नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का चयन करने में भाजपा सामाजिक समीकरणों के साथ विरोधी दलों की स्थिति को भी ध्यान में रखेगी। इसके लिए पार्टी में दो स्तरीय नीति पर विचार कर रही है जिसमें सीधे मुकाबले और बहुकोणीय मुकाबलों के लिए अलग-अलग तरीकों से के लिए उम्मीदवार चुनना शामिल है। मौजूदा विधायकों को टिकट देने या न देने में भी इस पहलू को ध्यान में रखा जाएगा। उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही घूमेगी। ऐसे में सत्तारूढ़ भाजपा को विरोधी खेमों की एकजुटता को रोकने के साथ उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तालमेल और सामाजिक समीकरणों पर ही ध्यान देना पड़ रहा है। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि कई ऐसी सीटें होंगी, जहां पर उम्मीदवार तो सभी दलों का होंगे, लेकिन स्थिति सीधे मुकाबले की होगी। इसलिए उन सीटों पर उम्मीदवार तय करने में सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। दूसरी तरफ ऐसी सीटें भी होंगी जिन पर सभी दलों के सामाजिक और राजनीतिक रूप से मजबूत उम्मीदवार होने की स्थिति में पार्टी वोटों के विभाजन के अनुसार रणनीति तय करेगी। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि कई चुनावों के बाद यह पहला मौका है जब बहुजन समाज पार्टी बहुत ज्यादा आक्रामक रूप से चुनाव मैदान में नहीं दिख रही है। जबकि कांग्रेस भी जमीन पर बहुत ज्यादा मजबूत नहीं दिख रही है। ऐसे में अधिकांश सीटों पर भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना बन रही है। पार्टी के लिए यह स्थिति बहुत अच्छी नहीं होगी, क्योंकि राज्य में पांच साल सत्ता में रहने के बाद थोड़ा बहुत सत्ता विरोधी माहौल होता है। उसका मुकाबला अगर विपक्ष के किसी एक मजबूत उम्मीदवार से होगा तो दिक्कत भी हो सकती है। हालांकि उत्तर प्रदेश में सामाजिक समीकरण प्रभावी रहते हैं और बसपा के उम्मीदवारों की मौजूदगी भी हर सीट पर असर डालेगी। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व अगले माह से उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर देगा। पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि सामाजिक समीकरण सामने हैं, लेकिन विपक्षी दलों का अलग होना, एकजुट होना और उनके बीच का तालमेल, हर चीज के लिये अलग-अलग रणनीति पर काम करना होगा।
रीजनल नार्थ
यूपी में टिकट बंटवारे को बीजेपी ने बनाई यह रणनीति