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(चिंतन-मनन) कुसंग का फल 

(चिंतन-मनन) कुसंग का फल 

प्रतिदिन कुछ बगुले आकर एक किसान के खेत की फसल बर्बाद कर जाया करते थे। इसे देखकर किसान ने उन बगुलों को पकड़ने के लिए खेत में जाल बिछा कर रख दिया। बाद में उसने जाकर देखा तो बहुत से बगुले उसके जाल में फंसे हुए थे और उनके साथ ही एक सारस भी फंसा हुआ था।  
सारस ने किसान से कहा, ‘‘भाई किसान, मैं बगुला नहीं हूं। मैंने तुम्हारी फसल बर्बाद नहीं की है। मुझे छोड़ दो। तुम विचार करके देखो कि मेरी कोई गलती नहीं है। जितने भी पक्षी हैं, मैं उन सबकी अपेक्षा अधिक धर्म परायण हूं। मैं कभी किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाता। मैं अपने वृद्ध माता-पिता का अतीव सम्मान करता हूं और विभिन्न स्थानों में जाकर प्राण-प्रण से उनका पालन-पोषण करता हूं।  
इस पर किसान बोला, ‘‘सुनो सारस, तुमने जो बातें कहीं, वे सब ठीक हैं, उन पर मुझे जरा भी संदेह नहीं है। परन्तु चूंकि तुम फसल बर्बाद करने वालों के साथ पकड़े गए हो इसलिए तुम्हें भी उन्हीं के साथ सजा भोगनी होगी क्योंकि कुसंग का फल बुरा होता है’’  
 

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