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दीपोत्स्व : परोपकारी जीवन का आग्रह  

दीपोत्स्व : परोपकारी जीवन का आग्रह  

दीपों का पर्व दीपावली, लक्ष्मी को प्रसन्न् करने के रूप में मनाया जाता है।  इससे जुड़े प्रचलित मिथकों में कमलारूढ़ लाल वस्त्रव, आभूषणयुक्त्, स्वसर्ण व अन्नक से भरे पात्र के सहित सुख, समृद्धि, की देवी लक्ष्मीा है जो सम्मोहक और चंचल हैं, जिसे बनाये रखना ,क सतत संघर्ष है। दुर्लभ और बहुमूल्य हाथी उन पर पानी की बौछार करते हैं। उनकी बगल में उनकी जुड़वां बहन अलक्ष्मी बैठती हैं जो गरीबी, दुख और दुर्भाग्य की देवी हैं। कुछ कहानियों के अनुसार ये समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग का विष है। ;क्योंरकि कचरा किसी भी निर्माण प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है अतऐव इसका प्रबंधन भी अपरिहार्य हैद्ध शिव वैश्विक वस्तुरओं के प्रति उदासीन हैं इसलि, वे इच्छित व अवांछितों में फर्क नहीं करते हैं। उनकी दृष्टि में हलाहल भी अमृत से अलग नहीं है इसलि, वे विष धारण कर नीलकंठ कहलाते है।  वैष्णव साहित्य में हालाहल को अलक्ष्मी से जोड़ कर देखा गया है जो दुर्भाग्य और दारिद्रय की देवी हैं और लक्ष्मी की जुड़वां बहन है। लक्ष्मी का संबंध मिष्ठान्न से है जबकि अलक्ष्मी का संबंध खट्टी और कड़वी वस्तुठओं से। यही वजह है कि मिठाई घर के भीतर रखी जाती है जबकि नीबू और तीखी मिर्ची घर के बाहर टँगी हुई देखी जाती है। लक्ष्मी मिष्ठान्न खाने घर के अंदर आती हैं जबकि अलक्ष्मी द्वार पर नींबू और मिर्ची प्राप्तट कर संतुष्ट हो लौट जाती हैं। दोनों को ही स्वीकार किया जाता है पर स्वागत ,क का ही होता है। लक्ष्मी के दो रूप हैं, भूदेवी और श्रीदेवी। भूदेवी धरती की देवी हैं और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी। पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, जबकि दूसरी महिमा और शक्ति से। भूदेवी सोने और अन्न के रूप में वर्षा करती हैं दूसरी शक्तियां, समृद्धि और पहचान देती हैं। भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जो अपने पति विष्णु की सेवा करती हैं।

पुराणों में लक्ष्मी के तीन पितर हैं - वरुण, पुलोमान और भ्राता। वरुण वेदों में असुर हैं, लेकिन जलस्रोत के रूप में कल्याणकारी होने के कारण पुराणों में वे देव माने गये हैं। पुराणों में पुलमन को असुर-राजा और भृगु को असुर-गुरु बताया गया है। इससे लक्ष्मी असुरों की पुत्री हुईं। पुराणों में देव और असुर दोनों ब्रह्मा की संतान हैं। देव पृथ्वी पर जबकि असुर पृथ्वी के नीचे रहते हैं। जल, बीज अंकुरण तत्व या खनिज संपदा जैसे सभी द्रव्यज पृथ्वी के भीतर मौजूद है, जिसके लिए हमें सूर्य, पवन, अग्नि और वर्षा ;इंद्र की आवश्यकता है,  मानवीय पक्ष में इनकी तत्वों रचनात्मकता होने के कारण यह देवता बन जाते हैं जबकि मानवता विरुद्ध लक्ष्मी को साझा करने के कारण असुर राक्षस बन जाते हैं । मानव को पृथ्वी से धन प्राप्ति के लिए, कृषि और खनन प्रक्रियाओं पर आश्रित रहना पड़ता है।

असुरों के गुरु भृगु दूरदर्शिता से जुड़े हैं। उनका पुत्र शुक्र रचनात्मकता से जुड़ा है। जिनमें धन पैदा करने की संभावना अधिक है। इसीलिए लक्ष्मी को भृगु की पुत्री भार्गवी और शुक्र की बहन बनाता है । लक्ष्मी का महत्वस तब होता है जब वह अपने पिता से मुक्ती हो पृथ्वीत के ऊपर आती है। धन का निर्माण एक हिंसक प्रक्रिया है। खेत और मानव बस्तियों के लिए रास्ता बनाने के लिए जंगलों को नष्ट किया जाता है,जिससे कई जीवन प्रभावित होते हैं । कच्चे माल को उद्योगों के लिए जमीन से बाहर निकाला जाना अर्थात लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए असुरों का विनाश का प्रतीक है। इसे मानव द्वारा निर्मित बर्तन के आविष्कार से समझ सकते हैं ! जैसे पात्र में रखा जल आपके स्वावमित्वु को दर्शाता है जो सांस्कृतिक हस्तक्षेप का प्रतीक है जबकि जंगल का जलस्रोत सभी प्राणियों के लिए उपलब्ध है । देवासुर संग्राम  से मृत असुरों को संजीवनीविद्या से शुक्राचार्य पुनर्जीवित करते है, यह पृथ्वी की प्रजनन क्षमता का संकेत है, जो प्रतिवर्ष फसलों को वापस लाता है। फसलों की कटाई का कार्य देवों द्वारा असुरों की हत्या का प्रतीक है।  यही कारण है कि देव और असुरों के बीच चक्रीय संघर्ष तब तक कभी खत्म नहीं होगा जब तक मनुष्य प्रकृति के शोषण की तलाश करता रहेगा। इंद्र की पत्नी के रूप में लक्ष्मी को सचि के नाम से जाना जाता है और इंद्र को सचिन के नाम से जाना जाता है। क्योंकि वह कल्पतरू के कामधेनु, कौस्तुभ मणि अक्षय.पात्र जैसे द्रव्यों के साथ आती है जो देवों को विलासितापूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाते हैं। उन्हें ,क भी दिन काम नहीं करना पड़ता है।

इस मनोवृत्ति का निराकरण के अन्यण तर्कों में जहां इंद्र अपनी ओर से लक्ष्मी से प्रसन्न हो सकते हैं, वहीं लक्ष्मी कभी भी इंद्र के बगल में आकर प्रसन्न नहीं दिखती। लक्ष्मी को कभी.कभी खजाने का जमाखोरी करने वाले यक्षों के धनी राजा कुबेर के बगल में बैठे हुए कल्पना की जाती है ।कुबेर की पहचान कुछ ग्रंथों में इंद्र के कोषाध्यक्ष के रूप में है। चंचला होने के कारण कोई भी आश्वनस्तक नहीं होता कि धन और भाग्य की देवी किसके पक्ष में होगी क्योंककि, वह बिना कारण अचानक दिखाई दे सकती है, और बिना किसी चेतावनी के छोड़ जाती है।

रामायण में कुबेर के राज्य और सिंहासन पर उसका भाई रावण आधिपत्यध कर लेता है। साथ ही वह राम की पत्नी सीता का हरण कर लक्ष्मी को लाता है। महाभारत में कौरव अपने प्रतिद्वंद्वी चचेरे भाई पांडवों को लाखा महल में भस्मय करने का असफल प्रयत्नण करते हैं। बाद में वह पांडवों को जुए में हरा देते हैं। अपनी आजादी के बदले पांडवों को 13 साल का वनवास काटना पड़ता हैं। इस प्रकार लक्ष्मी छल करके कौरवों के पास आती हैं लेकिन ताकत या छल के माध्यम से प्राप्त लक्ष्मी कभी स्था यी नही रह सकती । अतएव राम रावण का और श्रीकृष्ण दुर्योधन का उद्धार कर कर सुराज की स्थापपना करते हैं।

ब्राह्मण ग्रंथों द्वारा दर्शाये गये वेदों के प्रारंभिक भाग में हमें गाय, घोड़े, अनाज, सोना, जैसे धन प्राप्त करने के अनुष्ठान मिलते हैं अर्थात धन को सुख में प्रवेश के रूप में देखा जाता है । अरण्यक और उपनिषद ग्रंथों द्वारा दर्शाए गए वेदों के उत्तरार्द्ध में धन को ईर्ष्या, मित्रों से हानि, परिवारिक कलह जैसे दुःख के रूप में देखा जाता है । वैदिक काल में धन की प्रकृति पर यह बदलाव इंद्र की स्थिति में परिलक्षित होता है । इंद्र वेदों के महान योद्धा राजा हैं, लेकिन पुराणों में उन्हे ब्रह्मा विष्णु और शिव से मदद मांगते हु, असुरक्षित और असहाय  दिखाया गया है।  विपुल धन के आगमन से प्राप्त दुख हमें वेदांत की ओर ले जाती है, जहॉं मन और संपत्ति के बीच संबंधों की विवेचना है । जब लक्ष्मी शिव या विष्णु का साथ देती हैं तो अलक्ष्मी ज्येष्ठा लक्ष्मी का साथ नहीं देती तब धन विवाद का कारण नहीं बनती ।

महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण एक दिन आवेश में लक्ष्मी स्वार्ग को छोड़ देती है । लक्ष्मी के लुप्त होने से इंद्र का स्वर्ग अपनी संपन्नता खो देता है। इच्छा पूरी करने वाली गाय दूध देना बंद कर देती है, मनोकामना पूरी करने वाला कल्प्वृक्ष फल देना बंद कर देता है और कौस्तुलभ मणि अपनी चमक खो देता है, अक्षयपात्र खाली हो जाता है। लक्ष्मी को वापस स्वर्ग लाने का तरीका क्षीरसागर का मंथन करना है । विष्णु की सलाह है कि इंद्र सबसे पहले असुरों से मित्र बनाएं, क्योंकि सागर मंथन के लिए प्रतिबल की आवश्यकता होती है। इसके बाद वह मेरू पर्वत को धुरी और सर्पों के राजा वासुकी को रस्सी के रूप में प्रयुक्त कर समुद्र मंथन करें। कछुओं का राजा अकुपारा स्वयं विष्णु का एक रूप है, जिस पर मंथन की शुरुआत होती है।
अंत में कल्पतरू, कामधेनु, कौस्तुभ मणि और अक्षय.पात्र, स्वर्ग के सभी खजाने के साथ जल से अमृतपात्र के साथ लक्ष्मी उत्पन्न होती है । इसके अलावा सफेद दूध के रूप में, शाही शक्ति के प्रतीक हाथी ऐरवत और उड़ने वाला घोड़ा, उच्चैश्रवा उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा  रम्भा, सोम, चंद्रमा उत्पन्न होते हैं। विष्णु की युक्ति से लक्ष्मी द्वारा लाये अमृतपान का लाभ पाकर देव अमरत्व को प्राप्त होते हैं और मंथन से प्राप्त रत्नो से स्वर्ग को पुनः समृद्ध बनाने में जुट जाते हैं। यहां लक्ष्मी स्वयं विष्णु उन्मुख होती है, जो विष्णु को इंद्र से श्रेष्ठ स्थापित करता है। क्योंकि इंद्र का नाम इंद्रिकाओं या इन्द्रिय अंगों के लिए संकेत देता है जबकि विष्णु उद्यम की रचना कर समाज को लक्ष्मी से समुन्नत बनाते हैं। इंद्र मन का प्रतीक है जिसे वह व्यक्तिगत जरूरतों में व्यय करता है । जबकि शिव की तरह विष्णु परोपकार के लिए चिंतित हैं।  जहां शिव दूसरों की भूख मिटाने के लिए समाज से पीछे हट जाते हैं, वहीं विष्णु मानवीय मूल्यों के लिए लोगों को उद्यमशील बनाते हैं । धर्म का अर्थ है- क्षमता का कुशल उपयोग।  जैसे अग्नि का धर्म है दहन,  जल का पोषण। लेकिन मानव के लिए यह स्पष्ट नही है कि वह धन का सृजन इंद्र की तरह केवल स्वयं की संतुष्टि के लिए करेगा या योगिराज शिव की तरह भूख पर नियंत्रण रखकर । शिव की तरह विष्णु भी जानते हैं कि भोजन से भूख संतुष्ट नहीं होती। यह केवल भूख को बढ़ाता है। मानव किसी भी वस्तु से तृप्त नहीं हो सकता जब तक वह शिवत्वख को छोड़कर इन्द्रए का अनुकरण करता रहेगा।
(लेखक- राकेश कुमार वर्मा )

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