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 दिल्ली समेत उत्तर भारत के करोड़ों लोगों के लिए बुरी खबर

 दिल्ली समेत उत्तर भारत के करोड़ों लोगों के लिए बुरी खबर

नई दिल्ली । उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए नवंबर और दिसंबर का महीना परेशानी भरा हो सकता है। इस दौरान ला नीना जहां सर्द कहर बरपाएगा, वहीं पराली हवा में जहर घोलती रहेगी। कुलमिलाकर इसका मतलब यह है कि अगले 2 महीनों के दौरान ठंड भी अधिक पड़ेगी और प्रदूषित हवा में सांस लेना भी कष्टप्रद होगा। वजह, अक्टूबर में भले ही विस्तारित मानसून ने स्थितियों को नियंत्रण में रखा हो, लेकिन अब स्थिति बदलती दिख रही है। पर्यावरण विज्ञानियों के अनुसार तापमान में गिरावट और अन्य मौसम संबंधी वजहों जैसे हवा की गति धीमी और उसकी दिशा के चलते प्रदूषण का स्तर भारत-गंगा के मैदानी इलाकों के अधिकांश शहरों- दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल में सप्ताह भर से ''बहुत खराब'' या ''खतरनाक'' श्रेणी में चल रहा है। पटाखों और पराली जलाने के मौसमी कारकों ने हमेशा की तरह समस्या को और बढ़ा दिया है। दरअसल, सदी का मौसम प्रदूषण में वृद्धि के लिए अनुकूल समय है। सर्दियों के दिनों में, ठंडी हवा अक्सर उत्तर भारत में बस जाती है। शीतकाल के तापमान उलटने से धुंध के निर्माण में योगदान होता हैं। तापमान का यह उलटना तब होता है जब ठंडी हवा गर्म हवा की एक परत के नीचे फंस जाती है। चूंकि ठंडी हवा गर्म हवा से ऊपर नहीं उठ सकती, इसलिए ठंडी हवा में प्रदूषण तब तक बना रहता है जब तक तापमान उलटा रहता है। सर्दियों के महीनों में देखी जाने वाली धुंध ज्यादातर तापमान में उलट-फेर (व्युत्क्रमण) का भी परिणाम है। आमतौर पर वायुमंडल में उच्च हवा पृथ्वी की सतह के पास हवा की तुलना में ठंडी होती है। सतह के पास गर्म हवा ऊपर उठती है, जिससे सतह से प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं। वाय प्रदूषण के बढ़ने पर डा डी साहा, सदस्य (विशेषज्ञ समिति, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय) का कहना है कि  हवा की रफ्तार में सुधार के बावजूद प्रदूषकों का संचय जारी है। एयर इंडेक्स बहुत खराब के उच्च स्तर पर चल रहा है। मैदानी क्षेत्रों में समय रहते कदम उठाने की जरूरत है। देरी से मानव जोखिम, उत्पादकता हानि और पर्यटन उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में तैयार की गई सूक्ष्म कार्य योजनाओं का परीक्षण किया जाना चाहिए और कार्यों की प्रभावशीलता को देखने के लिए लागू किया जाना चाहिए। सभी मैदानी शहरों को कार्य योजनाओं को लागू करने के लिए अलर्ट सिग्नल भेजना चाहिए। 
 

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