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कोरोना के हर प्रारूप से से बचाव करेगी यह नई थेरेपी, कमजोर इम्युनिटी वालों पर विशेष रूप से कारगर   -अनुसंधानकर्ताओं ने की ऐसे आरएनए अणु की पहचान, शरीर की वायरस रोधी रक्षा प्रणाली को करता है प्रेरित 

कोरोना के हर प्रारूप से से बचाव करेगी यह नई थेरेपी, कमजोर इम्युनिटी वालों पर विशेष रूप से कारगर   -अनुसंधानकर्ताओं ने की ऐसे आरएनए अणु की पहचान, शरीर की वायरस रोधी रक्षा प्रणाली को करता है प्रेरित 

वाशिंगटन । कोरोना महामारी का सटीक इलाज तलाशने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वक्त रिसर्च में जुटे हुए हैं। इस क्रम में अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसे राइबो न्यूक्लिक एसिड (आरएनए) अणु की पहचान की है, जो शरीर की वायरस रोधी शुरुआती रक्षा प्रणाली को प्रेरित करता है और चूहों को कोविड-19 बीमारी के लिए जिम्मेदार वायरस सार्स-सीओवी-2 के कई स्वरूपों से बचा सकता है। 
यह अध्ययन उन लोगों में कोरोना के नए उपचारों का मार्ग खोल सकता है, जिनका प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर है और उन विकासशील देशों के लिए किफायती थेरेपी उपलब्ध करा सकता है जिनकी टीके तक पहुंच कम है। सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ शुरुआती शारीरिक रक्षा प्रणाली-एंटीबॉडी और टी कोशिकाओं की भागीदारी से पहले-आरआईजी-1 जैसे रिसेप्टर अणुओं पर निर्भर होता है, जो वायरस की आनुवंशिक सामग्री को पहचानते हैं और टाइप1 इंटरफेरॉन्स जैसे प्रोटीन के संकेत उत्पन्न करने को प्रेरित करते हैं। 
अमेरिका में ‘येल स्कूल ऑफ मेडिसिन’ के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि ये इंटरफेरॉन प्रोटीन बनने को बढ़ावा देते हैं, जो विषाणुओं की संख्या बढ़ाने वाले वायरस के प्रजनन को रोक सकते हैं और संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बनाने को प्रोत्साहित कर सकते हैं। कई अध्ययनों में सुझाया गया है कि इंटरफेरॉन का जल्दी और मजबूत तरीके से बनना कोरोना से बचाता है, जबकि देरी से उत्पादन गंभीर बीमारी से जुड़ा है। यह अध्ययन ‘जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिसन’ में प्रकाशित हुआ है।
इससे पहले खबर आई थी कि वैज्ञानिकों ने ऐसे एंटीबॉडी की पहचान एवं जांच की है, जो कोरोना वायरस के कई प्रकारों से होने वाले संक्रमणों की गंभीरता को सीमित कर सकता है। इसके साथ ही ये एंटीबॉडी उन संक्रमणों को गंभीर होने से रोकने में भी कारगर हैं, जो कोरोना के साथ ही सार्स के लिए भी जिम्मेदार हैं। 
अध्ययन में सार्स का प्रकोप फैलाने वाले सार्स-सीओवी-1 वायरस से संक्रमित और मौजूदा कोविड-19 से पीड़ित एक-एक मरीज के रक्त का विश्लेषण कर उसके शरीर से एंटीबॉडी को अलग किया गया। अध्ययन के सह-वरिष्ठ लेखक एवं अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी ह्यूमन वैक्सीन इंस्टीट्यूट के निदेशक बार्टन हेन्स ने कहा था कि इस एंटीबॉडी में मौजूदा वैश्विक महामारी से निपटने की क्षमता है। हेन्स ने कहा था यह भविष्य में सामने आने वाले प्रकोपों के लिए भी उपलब्ध हो सकता है, अगर या जब कभी अन्य कोरोना वायरस अपने प्राकृतिक पशु पोषक से निकलकर मनुष्यों में आ जाते हैं। 
 

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