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कण्टकारी---- अनेकों कष्टों का निवारक 

कण्टकारी---- अनेकों कष्टों का निवारक 

कटेरी एक प्रकार का कांटेदार पौधा होता है जो जमीन में फैला होता है। कटेरी के पत्ते हरे रंग के, फूल नीले और बैंगनी रंग के और फल गोल और हरे रंग के सफेद धारीदार होते हैं। इस कांटेदार पौधे के इतने गुण हैं कि आयुर्वेद में इसका उपयोग औषधि के रुप में किया जाता है।
     कटेरी का पौधा  झाड़ी के रूप में जमीन पर फैला हुआ होता है। इसको देखने से ऐसा लगता है, जैसे कोई क्रोधित नागिन शरीर पर अनेकों कांटो का वत्र ओढ़े गर्जना करती हुई मानो कहती हो, मुझे कोई छूना मत। कटेरी में इतने कांटे होते हैं कि इसे छूना दुष्कर है, इसीलिए इसका एक नाम दुस्पर्शा है।
     कटेरी की  तीन प्रजातियों
1. छोटी कटेरी
2. बड़ी कटेरी
 3. श्वेत कंटकारी  का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है।
      छोटी कटेरी के दो भेद होते हैं एक तो बैंगनी या नीले रंग के पुष्प वाली जो कि सभी जगह मिल जाती है। दूसरी सफेद पुष्पवाली जो हर जगह नहीं मिलती है। इस दूसरी प्रजाति को सफेद कण्टकारी कहते हैं। इस प्रजाति को श्वेतचन्द्रपुष्पा, श्वेत लक्ष्मणा, दुर्लभा, चन्द्रहासा, गर्भदा आदि नामों से जाना जाता है।
        सफेद कांटा वाला  पौधा वर्षायू, छोटा एवं हल्के रंग का होता है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं तथा फूलों के भीतर की केसर सफेद या पीले रंग के होते हैं। इसकी जड़ छोटी, पतली तथा शाखायुक्त होती है। यह पौधा शीत-ऋतु में पैदा होता है तथा वर्षा-ऋतु में गल जाता है।
       गर्म प्रकृति की होने के कारण कटेरी पसीना पैदा करने वाली होती है तथा कफ वात को भी कम करने में मदद करती  है। कटेरी का पौधा कटु, कड़वा और गर्म तासिर का होने के कारण खाना हजम करने में सहायता करता है। भूख कम लगने और पित्त संबंधी बीमारी को दूर करने के में यह औषधि बड़ी प्रभावशाली तरीके से काम करती है।  यह मूत्र संबंधी बीमारी और बुखार को कम करने में फायदेमंद होती है। मूत्रल होने के कारण शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाकर सूजन में, सूजाक या गोनोरिया, मूत्राघात और मूत्राशय की पथरी में भी यह औषधि लाभकारी सिद्ध हुई है। यह खून को साफ करने वाली, सूजन कम करने वाली और रक्तभार को कम करती है। यह सांस संंबंधी नलिकाओं तथा फेफड़ों से हिस्टेमीन को निकालती है। यह आवाज को बाघ या व्याघ्र के समान तेज करती है इसलिए इसको व्याघी कहते हैं।
      श्वेत कंटकारी प्रकृति से कड़वी, गर्म, कफवात कम करने वाली, रुचि बढ़ाने वाली, नेत्र के लिए हितकर, भूख बढ़ाने वाली, पारद को बांधने वाली तथा गर्भस्थापक होती है। इसके बीज भूख बढ़ाने में मदद करते हैं। इसकी जड़ भूख बढ़ाने तथा हजम शक्ति बढ़ाने में मदद करती है।
       श्वेत कंटकारी के फल भूख बढ़ाने वाली, कृमिरोधी; सांस की तकलीफ, खांसी, बुखार या ज्वर, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्या, अरुचि या खाने की कम इच्छा, कान में सूजन आदि बीमारियों के उपचार में हितकारी होती है। श्वेत कंटकारी के फल का काढ़ा बुखार से राहत दिलाती है।
      कंटकारी की जड़ से प्राप्त रस में स्टेफीलोकोक्कस औरीयस ) एवं एस्चरीशिया कोलाई  रोधी गुण पाए जाते हैं।
      कटेरी का वानस्पतिक नाम . सोलेनम वर्जिनीएनम   होता है। कटेरी   सोलैनेसी कुल की होती है।
      कटेरी को अंग्रेजी में येलो बेरीड नाइट शेड लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतों में कटेरी भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे-
      संस्कृत में -कण्टकारी, दुस्पर्शा, क्षुद्रा, व्याघी, निदिग्धिका, कण्टकिनी, धावनी;
      हिंदी में -कटेरी, कंटकारी, छोटी कटाई, भटकटैया, रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटयाली;
      इंग्लिश में -थॉर्नी नाइट शेड
       कंटाकारी में निम्नलिखित रासायनिक घटक होते हैं: कार्पेस्टेरोल, ग्लूको-अल्कलॉइड सोलानोकार्पिन; सोलनिन-एस; सोलासोडाइन, - सोलामार्जिन, साइक्लोआर्टनॉल, साइक्लोआर्टेनॉल, स्टिग्मास्टरोल, कैंपस्टेरॉल, कोलेस्ट्रॉल, सिटोस्टेरिल-ग्लूकोसाइड, स्टिग्मास्टेरिल- - साइटस्टेरॉल, 3,4 का मिथाइल एस्टर- डाइहाइड्रॉक्सीसिनैमिक एसिड और 3,4- ...
       फायदे
     कटेरी के फायदों के बारे में बहुत कम जानकारी लोगों को पता है। लेकिन इस कंटीले पौधे के अनगिनत औषधीय गुणों के कारण कटेरी को कई बीमारियों के उपचार स्वरूप प्रयोग किया जाता है।
      सिरदर्द में
    अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो कटेरी का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
      -कटेरी का काढ़ा, गोखरू का काढ़ा तथा लाल धान के चावल से बने ज्वरनाशक पेय का थोड़ी-थोड़ी  मात्रा में दिन में तीन-चार बार सेवन करने से बुखार होने पर जो सिर दर्द होता उसमें आराम मिलता है।
      -कटेरी के फल के रस को माथे पर लेप करने से सिर दर्द कम होता है।
      गंजापन करे दूर
     अक्सर किसी बीमारी के कारण बाल झड़कर गंजेपन की अवस्था आ गई है तो कटेरी का इलाज फायदेमंद साबित हो सकता है-
       -20-50 मिली कटेरी पत्ते के रस में थोड़ा शहद मिलाकर सिर में चंपी करने से इन्द्रलुप्त (गंजापन) में लाभ होता है।
      -श्वेत कंटकारी के 5-10 मिली फल के रस में मधु मिलाकर सिर में लगाने से इन्द्रलुप्त में लाभ होता है।
      रूसी या दारूणक रोग
     दिन भर बाहर धूल मिट्टी या धूप में काम करने पर अक्सर बालों में रूसी की समस्या हो जाती है। इससे निजात पाने के लिए कटेरी फल के रस में समान मात्रा में मिलाकर सिर में लगा सकते है।
    आँखों की बीमारी में
     आँख संबंधी बीमारियों में बहुत कुछ आता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में  कटेरी से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। कटेरी  के 20-30 ग्राम पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी बनाकर आंखों पर बांधने से (आंखों का दर्द ) दर्द कम होता है।
     जुकाम से दिलाये राहत
मौसम के बदलने पर नजला, जुकाम व बुखार हो जाता है, उसमें पित्तपापड़ा, गिलोय और छोटी कटेरी  सबको समान मात्रा में (20 ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी में पकाकर एक चौथाई भाग का काढ़ा पिलाने से बहुत लाभ मिलता है।
      दांत दर्द में
     दांत दर्द की परेशानी दूर करने में कटेरी मदद करती है।
    -अगर दांत बहुत दुखती हो तो कटेरी के बीजों का धुआं लेने से तुरन्त आराम मिलता है। कटेरी की जड़छाल, पत्ते और फल लेकर उनका काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से भी दांतों का दर्द दूर होता है।
    -श्वेत कंटकारी के बीजों का धूम्रपान के रूप में प्रयोग करने से दाँतों का दर्द तथा दंतकृमि कम होता है।
       खाँसी से दिलाये राहत
       अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो बांस से इसका इलाज किया जा सकता है।
      -आधा से 1 ग्राम कटेरी के फूल के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चटाने से बालकों की सब प्रकार की खांसी दूर होती है।
      -15-20 मिली पत्ते का रस या 20-30 मिली जड़ के काढ़े में 1 ग्राम छोटी पीपल चूर्ण एवं 250 मिग्रा सेंधानमक मिलाकर देने से खांसी में आराम मिलता है।
        -छोटी कटेरी के रस से पकाए हुए घी को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खाँसी में आराम मिलता है।
        -25 से 50 मिली कटेरी काढ़े में 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी से राहत मिलती  है।
         -20-40 मिली कण्टकारी का काढ़े का सेवन करने से सांस संबंधी समस्या, खांसी तथा छाती के दर्द में लाभ होता है।
          -सफेद कंटकारी के 1-2 ग्राम फल चूर्ण में मक्खन मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है।
          अस्थमा के कष्ट से दिलाये आराम
           मौसम के बदलते ही दमा या अस्थमा के रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है लेकिन कटेरी का औषधीय गुण इस कष्ट से आराम दिलाने में लाभकारी होता है।
        -कटेरी की प्रसिद्धि कफ को नाश करने के सम्बन्ध में बहुत अधिक है। छाती का दर्द इत्यादि रोगों में इसका बहुत प्रयोग होता है। जब छाती में कफ भरा हुआ हो तब इसका 20-30 मिली काढ़ा देने से बहुत लाभ होता है। इसके फलों के 20-30 मिली काढ़े में 500 मिग्रा भुनी हुई हींग और 1 ग्राम सेंधा नमक डालकर पीने से जीर्ण अस्थमा में भी लाभ होता है।
      -कटेरी पञ्चाङ्ग को यवकुट कर आठ गुना पानी मिलाकर गाढ़ा होने तक पकाएं, गाढ़ा होने पर कांच की शीशी में रखें। इसमें 1 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से आराम मिलता है।
       -छोटी कटेरी के 2-4 ग्राम कल्क में 500 मिग्रा हींग तथा 2 ग्राम मधु मिलाकर, सेवन करने से अस्थमा में लाभ होता है।
       -छोटी कटेरी की जड़ , श्वेत जीरक और आंवला से बने चूर्णं (1-3 ग्राम) में, मधु मिलाकर प्रयोग करने से अस्थमा में लाभ होता है।
        उल्टी के परेशानी में
     अगर मसालेदार खाना खाने या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के वजह से उल्टी हो रही है तो कटेरी का सेवन इस तरह से करने पर फायदा मिलता है।
       -10-20 मिली कटेरी के रस में 2 चम्मच मधु मिलाकर देने से उल्टी से राहत मिलती है।
          -अडूसा, गिलोय तथा छोटी कटेरी से बने काढ़े ठंडा होने पर उसमें मधु मिलाकर, 10-20 मिली की मात्रा में पीने से सूजन और खाँसी  से आराम मिलता है।
        अग्निमांद्द या अपच से दिलाये छुटकारा
      अगर खान-पान में गड़बड़ी होने पर बदहजमी की समस्या हो रही है तो उसमें कटेरी का इस तरह से सेवन करने पर आराम मिलता है।
        समान मात्रा में कटेरी और गिलोय के 1½ ली रस में 1 किग्रा घी डालकर पकाना चाहिए। जब केवल घी मात्र शेष रह जाए तब उसको उतार कर छान लें। इस घी को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से अपच की समस्या तथा खांसी की समस्या से राहत मिलती है। कंटकारी के गुण अपच के समस्या से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
      पेट दर्द में फायदेमंद
     अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। कटेरी के फलों के बीज निकाल कर उनको छाछ में डालें तथा उबालकर सुखा दें। फिर उनको रातभर मट्ठे में डुबोएं तथा दिन में सुखा लें। ऐसा  4-5 दिन तक करके उनको घी में तलकर खाने से पेट दर्द तथा पित्त संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।
     मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्याओं में
      मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। कटेरी इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
    -छोटी कटेरी के जड़ के चूर्ण में समान भाग में बड़ी कटेरी के जड़ का चूर्ण मिलाकर, 2 चम्मच दही के साथ, सात दिन तक खाने से पथरी, मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) तथा जलोदर (पेट में जल की मात्रा अधिक होने के कारण सूजन) में लाभ होता है।
     -कटेरी के 10-20 मिली रस को मट्ठे में मिलाकर, कपड़े से छानकर पिलाने से मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की रुकावट) में लाभ होता है।
     स्तनों का ढीलापन करे कम
     अगर ब्रेस्ट या स्तन के ढीलेपन से परेशान हैं तो कटेरी की जड़ और अनार की जड़ को सामन मात्रा में  लें। उसको पीसकर  स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर हो जाते हैं और स्तन या ब्रेस्ट का ढीलापन कम होता है।
      गर्भपात का खतरा करे कम
    कटेरी  का औषधीय गुण गर्भपात के खतरे को कम करने में मदद करता है। छोटी कटेरी या बड़ी कटेरी की 10-20 ग्राम जड़ों को 2-4 ग्राम पिप्पली के साथ मिलाकर भैंस के दूध में पीस छानकर कुछ दिन तक रोज दो बार पिलाते रहने से गर्भपात का भय नहीं रहता और स्वस्थ शिशु का जन्म होता है।
      बुखार से दिलाये राहत
     बुखार के लक्षणों से कष्ट से निजात दिलाने में कटेरी का घरेलू उपाय लाभकारी होता है-
    -कटेरी की जड़और गिलोय को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा को सुबह शाम पिलाने से बुखार तथा पूरे शरीर का दर्द कम होता है।
       -कटेरी की जड़, सोंठ, बला-मूल, गोखरू तथा गुड़ को समभाग लेकर दूध में पकाकर, 20-40 मिली सुबह-शाम पीने से मल-मूत्र की रुकावट, बुखार और सूजन दूर होती है।
       हृदय की बीमारी में फायदेमंद
      कटेरी हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करती है इससे दिल की बीमारी होने की संभावना कम होती है। 1-2 ग्राम श्वेत कंटकारी के जड़ की त्वचा के चूर्ण का सेवन करने से हृदय की बीमारी कम होती है।
     दस्त रोके
      अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो कटेरी का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।श्वेत कंटकारी के 1-2 ग्राम फल चूर्ण का सेवन तक्र (छाछ) के साथ करने से अतिसार में लाभ होता है।
      बवासीर या पाइल्स में फायदेमंद
     अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें  बवासीर का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। श्वेत कंटकारी के फलों को कोशातकी के काढ़े में पकाकर प्रयोग करने से अर्श या पाइल्स में लाभ होता है।
      प्रसव-पीड़ा या लेबर पेन में लाभकारी
    कटेरी का औषधीय गुण लेबर पेन को कम करने में मदद करती है। 10-20 मिली श्वेत कंटकारी के जड़  का सेवन करने से प्रसव पीड़ा कम होता है।
      त्वचा संबंधी समस्याओं में फायदेमंद
     आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हर कोई किसी न किसी त्वचा संबंधी परेशानी से ग्रस्त हैं। कटेरी इन सब परेशानियों को कम करने में मदद करती है।
       श्वेत कंटकारी के जड़ को पीसकर लेप करने से कण्डू या खुजली, क्षत (कटना या छिलना) तथा अल्सर के घाव में लाभकारी होता है।
      गंजापन दूर करने में
     बालों की समस्या में कटेरी का उपयोग फायदेमंद हो सकता है क्योंकि आयुर्वेद शास्त्रों में इसको बालों के लिए अच्छा बताया गया है।
     गले की सूजन को ठीक करने में
     आप यदि गले की सूजन से परेशान है तो आपके लिए कटेरी का उपयोग फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इसमें सूजन को कम करने के साथ -साथ कफ को भी शांत करने का गुण भी पाया जाता है।
      मंदाग्नि या अपच में )
      मंदाग्नि होने से खाना ठीक से नहीं पचता है इस स्थिति में आपके लिए कटेरी का सेवन लाभकारी हो सकता है, क्योंकि कटेरी में आयुर्वेद के अनुसार दीपन और पाचन के गुण पाए जाते है जिससे ये मंदाग्नि में दूर कर खाना पचाने में मदद करती है।
       पेट के रोग में
     पेट संबंधी समस्याओं में कटेरी का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार कटेरी में दीपन और पाचन के गुण होते है जो कि पाचन शक्ति को अच्छा रखकर पेट संबंधी रोगों को ठीक करने सहायक होता है।
      उपयोगी भाग
     आयुर्वेद में कटेरी के पञ्चाङ्ग, जड़, पत्ते, पुष्प, फल तथा बीज का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
        कटेरी का 20-50 मिली काढ़े का सेवन कर सकते हैं।
            कंटकार्य अवलेह
 (विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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