बिहार के दरभंगा ज़िले के कुशेश्वरस्थान तथा मुंगेर ज़िले की तारापुर विधानसभा सीटों पर आगामी 30 अक्टूबर को उपचुनाव होने जा रहे हैं। यही वह दो सीटें हैं जो बिहार में कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन टूटने का कारण बनीं । कांग्रेस का आरोप है कि राजद ने कांग्रेस पार्टी से सलाह किये बिना इन दोनों ही सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये जोकि गठबंधन धर्म के विरुद्ध था। विगत आम विधानसभा चुनाव में तारापुर में आरजेडी का प्रत्याशी दूसरे नंबर पर था जबकि कुशेश्वरस्थान से कांग्रेस का प्रत्याशी दूसरे स्थान पर था। इसी आधार पर कुशेश्वरस्थान सीट पर कांग्रेस की अपनी दावेदारी थी परन्तु राजद ने कांग्रेस से विमर्श किये बिना दोनों ही सीटों से अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये नतीजतन कांग्रेस-राजद गठबंधन टूट गया। उधर राजद के बाद कांग्रेस ने भी दोनों ही सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान उतार कर चुनावी संघर्ष को और भी दिलचस्प बना दिया है। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने जिन युवाओं को स्टार प्रचारक के रूप में ज़िम्मेदारी सौंपी है तथा जिनकी राजनैतिक सूझ बूझ व कौशल पर भरोसा किया है वे हैं कन्हैया कुमार,जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल।
कांग्रेस में शामिल होने के बाद गत 22 अक्टूबर को पहली बार कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल के साथ पटना स्थित ऐतिहासिक राज्य कांग्रेस मुख्यालय भवन सदाक़त आश्रम पहुंचे। यहाँ न केवल भारी संख्या में आये कांग्रेसजनों ने इन युवा नेताओं का भरपूर जोश व उत्साह से स्वागत किया बल्कि उनके समक्ष विभिन्न दलों से आये के अनेक नेताओं ने भी कांग्रेस की सदस्य्ता ग्रहण की। सदाक़त आश्रम में हाज़िरी लगाने के बाद इन युवा नेताओं ने कुशेश्वरस्थान तथा तारापुर विधानसभा सीटों के चुनाव प्रचार की कमान संभाली। इन दोनों सीटों पर चुनाव परिणाम क्या होंगे इसका फ़ैसला तो दो नवंबर को होगा परन्तु कन्हैया कुमार की विशेष संवाद शैली और जनमानस को झकझोर कर रख देने वाली उनकी भाषण कला ने इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की ज़बरदस्त उपस्थिति ज़रूर दर्ज करा दी है। कन्हैया को सुनने के लिये उपचुनाव की नुक्कड़ सभाएं, बड़ी सभाओं में बदल गयीं और कन्हैया द्वारा जनता के बीच रखे जा रहे सवालों व बात करने के उनके दो टूक अंदाज़ के चलते मतदाताओं का ज़बरदस्त आकर्षण कांग्रेस की ओर तेज़ी से बढ़ा है।
पैरों में हवाई चप्पल तथा आज के युवाओं के फ़ैशन के मुताबिक़ साधारण पैंट शर्ट पहने हुए जब वे बिहार के युवाओं से ठेठ बिहारी,मैथली व भोजपुरी भाषा में रूबरू होकर उन्हें उनकी वास्तविक स्थिति से अवगत कराते हुए उन्हें आत्मावलोकन की सीख देते हैं तो युवाओं में जोश पैदा हो जाता है। युवाओं के जोश व वरिष्ठ लोगों के होश एवं अनुभव के साथ जब वे बिहार में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने का आह्वान करते हुए जब वे बिहार को पर्यटन व उद्योग सहित अनेक क्षेत्रों में आगे ले जाने के लिये जनता साथ मांगते हैं तो बिहार की जनता एक नवोदित बिहारी युवा होने के नाते उन पर भरोसा करती नज़र आती है। निश्चित रूप से यह कन्हैया कुमार की युवाओं में बढ़ती लोकप्रियता का ही परिणाम था कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद तेजस्वी व चिराग़ पासवान जैसे क्षेत्रीय युवा क्षत्रप भी असहज दिखाई दिये। क्योंकि कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय राजनैतिक दल को जहाँ बिहार में एक बड़ा युवा चेहरा मिल चुका है वहीं कन्हैया जैसे युवा आइकॉन बन चुके मुखर सत्ता आलोचक को भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने व अपने विचारों को देश के कोने कोने में पहुँचाने का कांग्रेस रुपी एक बड़ा प्लेटफ़ॉर्म मिल गया जो उनकी पूर्ववर्ती पार्टी अपनी अति सीमित संगठनात्मक क्षमता के कारण उन्हें नहीं दे पा रही थी।
स्वभावतः प्रायः सांप्रदायिक सद्भाव आधारित बिहार राज्य से सांप्रदायिक शक्तियों के विस्तार को रोकने से लेकर जात-पात के भेदभाव मिटाने तक के प्रयासों के पक्ष में जब वे अपनी बात रखते हैं और बड़ी साफ़गोई से यह भी कहते सुनाई देते हैं कि बेशक मैं कांग्रेस पार्टी की तरफ़ से वोट मांगने ज़रूर आया हूँ परन्तु आप मेरे कहने से वोट न देना बल्कि जब आपको मेरी बातें,मेरा तर्क सही लगे और आपका विवेक आपकी आत्मा आपको आवाज़ दे, तभी कांग्रेस को वोट डालना,उनका यह अंदाज़ मतदाताओं में उनके प्रति और भी विश्वास जगाता है। उपचुनाव में फैलाये जा रहे धर्म निरपेक्ष मतों के विभाजन के तर्क को भी वे कांग्रेस के पक्ष में बख़ूबी बयान करते हैं। गाँधी-भगत-सिंह की जय के साथ जब वे जय भीम बोलते हैं उस समय जनता का आकर्षण कांग्रेस पार्टी में एक नया संचार पैदा करता है। आत्ममुग्धता व स्वप्रशंसा से दूर रहने वाले कन्हैया को इसी बिहार उपचुनाव की एक सभा में जब एक वक्ता ने ' आजका भगत सिंह' कहकर मंच पर आमंत्रित किया उस समय माइक पकड़ते ही कन्हैया ने उनकी भगत सिंह से तुलना किये जाने पर घोर असहमति व आपत्ति जताई साथ यह भी कहा कि वे तो भगत सिंह के पैरों की धूल भी नहीं हैं। उनका यह अंदाज़ उन्हें एक विनम्र राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करता है।
बिहार के नवनिर्माण में बिहार की जनता का साथ मांगने के साथ कन्हैया बिहार के उन सभी नौकरशाहों से भी सवाल करते हैं जिन्होंने राज्य से शिक्षा दीक्षा लेकर भले ही देश के लिये बहुत कुछ किया हो परन्तु वे उनसे यह भी पूछते हैं कि आख़िर अब तक उन्होंने अपने राज्य के लिये क्या किया ? हालांकि बिहार के विकास के लिये कांग्रेस को उसकी ज़िम्मेदारी से बचाने के लिये वे यह तर्क देते हैं कि गत तीन दशक से चूँकि कांग्रेस सत्ता से बाहर है इसलिये हर सवाल गत तीन दशक के सत्ताधारियों से ही किया जाना चाहिये। हालांकि मुख्यमंत्री नितीश कुमार महिलाओं को पंचायती राज में पचास प्रतिशत आरक्षण,लड़कियों को पढ़ाई हेतु साइकिल देने की योजना,शराबबंदी तथा अन्य विकास संबंधी योजनाओं के नाम पर वोट मांग रहे हैं। परन्तु यह भी अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि उपचुनाव होने वाली तारापुर (मुंगेर )की सीट से जदयू नेता और नीतीश कैबिनेट में मात्र एक दिन के लिए शिक्षा मंत्री रहे मेवालाल चौधरी के निधन के चलते ख़ाली हुई है उनका निधन कोरोना संक्रमित होने के कारण हो गया था। इसीलिये कन्हैया उपचुनाव में यह कहते व जनता व नितीश सरकार से पूछते फिर रहे हैं कि जो सरकार अपने पूर्व मंत्री व अपने विधायक की कोरोना से व स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियों के चलते रक्षा नहीं कर सकी वह सरकार भला आम जनता की रक्षा कैसे करेगी व आम जनता को स्वास्थ्य सुविधायें कैसे मुहैय्या करायेगी। इसमें कोई संदेह नहीं की कन्हैया की हाज़िर जवाबी व उनके विशेष बिंदास परन्तु आक्रामक संवाद शैली ने कांग्रेस में नई उम्मीद तो जगाई है साथ ही बिहार के युवाओं को भी कन्हैया के नेतृत्व में उम्मीद की किरण नज़र आने लगी है।
(लेखिका- निर्मल रानी)
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कांग्रेस में नई उम्मीद जगाती कन्हैया की विशेष संवाद शैली