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वृंदा तुलसी रूप में, है सचमुच वरदान।
जिस आँगन तुलसी रहे, घर पाए उत्थान।।
तुलसी है आरोग्य निधि, है औषधि का मान।
तुलसी पौधा धार्मिक, पर हर घर की शान।।
वृंदा के तप-तेज को, किया विष्णु ने भंग।
वृंदा तुलसी बन हुई, हरि-पूजन में संग।।
तुलसी-पूजन हो जहाँ, वहाँ देव का वास।
सुख,खुशियाँ पलते वहाँ, रहे दिव्यता-वास।।
माह कार्तिक कर रहा, पावनता-संचार।
तुलसी चौरे से झरे, तेज भरा उजियार।।
काल संध्या दीपमय, तुलसी जी का गान।
हम सब पाएँगे सतत, हरि-वंदन की आन।।
तुलसी-पत्ते रोग को, करते हैं नित दूर।
घर-आँगन में फैलता, हर्ष,चैन का नूर।।
वृंदा तुलसी बन हुई, सचमुच में अभिराम।
पूजे घर-घर नारियाँ, नित्य और अविराम।।
तुलसी की महिमा रखें, सारे वेद-पुराण।
रोग हरे बनकर सदा, तुलसी औषधि-बाण।।
तुलसी का वंदन करो, स्तुति, पूजन, मान।
तुलसी लाती है सदा, हर घर नवल विहान।।
(लेखक--प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे)