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दीपों की कुंडलियाँ

दीपों की कुंडलियाँ

1)
दीवाली खुशियाँ लिए, गाती मंगल गीत।
हारेगा निश्चित तिमिर, हो उजास की जीत।।
हो उजास की जीत, खुशी की हाला पी लें।
अंतर्मन हो शुद्ध,पर्व को सचमुच जी लें।।
जब पावन आचार, तभी होगी खुशहाली।
मिलें हाथ से हाथ, मुबारक़ हो दीवाली।।
(2)
उजियारा मुस्का रहा, हँसते हैं सब दीप।
धनतेरस से आ गया, देखो पर्व समीप।।
देखो पर्व समीप, खुशी की फुलझड़ियाँ हैं।
छत से लटकें  ख़ूब,रोशनी की लड़ियाँ हैं।।
डरकर भागे दूर, आज तो सब अँधियारा।
ताक़त से भरपूर, रहेगा अब उजियारा।।
(3)
रहता है अस्तित्व में , सत्य सदा बलवान।
झूठ सदा दुर्बल रहे, हो उसका अवसान।।
हो उसका अवसान, बात है बहुत पुरानी।
जो गामी सद् राह, जीवनी रहे सुहानी।।
जब रोशन संसार, उजाला नित बहता है।
सदा धर्म यशगान, धर्म निर्भय रहता है।।
(4)
धन की देवी आ रहीं, बिखराने आलोक।
पाएगा वरदान युग, सुखी रहेगा लोक।।
सुखी रहेगा लोक, दीप मिट्टी का जलता।
 छोटा पर विश्वास, सदा उसके उर पलता।।
रहना संयम साध, नहीं करना तुम मन की।
देंगी तब वरदान, पूज्य देवी जो धन की।।
               
(लेखक--प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे )
 

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