारत के पक्ष में नहीं कर पाये, वह क्या अमित भाई तीन दिन के कश्मीर दौरे में कर पाएगें? यदि आज के शासन के कर्णधार ज्यादा नहीं आजादी के बाद भारत के विभाजन के समय के ”कश्मीर प्रसंग“ को जान लेते तो उन्हें समझ आ जाता कि कश्मीरियों को पटाना कितनी ’टेढ़ी खीर‘ है? भारत के विभाजन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर प्रकरण में शेख अब्दुल्ला जी को कश्मीर में जनमत संग्रह करवाकर वहां के लोगों की आम राय जानने का लिखित समझौता किया था, किंतु नेहरू जी तो क्या उनके बाद के भी किसी प्रधानमंत्री ने नेहरू के लिखित समझौते का पालन करने की हिम्मत नहीं दिखाई और मौजूदा दौर में कश्मीरी जो अपना पाक प्रेम उजागर कर रहे है, उसके चलते नरेन्द्र भाई मोदी जी भी क्या कश्मीर को लेकर सात दशक पहले हुए लिखित समझौते का पालन करवा पाएगें?
आज जो कुछ भी कश्मीर में हिंसक वारदातें हो रही है, उसमें पाक आतंकियों के साथ कश्मीरियों के जुड़े होने के सबूत कई बार मिल चुके है और पाक की जीत पर पटाखें फोड़े जाने पर पीडीपी नैत्री महबूबा मुती की आई प्रतिक्रिया पढ़ लीजिए, इससे क्या प्रतीत होता हैश् अब ऐसी हालत में क्या कश्मीरियों को भारत के प्रति लगाव संभव है?
भाजपा की केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी चिंता ही यही है, आखिर वहां राष्ट्रपति शासन कब तक रखा जा सकता है, उसकी भी तो कोई समयसीमा होगी ही? और यदि मौजूदा स्थिति में वहां विधानसभा चुनाव कराये जाते है तो भाजपा की सबसे बड़ी चिंता ही यही है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के सरकार के फैसले ने कश्मीरियों के घाव और गहरे कर दिये है और अब हर कश्मीरी सरकार व भाजपा के खिलाफ है, ऐसे में आखिर केन्द्रीय गृहमंत्री जी वहां क्या कर पायेगें?
इस तरह कुल मिलाकर कश्मीर आज भी भारत का ’सरदर्द‘ है और इसके कम होने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आ रही है और यही नहीं भाजपा के ऐसे प्रयासों से आम कश्मीर और अधिक उद्वेलित हो रहा है, इस समस्या का हल खोजने के लिए ”अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता“ या संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था के प्रयास जरूरी है।
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता )
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