प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अपनी इटली यात्रा के दौरान कैथोलिक इसाईयों के मुख्य धर्मगुरू पोप फ्राँसिस से भेंट की तथा अनेक वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया, यह भेंट तय समय बीस मिनट से तीन गुने समय अर्थात्् एक घण्टे चली, इस चर्चा में गोवा व केरल पर भी चर्चा की गई। पोप फ्रांसिस ने भी हमारे प्रधानमंत्री को पूर्ण सम्मान दिया। प्रधानमंत्री ने ईसाईयों के वैश्विक धर्मगुरू से भेंट कर अपने कई राजनीतिक व धार्मिक मकसदों की पूर्ति की। मोदी जी भारत के पांचवें प्रधानमंत्री है, जिन्होंने कैथोलिक धर्मगुरू के साथ सौहार्दपूर्ण भेंट की, मोदी से पूर्व प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, इन्द्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी वेटिकन के तत्कालीन धर्मगुरूओं से भेंट कर चुके है।
मोदी-पोप की भेंट के संदर्भ में यह भी याद रखना जरूरी है कि भारत का आम ईसाई वोटर पारम्परिक रूप से अब तक कांग्रेस के साथ ही रहा है, ऐसे में इस भेंट के बाद यदि यह कहा जाए कि मोदी जी ने पोप फ्रांसिस से भेंट कर भारत के ईसाई मतदाताओं की सहानुभूति और विश्वास अर्जित करने का प्रयास किया तो यह कतई गलत नहीं होगा। इसका ताजा उदाहरण केरल कैथोलिक विश्व सम्मेलन के अध्यक्ष कतर्किनल जॉर्ज एलेन चेरी का वह बयान है जो उन्होंने मोदी जी की इस भेंट के बाद जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि मोदी-पोप की यह भेंट हमारे देश व वैटिकन और कैथोलिक चर्च के बीच सम्बंधों में नई ऊर्जा और गर्मजोशी का संचार करेगी, जार्ज एलेन चेरी का यह बयान इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से देश के ईसाई संस्थानों पर हमलों का दौर जारी है और देश की सरकार पर इन हमलों को रोक पाने में निष्क्रीयता के आरोप लगाए जा रहे है।
यद्यपि प्रधानमंत्री ने पोप फ्रांसिस से धरती को बेहतर बनाने से लेकर विश्व के कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की, इसीलिए यह चर्चा पूर्व निर्धारित समय से करीब चालीस मिनट अधिक चली, किंतु यह भी सही है कि इस चर्चा को भारत तथा भारत की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा दोनों के लिए ही काफी उपयोगी और समयानुकूल माना जा रहा है और इस भेंट से देश के ईसाईयों के मन-मस्तिष्क को बदलने में भाजपा को काफी सफलता मिलेगी।
यहाँ यह बताना भी समयोचित होगा कि भारत के ईसाईयों की कांग्रेस के प्रति जो दिलचस्पी व सहानुभूति है, वह आज की नहीं कई दशकों पुरानी है, खासकर उस समय की जब जुलाई 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने वेटिकन की यात्रा कर पहली बार तत्कालीन धर्मगुरू पोप पायस-12 से भेंट की थी और गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से छुड़ाकर उसे आजाद कर अखण्ड भारत के साथ मिलाने पर गंभीर मंत्रणा की थी, तभी से भारत का आम ईसाई वोटर कांग्रेस के साथ है और अब नेहरू के बाद मोदी जी ऐसे प्रधानमंत्री है, जिन्होंने ईसाई वोटरों की सोच बदलने की दिशा में यह प्रयास किया है। यद्यपि नेहरू को उस समय देश की कतिपय ईसाई संस्थाओं व संगठनों का विरोध भी झेलना पड़ा था, किंतु मौजूदा माहौल में मोदी के लिए ऐसा कोई खतरा नही है।
अब यह तो भविष्य के गर्भ में है कि मोदी-पोप की इस भेंट का देश में राजनीतिक स्तर पर कितना असर होता है? और ईसाई वोटरों की मंशा के अनुरूप उनकी संस्थाओं पर हो रहे हमले रूकते है या नहीं? किंतु यह तय है कि विश्व के धार्मिक व राजनीतिक शीर्ष नेताओं की यह भेंट कई सार्थक परिणाम अवश्य प्रदर्शित करेगी।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता )
आर्टिकल
पोप से भेंट: मोदी का मकसद....!