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क्या दूसरों को कष्ट  देकर पटाखा जलाना कितना जरूरी हैं ?(

क्या दूसरों को कष्ट  देकर पटाखा जलाना कितना जरूरी हैं ?(

बहुत पहले हम अपनी खुहियों  का इज़हार  प्रसन्नता ,आनंद के साथ मनाते और व्यक्त करते थे पर अब जबसे आर्थिक उन्नति हुई और व्यक्तिगत स्वच्छंदता बढ़ी ,सामाजिकता घटी तब से धन ,जन ,मन ,वातावरण का मूल्य घटा .आज हम आधुनिक ,शिक्षित ,हुए अपनी मर्यादाये छोड़ दी या तोड़ दी .जहाँ एक ओर करोड़ों लोग एक एक अन्न के दाने के लिए तरस रहे ,बेरोजगारी के कारण भूखे रह रहे और गरीबी के कारण आत्म हत्याएं कर रहे हैं वहीँ दूसरी ओर धन दौलत ऐश्र्वर्य की कमी नहीं हैं .वैसे भौतिक सुख सुविधाएँ अपने अपने पाप पुण्य से मिलती हैं ,और सब अपने पने कर्मों का फल भोगते हैं .कुछ पूर्व जन्म का तो कुछ वर्तमान में किये गए कर्मों के अनुसार भी भोगते हैं .
          वैसे विगत ३० वर्षों से त्यौहार एक औपचारिकता बनते जा रहे हैं .जबसे आई टी का चलन बढ़ा नवयुवकों को समय का आभाव हो गया पर धन की कमी नहीं रही .आज आपस में बातचीत करने का समय नहीं ,बैठने उठने की परम्परा भी कम होती जा रही हैं .शिक्षित वर्ग महानगरों और विदेशों में पलायन कर गए और कर रहे हैं क्योकि उन्हें उज्जवल भविष्य चाहिए .
          सामाजिकता कम होने से आपसी प्रेम ,लगाव कम होगया .आर्थिक सम्पन्नता के कारण अब एकांगी जीवन यापन करते हैं संयुक्त परिवार की कल्पना कम हो गयी .स्वाभाविक हैं जब सम्पन्नता आती हैं तब उसका उत्साह अलग होता हैं  और होना भी चाहिए .इस समय हम अपनी हृदय की विशालता को बनाये और किंचित अपने आस पास के अलावा उन क्षेत्रों को ध्यान में रख कर यह जरूर सोचे की कोई अभावों से ग्रस्त तो नहीं हैं ,उनके प्रति करुणा भाव रखकर उनको मदद सहायता जरूर करे .इसके लिए हमें अन्य मद का पैसा खर्च न करके जो हम अनावश्यक ,व्यर्थ में खरः करते हैं वह योगदान बहुत मायने रखेगा ..
              हम बहुत जागरूक हो चुके हैं पर हम स्वार्थी हो चुके .हम अपना मनोरंजन ,ख़ुशी का आनंद लेते हैं और हम उसमे बटवारा नहीं करते हैं .वर्षों से इस बात पर जानकारी ,जाग्रति दी जा रही हैं की दीवाली में पटाखों का सीमित या बिलकुल उपयोग न करे .इस बात पर चिंतन करे की क्षण भर की ख़ुशी के लिए हम कितना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं.हमारे कारण लाभ कम और नुक्सान किया जाता हैं .हम धन ,पर्यावरण के साथ अनेकों जीव जंतुओं की अनावश्यक हिंसा के साथ कष्ट देते हैं .और कभी कबि अपने निजियों को भी दुःख देते हैं .जो रुग्ण हैं ,जिनको ध्वनि से कष्ट होता हैं उनको बरबस परेशां करते हैं .
               बहुत चिंतनीय विषय हैं और हर विषय को दो पक्ष होते हैं .कुछ संमर्थन करते हैं तो कुछ विरोध करते हैं पर विरोध करने वाले अपने हृदय से बिना भेदभाव के पूछे की हम पटाखा चलाने या जलाने के बाद क्या पाते हैं .कितना लाभ और कितनी हानि होती हैं .आनंद इसा मनाया जावे जिससे अन्य को मानसिक ,वाचनिक और शारीरिक कष्ट न हो .यह आदर्श ख़ुशी हैं न की कोई आभाव में जीवन जिए और कोई व्यर्थ में धन नष्ट करे .
               त्यौहार उत्साह से जरूर मनाये पर नयों का भी ध्यान रख कर .इस वर्ष इसे ऐसा मनाये तो जरूर पाएंगे आपको सुखद अनुभूति अवश्य होगी. पटाखा हिंसा का प्रतीक हैं और हमें जीवन में अहिंसा की जरुरत हैं.और स्नेह बाटने के लिए हैं .इस वर्ष यह जरूर अपनाये .
           शुभ दीपावली मंगल मय हो

 लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
 

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